बहुत पुरानी कहावत है खाली दिमाग शैतान का घर होता है लेकिन मेंटल हेल्थ से जुड़े एक्सपर्ट्स की मानें तो इस भाग-दौड़ भरी में जिंदगी में अगर कुछ पल दिमाग को कोई काम ना दिया जाए तो ये आपकी मेंटल हेल्थ के लिए बहुत अच्छा हो सकता है.
अगर आपका बच्चा 10-15 मिनट खाली बैठा है या आप उसे ये कहते हुए सुनते हैं कि मैं बोर हो रहा हूं तो ये उसकी दिमागी सेहत के लिए फायदेमंद होगा और दिमागी रेस्ट का ये टॉनिक सिर्फ बच्चों के लिए ही नहीं, बड़ों की मेंटल हेल्थ के लिए भी कारगर साबित हो सकता है. चलिए जानते हैं मानसिक सेहत के लिए बोरियत क्यूं जरुरी है... क्यों कुछ पलों का रेस्ट आपके दिमाग को नई ऊर्जा से भर सकता है...
दिमाग को रुकने का मौका ही नहीं मिलता
आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में हम हर पल खुद को व्यस्त रखने की गलती कर रहे हैं. AIIMS के जाने-माने सायकैट्रिस्ट डॉ नंद कुमार का मानना है कि लगातार जानकारी और स्क्रीन से घिरे रहने के कारण दिमाग को रुकने का मौका ही नहीं मिलता. ये स्थिति बच्चों के मानसिक विकास के लिए खतरनाक हो सकती है.
एक्सपर्ट मानते हैं कि जब बच्चा बोर होता है उस समय दिमाग खुद को री-सेट कर रहा होता है. बोरियत बच्चों में नई चीजें सोचने और खुद को मैनेज करना सिखाती हैं. मेंटल हेल्थ से जुड़े एक्सपर्ट्स मानते हैं कि छोटी-छोटी एक्टिविटीज से भी दिमाग को चुस्त-दुरुस्त और तंदुरुस्त रखा जा सकता है. गॉसिप यानी छोटी-मोटी हंसी-मजाक, दोस्तों के बीच एक-दूसरे की चुटकी लेना. ये छोटी-छोटी आदतें ना सिर्फ जिंदगी को आनंद से भर देती हैं. ये सामाजिक जुड़ाव मानसिक तौर पर भी हमें मजबूत बनाते हैं.
बच्चों की मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी
दरअसल हम जब एक-दूसरे से बात करते हैं, हल्के-फुल्के मजाक करते हैं तो तनाव और अकेलापन छू-मंतर हो जाता है. डिप्रेशन जैसी समस्याओं से जूझ रहे लोगों के लिए ये एक्टिविटीज रामबाण साबित हो सकती हैं. एक स्टडी बताती है कि बच्चे औसतन डेढ से 2 घंटे, मोबाइल पर रील्स स्क्रॉल करने में बिताते हैं. उनके स्क्रीन टाइम का 40 से 60 फीसदी वक्त शॉर्ट वीडियो देखने में खर्च होता है. इसकी वजह से अक्सर ऐसे बच्चे अपने परिवार-पढाई और दोस्तों से दूर हो जाते हैं और बड़ी तादाद में GUILT का शिकार बन जाते हैं. इसलिए बच्चों की मेंटल हेल्थ पर ध्यान देना भी बेहद जरूरी हो जाता है.
बच्चों की सेहत के लिए MATE प्रोग्राम
इसी को ध्यान में रखकर हाल ही में एम्स नई दिल्ली ने स्कूली बच्चों के लिए शानदार पहल की है. स्कूली बच्चों की मेंटल वेलनेस पर फोकस करते हुए MATE यानी mind activation through education प्रोग्राम शुरू किया गया है. इसके जरिए बच्चों को ये समझाने की कोशिश की जा रही है कि वो रील की जगह रीयल दोस्त बनाएं. इसके लिए मेट फाइव का कॉन्सेप्ट रखा गया है. एम्स, CBSE के साथ मिलकर इस प्रोग्राम पर काम कर रहा है. ऑपरेशन MATE के लिए दिल्ली-NCR और मेघालय के करीब 50 स्कूल सिलेक्ट किए गए हैं. दावा किया जा रहा है कि इस प्रोग्राम से बच्चों में हायपरटेंशन, ओबेसिटी, बिहेवियर इश्यूज में कमी आएगी और बच्चों का बेहतर मानसिक विकास होगा.