हाल ही में केरल में एक दुर्लभ लेकिन घातक बीमारी ने सबका ध्यान खींचा है. यह है अमीबिक मेनिन्गोएन्सेफलाइटिस (Amoebic Meningoencephalitis), जिसे आमतौर पर 'दिमाग खाने वाला अमीबा' कहा जाता है. केरल में सितंबर 2025 तक इस साल 67 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें 17 मौतें हो चुकी हैं. मलप्पुरम, कोझिकोड और वायनाड जैसे जिलों में यह संक्रमण तेजी से फैल रहा है.
एक 10 साल की बच्ची का हालिया मामला तो और चिंताजनक है. वैश्विक स्तर पर इस बीमारी की मृत्यु दर 97% से ज्यादा है, लेकिन केरल में यह 24% तक कम है क्योंकि यहां ग्रैनुलोमेटस अमीबिक एन्सेफलाइटिस (GAE) के मामले ज्यादा हैं, जो प्राइमरी अमीबिक मेनिन्गोएन्सेफलाइटिस (PAM) से थोड़े कम घातक हैं. आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि यह अमीबा क्या है, कितना खतरनाक है, इसके लक्षण, इलाज और बचाव के तरीके क्या हैं.
यह अमीबा क्या है?
यह अमीबा निग्लेरिया फोवलेरी (Naegleria fowleri) नाम का एक सूक्ष्म जीव है, जो गर्म मीठे पानी में पाया जाता है. यह एक फ्री-लिविंग अमीबा है. यानी यह स्वतंत्र रूप से जीवित रहता है और बैक्टीरिया को खाता है. लेकिन जब यह इंसानों के संपर्क में आता है तो यह खतरनाक हो जाता है. यह अमीबा नाक के रास्ते दिमाग तक पहुंच जाता है और वहां ऊतकों (Tissues) को नष्ट कर देता है.
इसी वजह से इसे 'ब्रेन-ईटिंग अमीबा' का नाम दिया गया है. गर्म और नम इलाकों में जहां तालाब, नदियां और गर्म पानी के स्रोत ज्यादा हैं, वहां यह आसानी से फैल सकता है. केरल भी ऐसी ही जगहों में से एक है. यह नमक वाले पानी या ठंडे पानी में नहीं जीवित रहता. संक्रमण आमतौर पर गर्मियों में होता है, जब पानी का तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है.
कितना खतरनाक है?
यह बेहद खतरनाक है. संक्रमण होने पर यह तेजी से मस्तिष्क को प्रभावित करता है और ज्यादातर मामलों में 5-10 दिनों में मौत हो जाती है. दुनिया भर में सालाना सिर्फ कुछ दर्जन मामले होते हैं, लेकिन मृत्यु दर इतनी ऊंची है कि इसे 'रेयर बट फेटल' कहा जाता है. केरल में हाल के मामलों में बच्चे और बूढ़े भी प्रभावित हुए हैं, यहां तक कि घर पर नहाने वाले लोग भी. कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन दूषित पानी ही मुख्य वजह मानी जा रही है. अगर समय पर पता न चले, तो यह मेनिन्जाइटिस जैसा लगता है, लेकिन इलाज मुश्किल होता है.
इसके लक्षण क्या हैं?
संक्रमण के 1-12 दिनों बाद लक्षण शुरू होते हैं. शुरुआती संकेत साधारण लगते हैं, लेकिन जल्दी बिगड़ जाते हैं. पहले चरण में:
बाद में गंभीर लक्षण आते हैं:
अगर आप हाल में गर्म पानी से नहाए हैं या कहीं तैरे हैं और ये लक्षण दिखें, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाएं.
इसका इलाज क्या है?
इलाज बहुत चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में देर हो जाती है. मुख्य दवा एम्फोटेरिसिन बी (Amphotericin B) है, जो अमीबा की कोशिका झिल्ली को नष्ट करती है. इसके अलावा मिल्टे फोसाइन, अजोल एंटीफंगल दवाएं और रिफाम्पिन का इस्तेमाल होता है. CDC (अमेरिकी स्वास्थ्य संगठन) कुछ दवाएं उपलब्ध कराता है.
केरल में कोझिकोड मेडिकल कॉलेज जैसे अस्पतालों में जल्दी डायग्नोसिस से कुछ मरीज बचाए गए हैं. लेकिन समर्थन उपचार जैसे आईसीयू, दर्द निवारक और हाइड्रेशन जरूरी हैं. ब्रेन बायोप्सी या स्पाइनल टैप से पुष्टि होती है. सफलता दर कम है, इसलिए रोकथाम ही बेहतर है.
कैसे बचाव कर सकते हैं?
बचाव आसान है, अगर सावधानी बरतें:
केरल सरकार ने जागरूकता अभियान चलाया है और पानी के स्रोतों की जांच कर रही है. यह बीमारी दुर्लभ है, लेकिन सतर्कता से बचा जा सकता है. अगर लक्षण दिखें, तो देर न करें. जल्दी इलाज से जान बच सकती है. याद रखें, स्वच्छ पानी ही जीवन है!