आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अब इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) प्रोसेस को और ज्यादा असरदार बनाने जा रही है. अब एआई ऐसे एम्ब्रियो चुनने में मदद कर रहा है जिनमें इंप्लांटेशन की संभावना ज्यादा है. पेरिस के अमेरिकन हॉस्पिटल में लगे खास एंब्रियोस्कोप लगातार एम्ब्रियो का टाइम-लैप्स वीडियो बनाते हैं. पहले यह डेटा केवल देखने के लिए इस्तेमाल होता था, लेकिन अब एआई इस पूरे डेटा का विश्लेषण कर डॉक्टरों को बताती है कि कौन-सा एम्ब्रियो सबसे ज्यादा हेल्दी और सफल हो सकता है.
कम IVF साइकिल, कम खर्च में फायदा
डॉक्टरों का कहना है कि एआई के जरिए उन एम्ब्रियो को शुरू से ही अलग किया जा सकता है जिनमें ज्यादातर जेनेटिक समस्याएं पाई जाती हैं और जिनसे गर्भपात का खतरा होता है. इससे IVF के कई फेल प्रयासों से बचा जा सकता है.
डॉक्टर का ही होगा आखिरी फैसला
एआई एक एक्स्ट्रा टूल है, डॉक्टर ही आखिरी फैसला लेंगे. अस्पताल ने इसके लिए इजरायली स्टार्टअप AIVF का टूल अपनाया है. यह एआई 70% सटीक संभावना बताती है कि सुझाया गया एम्ब्रियो जेनेटिक रूप से सही होगा. अभी की स्थिति में लगभग आधे एम्ब्रियो में जेनेटिक असमानताएं होती हैं, इसलिए यह सुधार काफी बड़ा माना जा रहा है.
हार्मोन डोज से लेकर शुक्राणु चयन तक में एआई मददगार
एआई सिर्फ एम्ब्रियो चुनने में ही नहीं, हार्मोन इंजेक्शन की टाइमिंग और डोज तय करने में भी मदद कर रही है. यह कम संख्या वाले स्पर्म सैंपल में भी सबसे बेहतर स्पर्म को खोजने में मदद करती है. असफल IVF प्रयास भी एआई मॉडल को और समझदार बनाते हैं. हर फेल साइकिल से मिले डेटा को सिस्टम में डालने पर अगली बार सटीकता और बढ़ जाती है. यही वजह है कि रोलरकोस्टर से गुजर रहे कपल्स के लिए यह राहत बन सकता है. कुछ लोग एआई इस्तेमाल नहीं करना चाहते, इसलिए मरीजों को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए और उन्हें ऑप्ट-आउट का विकल्प भी मिलना चाहिए.
विशेषज्ञ यह भी साफ कर रहे हैं कि यह तकनीक एम्ब्रियो को छेड़ती या बदलती नहीं. यानी कोई डिजाइनर बेबी बनाने वाली जेनेटिक इंजीनियरिंग नहीं की जा रही है. एआई सिर्फ जानकारी पढ़ती है और डॉक्टर को सुझाव देती है कि कौन-सा एम्ब्रियो बेहतर विकसित हो रहा है.