जमशेदपुर में आज पहली बार आदिवासियों से जुड़े उनके संस्कृति से जुड़े उनके विरासत को जीवंत कर दर्शकों को दिखाया है. झारखंड सरकार का यह मानना है कि विलुप्त होती इन नृत्य को फिर से अगर जीवंत करना है तो गांव-गांव में जाकर विलुप्त होती नृत्य को खोजना होगा. फिरकाल नृत्य और दसई नृत्य के बारे में यह मानना है कि यह नृत्य हजार साल पुरानी यह नृत्य है. साथ ही साथ आदिवासी नृत्य है. जिसमें दिखाया गया है कि जंगलों में किस तरह पहले आदिवासी लोग जाकर जंगली जानवरों का शिकार करते थे. शिकार का जीवन जीवंत उदाहरण देखने को इस नृत्य शैली में मिला है.
दुसई नृत्य के पीछे की कहानी-
इसके साथ ही साथ आदिवासी शैली में कई नृत्यों को दिखाया गया है. दसई के बारे में कहा जाता है कि आदिवासी समाज शुरू से ही अपनी सभ्यता और संस्कृति के लिए जाना जाता है. कुछ असुर लोगों ने उनकी दो बहनों का अपहरण कर लिया था. आदिवासी समाज के लोगों ने गांव में बैठक कर यह निर्णय लिया कि सभी लोग भेज बदलकर गांव-गांव घूमेंगे और हम अपनी बहन को खोज कर लेंगे. जिनका नाम अयनाम और काजल था. इसके लिए इन लोगों ने भेजी वाद्य यंत्र बदला और वाद्य यंत्र के अंदर में शास्त्रों को छुपा कर अपनी बहनों को खोजने निकले और दोस्तों से अपनी बहन को छुड़ाकर लाया. इसने में दिखाया गया है कि वहां नित्य एक ऐसा नेता है, जो मौसम के लिए दिखाया जाता है. माना जाता है कि यह नृत्य बहा जो है, वह मौसम के अनुसार रंग बदलता है और इसलिए इसे महिलाएं ही करती हैं.
आदिवासी समाज का अभिन्न अंग है नृत्य-
सुमेन किस्कू ने बताया कि हम लोगों ने यह नृत्य को लोगों को दिखाने के लिए किया है, ताकि लोग समझ सके कि हम लोग किस तरह से पहले रहते थे. किस तरह से हम अपनी संस्कृति को जीवित रखते थे और उसे संस्कृति को दिखाने के लिए हम लोगों ने आज नृत्य को किया है, जो कि आदिवासी समाज का एक अभिन्न अंग है.
जगत मुंडा ने कहा कि हमारा यह नृत्य हजार साल पुराना नृत्य है. हम लोग इस नृत्य को जिंदा रखने के लिए फिर से एकजुट हुए हैं और हम लोग इस नृत्य को कर रहे हैं. ताकि लोगों के सामने हम बता सके कि हम पुराने संस्कृति के लोग पहले कैसे रहा करते थे और हमें कितना उससे लाभ है.
(अनूप सिन्हा की रिपोर्ट)
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