Nitish Kumar Political Journey: जानें कैसा रहा है नीतीश कुमार का चुनावी सफर, कभी भाजपा के साथ तो कभी खिलाफ

नीतीश कुमार के चुनावी सफर की बात करें तो वह काफी अनोखा रहा है. उन्होंने कभी भाजपा के साथ होकर चुनाव लड़ा तो कभी खिलाफ होकर.

gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:03 PM IST

बिहार में जातिवाद की राजनीति पहले जितनी प्रभावी नहीं रही, और इसका बड़ा श्रेय नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति को जाता है. वर्ष 2005 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने कानून-व्यवस्था और जंगलराज के खिलाफ आवाज उठाई. उनका नारा था “सुशासन”, और यहीं से उन्हें सुशासन बाबू के नाम से पहचान मिली.

विकास के मुद्दे पर ऐतिहासिक जीत
2010 के चुनाव में नीतीश कुमार ने पूरी तरह विकास और सुशासन के एजेंडे को केंद्र में रखा. 2010 के चुनाव में जदयू ने 115 सीटों पर मुहर लगा जबरदस्त जीत हासिल की. तो वहीं, बीजेपी को 102 सीटें मिली. इसके अलावा आरजेडी को केवल 22 सीटें मिली, जो उसके इतिहास की सबसे बड़ी हारों में से एक थी.

मोदी फैक्टर और नीतीश का नया गठबंधन
2014 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार ने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया. एनडीए से अलग हो गए. किसी तरह विधानसभा में सरकार बचा लिए. अकेले, मोदी लहर का मुकाबला करने को ठानी. 10 साल से सत्ता से बेदखल लालू यादव ने दिल खोलकर का स्वागत किया. 2015 विधानसभा चुनाव में नया एलायंस बना, जिसका नाम दिया गया 'महागठबंधन'. रिजल्ट में 115 विधायकों वाली पार्टी जदयू 71 पर आकर अटक गई, वोट प्रतिशत भी 16 के आसपास ही रहा.

फिर एनडीए की ओर वापसी
वर्ष 2020 तक राजनीतिक तस्वीर बदल चुकी थी. नीतीश कुमार फिर से एनडीए में लौट आए और बिहार में विकास का रोडमैप प्रस्तुत करते हुए चुनाव लड़ा. 2020 के चुनाव में जदयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा जबकि भाजपा ने 110 सीट पर. इस साल जदयू की जीत 71 सीट से गिर कर 43 पर रुक गई. वहीं भाजपा 74 सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही. नीतीश कुमार इस साल एक बार फिर मुख्यमंत्री बने.

पूरी तरह बदले चुनावी मुद्दे
इस बार के विधानसभा चुनाव में दोनों गठबंधनों की रणनीति एकदम नई दिखाई दे रही है. एनडीए जहां बिहार को आईटी हब, हाईटेक सिटी और तेज रफ्तार विकास का मॉडल दिखा रही है. वहीं महागठबंधन कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को प्रमुखता दे रहा है. 

दिलचस्प बात यह है कि तेजस्वी यादव जिन मुद्दों को उठाकर जनता तक पहुंच रहे हैं, वही मुद्दे 2005 में नीतीश कुमार ने उठाए थे और पहली बार सत्ता तक पहुंचे थे. बिहार की राजनीति एक बार फिर अपने पुराने मुद्दों की तरफ लौटती दिख रही है. बस किरदार बदल गए हैं, और कहानी नए अंदाज में लिखी जा रही है.

 

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