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धरती के अस्तित्व पर मंडरा रहा है खतरा! बढ़ने लगा आर्कटिक महासागर का तापमान, अनुमान से एक दशक पहले हो रहे बदलाव

20 वीं सदी की शुरूआत से ही आर्कटिक महासागर गर्म हो रहा है. हाल ही में हुए एक अध्ययन के अनुसार महासागर में अनुमान से एक दशक पहले ही ये बदलाव देखने को मिल रहे हैं. अध्ययन के निष्कर्ष 'साइंस एडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित हुए थे.

तस्वीरों में साफ है बदलाव तस्वीरों में साफ है बदलाव
हाइलाइट्स
  • 800 सालों से स्थिर का तापमान

  • 20वीं सदी की शुरुआत में अचानक हुआ बदलाव

  • 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया समुद्र का तापमान

विश्व भर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है. जिस कारण अब आर्कटिक महासागर 20वीं सदी की शुरुआत से ही गर्म हो रहा है. हाल के एक अध्ययन के अनुसार, आर्कटिक महासागर अब गर्म होने लगा है, जो लगाए गए अनुमान से दशकों पहले हो रहा है. अध्ययन के निष्कर्ष 'साइंस एडवांसेज' पत्रिका में प्रकाशित हुए थे.

कैसे किया गया अध्ययन?
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने फ्रैम स्ट्रेट का अध्ययन किया, जो ग्रीनलैंड और स्वालबार्ड के बीच में आता है और इसे आर्कटिक महासागर के प्रवेश द्वार भी कहा जाता है. शोधकर्ताओं ने पाया कि आर्कटिक महासागर में पिछली शताब्दी की शुरुआत से ही पानी तेजी से गर्म होना शुरू हो गया है. दरअसल शोधकर्ताओं ने समुद्री सूक्ष्म जीवों में पाए जाने वाले रासायनिक लक्षणों के जरिए शोधकर्ताओं ने इस बात का पता लगाया है. इस प्रक्रिया को अटलांटिफिकेशन कहा जाता है. 

2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया तापमान
1900 के बाद से पानी का तापमान लगभग 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है, जबकि समुद्री बर्फ घट गई है और लवणता बढ़ गई है. ये परिणाम आर्कटिक महासागर के  अटलांटिफिकेशन पर पहला ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य देता है. साथ ही उत्तरी अटलांटिक के साथ एक संबंध प्रकट करता है जो पहले की तुलना में काफी मजबूत है. जैसे-जैसे ध्रुवीय बर्फ की चादर पिघलती रहती हैं, ये संबंध में आर्कटिक जलवायु परिवर्तनशीलता को आकार देने की क्षमता रखते है. जिसका समुद्री-बर्फ के कम होने और वैश्विक समुद्र-स्तर में वृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है. जलवायु परिवर्तन दुनिया के महासागरों को गर्म कर रहा है, लेकिन दुनिया का सबसे छोटा और उथला महासागर आर्कटिक महासागर सबसे तेज गर्म हो रहा है. 

क्यों बढ़ रहा है वैश्विक समुद्र स्तर?
जैसे ही आर्कटिक महासागर गर्म होता है, आर्कटिक क्षेत्र की बर्फ पिघलती है, जिससे वैश्विक समुद्र स्तर प्रभावित होता है. जैसे-जैसे बर्फ पिघलती है, समुद्र की सतह का अधिक भाग प्रकाश के संपर्क में आता है, जिससे गर्मी बच जाती है और हवा का तापमान बढ़ जाता है. जैसे ही आर्कटिक गर्म होता है, पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, जिससे भारी मात्रा में मीथेन निकलता है, जो कि कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में काफी अधिक विनाशकारी ग्रीनहाउस गैस है.

चिंताजनक है बदलाव
बोलोग्ना में राष्ट्रीय अनुसंधान परिषद के इंस्टीट्यूट ऑफ पोलर साइंसेज में कार्यरत और इस अध्ययन के सह-लेखक डा. टेसी टोमासो के अनुसार अगर हम अपने 800 साल पुराने काल को देखें तो तापमान और लवणता पर हमारा डाटा काफी स्थिर दिखता है, लेकिन 20 वीं सदी में अचानक आए बदलाव चिंता पैदा करते है. आर्कटिक महासागर के प्रवेश द्वार फ्रैम स्ट्रेट पर तीव्र अटलांटिस करण इसकी एक प्रमुख वजह है.