
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच लंबे समय से चल रहा सीमा विवाद अब एक जंग में बदल गया है. कंबोडिया के सैन्य ठिकानों पर थाईलैंड के हवाई हमलों के बाद इस विवाद की आधिकारिक शुरुआत हुई. दोनों देशों की झड़प में 13 थाई और आठ कंबोडियाई नागरिकों सहित 30 लोगों की मौत हो चुकी है.
खबरों में भले ही थाईलैंड और कंबोडिया के बीच का संघर्ष महज़ चार दिन पहले उभरा हो, लेकिन यह 100 साल से भी ज्यादा पुराना है. आइए समझते हैं कि थाईलैंड और कंबोडिया के बीच यह जंग क्यों छिड़ी है और दोनों देशों के बीच का इतिहास क्या कहता है.
जंग की आग में क्यों कूदे थाईलैंड और कंबोडिया?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद एक सदी से भी ज़्यादा पुराना है. फ्रांस ने जब 1953 तक कंबोडिया पर कब्ज़ा किया था तब उसने पहली बार भूमि सीमा का नक्शा बनाया था. करीब 817 किमी से भी ज़्यादा लंबी सीमा पर विवाद पिछले कुछ सालों में राष्ट्रवादी भावनाओं के चलते बार-बार भड़कता रहा है.
इसका सबसे ताज़ा मामला मई में शुरू हुआ, जब सैनिकों ने एक विवादित क्षेत्र में कुछ देर के लिए गोलीबारी की. इसमें एक कंबोडियाई सैनिक मारा गया. इसके बाद दोनों सरकारों ने एक-दूसरे पर जवाबी कार्रवाई की. थाईलैंड ने कंबोडिया के साथ सीमा प्रतिबंध लगा दिए, जबकि कंबोडिया ने फलों और सब्जियों के आयात, थाई फिल्मों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया और थाईलैंड से इंटरनेट बैंडविड्थ में कटौती कर दी.
बीते बुधवार को तनाव और बढ़ गया जब गश्त के दौरान पांच थाई सैन्यकर्मी बारूदी सुरंगों की चपेट में आकर घायल हो गए. थाई अधिकारियों ने आरोप लगाया है कि बारूदी सुरंगें हाल ही में बिछाई गई थीं. थाईलैंड ने इसके जवाब में कंबोडिया के साथ अपनी उत्तर-पूर्वी सीमा चौकियां बंद कर दीं, अपने राजदूत को वापस बुला लिया और विरोध में कंबोडियाई राजदूत को निष्कासित कर दिया. इसके बाद गुरुवार को आधिकारिक रूप से जंग शुरू हो गई.
क्या है कंबोडिया और थाईलैंड का इतिहास?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच विवाद का इतिहास मुख्य रूप से प्रियह विहार मंदिर (प्रसात प्रीह विहार) और इसके आसपास के क्षेत्र को लेकर है. यह मंदिर दोनों देशों की सीमा पर स्थित है. यह मंदिर 11वीं सदी का एक खमेर हिंदू मंदिर है, जिसे यूनेस्को ने 2008 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था. इस विवाद की जड़ें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और औपनिवेशिक कारकों में छिपी हुई हैं.
दरअसल प्रियह विहार मंदिर खमेर साम्राज्य के समय बनाया गया था. यह वर्तमान कंबोडिया और पूर्वोत्तर थाईलैंड के हिस्सों में फैला था. फ्रांस ने जब 19वीं सदी में कंबोडिया को अपनी कॉलोनी बना लिया तब थाईलैंड (तत्कालीन सियाम) स्वतंत्र रहा. फ्रांस और सियाम के बीच 1907 में एक संधि हुई जिसमें डांग्रेक पर्वत शृंखला को बॉर्डर के तौर पर निर्धारित किया गया.
इस संधि के तहत प्रियह विहार कंबोडिया के क्षेत्र में आया, लेकिन मंदिर के आसपास का 4.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र विवादित रहा. फ्रांसीसी नक्शों में यह क्षेत्र कंबोडिया का हिस्सा दिखाया गया, जबकि थाईलैंड ने इसे अपना हिस्सा माना. थाईलैंड ने 1950 के दशक में मंदिर पर कब्जा कर लिया. इसके जवाब में कंबोडिया ने 1959 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में मामला दर्ज किया.
अदालत ने 1962 में फैसला सुनाया कि प्रियह विहार मंदिर कंबोडिया के क्षेत्र में है और थाईलैंड को इसे खाली करना होगा. थाईलैंड ने फैसले का पालन किया लेकिन मंदिर के आसपास के क्षेत्र की स्थिति अस्पष्ट रही. आईसीजे ने इस क्षेत्र की सीमा निर्धारित नहीं की. जब यूनेस्को ने 2008 में प्रियह विहार को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया तो विवाद फिर से भड़क उठा.
थाईलैंड ने दावा किया कि मंदिर के आसपास का क्षेत्र उसका है, और इस मुद्दे पर दोनों देशों में राष्ट्रवादी भावनाएं उभरीं. साल 2008 से 2011 के बीच सीमा पर कई सैन्य झड़पें हुईं. इसमें दोनों पक्षों के सैनिक और नागरिक मारे गए. इन झड़पों ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया.
कूटनीतिक कोशिशें के बावजूद बिगड़े हालात
आईसीजे ने 2013 में फिर से फैसला सुनाया कि मंदिर के आसपास का कुछ क्षेत्र कंबोडिया का है, लेकिन पूरे विवादित क्षेत्र की सीमा निर्धारण अभी भी अस्पष्ट है. दोनों देशों ने कूटनीतिक बातचीत और सीमा निर्धारण के लिए संयुक्त आयोग के गठन की कोशिश की है लेकिन राष्ट्रवादी भावनाएं और राजनीतिक अस्थिरता के कारण प्रगति की रफ्तार धीमी रही है.
कंबोडिया और थाईलैंड के मौजूदा हालात 2008-11 से भी बुरे प्रतीत होते हैं. डोनाल्ड ट्रम्प के हस्तक्षेप के बाद दोनों देश युद्धविराम पर बात करने के लिए राज़ी तो हो गए हैं लेकिन सीमा पर तनाव अब भी बरकरार है. दोनों देशों में दो लाख से ज्यादा लोगों को बॉर्डर क्षेत्रों से निकाला गया है. दोनों देश जितना जल्दी युद्धविराम पर सहमत होंगे, उतनी ही जल्दी सामान्य जीवन पटरी पर लौट सकेगा.