Dairy Success Story: इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ लौटे गांव, खड़ा किया डेयरी का बिज़नेस, अब दूसरे किसानों की भी करवा रहे लाखों की कमाई

संतोष कुमार का डेयरी फार्मिंग मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आर्थिक सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है. उनके प्रयासों से न केवल उनकी खुद की आय बढ़ी है, बल्कि उन्होंने आसपास के किसानों को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद की है.

Dairy farmer Santosh Kumar
gnttv.com
  • नई दिल्ली ,
  • 07 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:25 PM IST

आज के समय में डेयरी सेक्टर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार का एक सफल मॉडल बनकर उभर रहा है. पटना जिले के धनरूआ ब्लॉक के निवासी संतोष कुमार ने इस क्षेत्र में एक ऐसा मॉडल तैयार किया है जो न केवल उनकी आय बढ़ा रहा है, बल्कि आसपास के किसानों को भी आर्थिक रूप से सशक्त बना रहा है. संतोष कुमार ने अपने डेयरी फार्मिंग मॉडल के माध्यम से छोटे किसानों को बड़े पैमाने पर दूध उत्पादन और बिक्री में मदद की है. 

इंजीनियरिंग छोड़ गांव लौटे संतोष
संतोष कुमार ने बीटेक आर्किटेक्चर एंड इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद गुजरात में एबीजी शिपयार्ड में काम किया. एक स्थायी नौकरी होने के बावजूद उन्होंने गांव लौटकर अपना व्यवसाय करने का फैसला किया. उन्होंने अपने गांव लौटकर डेयरी फार्मिंग में कदम रखा. उन्होंने शुरुआत में अपने घर में सात साहीवाल गायों के साथ डेयरी फार्मिंग शुरू की. धीरे-धीरे उन्होंने इसे बढ़ाकर 20 गायों का फार्म बनाया. 

कैसा है डेयरी फार्मिंग का आर्थिक मॉडल?
संतोष कुमार का मॉडल किसानों को 50 रुपए प्रति लीटर दूध बेचने का अवसर देता है. यह स्थानीय बाजार में मिलने वाले 35-45 रुपए प्रति लीटर से कहीं अधिक है. दरअसल ए2 दूध का बिजनेस खड़ा करने के बाद उन्होंने कौशलेंद्र कुमार के साथ मिलकर देसी मो (Desi Mo) नाम की कंपनी शुरू की और दूसरे किसानों को अपने साथ जुड़ने का मौका दिया. 

यहां किसानों को न सिर्फ अच्छे दाम पर दूध बेचने का मौका मिला, बल्कि संतोष के फार्म पर बछिया पालन और बिक्री को भी प्रोत्साहित किया गया. इससे किसानों की आय में और वृद्धि होती है. किसान तक के साथ एक खास बातचीत में संतोष कहते हैं, "अगर किसान 10 गायों के साथ डेयरी फार्मिंग करता है, तो वह महीने में 60,000-70,000 रुपए तक कमा सकता है. इससे पहले किसान मुश्किल से 10-20 हज़ार रुपए कमा रहे थे." 

पर्यावरण के अनुकूल है फार्मिंग
संतोष कुमार का फार्मिंग मॉडल पर्यावरण के अनुकूल है. उन्होंने अपने फार्म में क्लाइमेट शेड का उपयोग किया है, जो प्राकृतिक वेंटिलेशन प्रदान करता है. इसके अलावा, उन्होंने प्लास्टिक वेस्ट से बने रूफिंग शीट्स का उपयोग किया है. उनका फार्म गोबर का उपयोग बायोगैस और जैविक खाद बनाने में करता है, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है.

संतोष कुमार ने अपने फार्म में सोरगम की अनंत वेरायटी का हरा चारा लगाया है, जो 4-5 साल तक बिना किसी अतिरिक्त लागत के चलता है. उन्होंने बताया, "एक एकड़ में हरा चारा लगाने का खर्च केवल 3,500-4,000 रुपए है. यह 20 गायों के लिए पर्याप्त है."

किसानों का समर्थन कर रहे संतोष
संतोष कुमार ने अब तक 10 किसानों को 10 लाख रुपए का लोन दिलवाया है, जिससे वे डेयरी फार्मिंग शुरू कर सके. उनके फार्म से जुड़े किसान अब 80 हज़ार से एक लाख रुपए तक की मासिक आय अर्जित कर रहे हैं. संतोष कहते हैं, "पशुपालन से अच्छा रिटर्न गांव में रहकर किसी अन्य काम से नहीं मिलेगा." उन्होंने अन्य युवाओं को डेयरी फार्मिंग में कदम रखने के लिए प्रेरित किया. उनका फार्म पटना जिले के सोनमई पंचायत के बीर गांव में स्थित है.

संतोष कुमार का डेयरी फार्मिंग मॉडल ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और आर्थिक सशक्तिकरण का एक बेहतरीन उदाहरण है. उनके प्रयासों से न केवल उनकी खुद की आय बढ़ी है, बल्कि उन्होंने आसपास के किसानों को भी आत्मनिर्भर बनने में मदद की है.
 

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