ब्रिटेन की मशहूर कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के 800 साल के इतिहास में पहली बार एक महिला चांसलर बनने की राह पर है, और उनका नाम है जीना मिलर. जीना ने ब्रेक्जिट जैसे बड़े सियासी फैसले को कोर्ट में चुनौती देकर दुनिया भर में सुर्खियां बटोरी थीं. कैंसर, सामूहिक दुष्कर्म और सियासी हिंसा जैसी मुश्किलों का सामना करने के बावजूद, जीना ने हार नहीं मानी. आज वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में बदलाव की आवाज बनने को तैयार हैं.
ब्रेक्जिट की जंग से सुर्खियों तक
जीना मिलर एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने ब्रिटेन की सियासत को हिलाकर रख दिया. 2016 में, जब ब्रिटिश सरकार ने ब्रेक्जिट (यूरोपीय संघ से ब्रिटेन का अलग होना) का फैसला लिया, जीना ने इसे अदालत में चुनौती दी. उन्होंने तर्क दिया कि इस बड़े फैसले के लिए संसद की मंजूरी जरूरी है. कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, जिससे जीना रातोंरात मशहूर हो गईं. लेकिन इस जीत की कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ी. उन्हें धमकियां मिलीं, सियासी और निजी हिंसा का सामना करना पड़ा, फिर भी जीना डटी रहीं. उनकी हिम्मत ने उन्हें बदलाव का प्रतीक बना दिया.
कैंसर के बीच शुरू हुआ नया सफर
2023 में जीना की जिंदगी में एक और मुश्किल दौर आया. उन्हें ब्रेस्ट कैंसर का पता चला. उस वक्त वे रेडिएशन ट्रीटमेंट से गुजर रही थीं. लेकिन तभी कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसर्स ने उनसे संपर्क किया और कहा कि वे यूनिवर्सिटी के चांसलर पद के लिए नामांकन करें. जीना ने बताया, “मैं उस वक्त कैंसर से जूझ रही थी. निजी और सियासी हिंसा ने मुझे तोड़ने की कोशिश की, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. कैंब्रिज में बदलाव की जरूरत है, और मैं उस बदलाव की आवाज बनना चाहती हूं.”
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी का चांसलर पद कोई छोटा मौका नहीं है. 800 साल पुरानी इस यूनिवर्सिटी ने दुनिया को कई बड़े वैज्ञानिक, लेखक और विचारक दिए हैं. अगर जीना इस पद पर पहुंचती हैं, तो वे इतिहास रच देंगी, क्योंकि यह पहली बार होगा जब कोई महिला इस पद पर होगी.
पुणे से कैंब्रिज तक
जीना मिलर का जन्म ब्रिटिश गयाना में हुआ था. उनका परिवार बाद में ब्रिटेन चला गया. जीना की पढ़ाई भी किसी प्रेरणा से कम नहीं है. उन्होंने भारत की पुणे यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की, फिर ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल की. एक बिजनेसवुमन, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक सुधार की पैरोकार के रूप में, जीना हमेशा से बदलाव की पक्षधर रही हैं.
उनकी कहानी सिर्फ डिग्रियों या कोर्ट की जीत की नहीं है. यह एक ऐसी महिला की कहानी है, जो कैंसर, हिंसा और धमकियों से जूझते हुए भी अपने सपनों को सच करने की राह पर है. जैसे बिहार की नमिता आज़ाद ने सावन की परंपरा को कन्यापुत्री गुड़िया से जिंदा रखा, वैसे ही जीना अपनी मेहनत से कैंब्रिज को नई दिशा देना चाहती हैं.
जीना का यह सफर कैंब्रिज के वैज्ञानिकों और प्रोफेसर्स को भी प्रेरित कर रहा है. वे कहते हैं, “कैंब्रिज को जीना जैसी साहसी और दूरदर्शी लीडर की जरूरत है.” अगर जीना चांसलर बनती हैं, तो वे न केवल महिलाओं के लिए, बल्कि हर उस इंसान के लिए प्रेरणा बनेंगी, जो मुश्किलों से जूझ रहा है.
जीना की कहानी है खास?
जीना मिलर की कहानी सिर्फ एक यूनिवर्सिटी के चांसलर पद की रेस की नहीं है. यह हिम्मत, मेहनत और बदलाव की कहानी है. उन्होंने ब्रेक्जिट को चुनौती दी, कैंसर से लड़ीं, और अब कैंब्रिज जैसे बड़े मंच पर इतिहास रचने को तैयार हैं. उनकी कहानी हमें सिखाती है कि मुश्किलें कितनी भी बड़ी हों, हार नहीं माननी चाहिए.