Organ Transport By Metro: सिर्फ 55 मिनट में 31 किमी! कर्नाटक में पहली बार मेट्रो से ट्रांसप्लांट के लिए हुआ ऑर्गन ट्रांसपोर्ट, युवक की मिली नई जिंदगी

कर्नाटक में पहली बार मेट्रो से ट्रांसप्लांट के लिए ऑर्गन ट्रांसपोर्ट हुआ है. बेंगलुरु मेट्रो से एक मरीज की जान बचाने के लिए लिवर का ट्रांसपोर्ट किया गया. मेट्रो की तेजी की वजह से युवक की जान बच गई. अस्पताल ने बेंगलुरु मेट्रो का शुक्रिया अदा किया है.

Orngan Transplant By Bengluru Metro
gnttv.com
  • बेंगलुरु,
  • 02 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:35 PM IST
  • बेंगलुरु मेट्रो से हुआ ऑर्गन ट्रांसपोर्ट
  • अस्पताल में मरीज युवक की ट्रांसप्लांट से बची जान

बेंगलुरु मेट्रो एक व्यक्ति के लिए वरदान साबित हुई है. कर्नाटक में पहली बार मेट्रो से लिवर ट्रांसप्लांट के ऑर्गन ट्रांसपोर्ट मेट्रो से हुआ. इससे 31 किमी. की दूरी सिर्फ 55 मिनट में पूरी हुई. जल्द से जल्द अस्पताल में ऑर्गन ट्रांसप्लांट होने से एक युवक की जान बच गई. बेंगलुरु मेट्रो ने एक युवक को नई जिंदगी दी है.

कर्नाटक में पहली बार नम्मा मेट्रो से लिवर को स्पर्श हॉस्पिटल तक पहुंचाया गया. लिवर को व्हाइटफ़ील्ड से आरआर नगर में स्पर्श हॉस्पिटल तक मेट्रो से पहुंचाया गया. व्हाइटफ़ील्ड से स्पर्श हॉस्पिटल लगभग 31 किमी. दूर है. वाया रोड जाने में ट्रैफिक की वजह से लिवर को अस्पताल पहुंचने में काफी समय लगता. लिवर ट्रांसपोर्ट के लिए मेट्रो का सहारा लिया. इससे सिर्फ 55 मिनट में मेट्रो की वजह से लिवर 55 मिनट में अस्पताल पहुंच गया और युवक की जान बच गई.

किसने डोनेट किया लिवर?

एक 24 साल के युवक की सड़क हादसे में मौत हुई. मृतक के परिजनों ने बड़ा फैसला लेते हुए युवक के अंग डोनेट किए. उसी लड़के का लिवर हेपेटाइटिस से पीड़ित एक युवक को मिला. हेपेटाइटिस से पीड़ित युवक लिवर ट्रांसप्लांट के लिए दो महीने से वेटिंग लिस्ट में था. पीड़ित सही मैच के इंतजार में था.

कैसे हुआ मिशन पूरा?

डोनेट किया हुआ लिवर एक प्राइवेट हॉस्पिटल में था. इसे समय पर स्पर्श अस्पताल पहुंचाने के लिए मेट्रो और सड़क पर ग्रीन कोरिडोर बनाने का फैसला लिया गया. बैंगलोर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BMRCL), स्वास्थ्य विभाग और ट्रैफिक पुलिस ने लिवर ट्रांसप्लांट के लिए एक योजना बनाई. इसके जरिए कुछ किमी. की यात्रा मेट्रो से होगी. बाकी दूरी वाया रोड होगी.

इस योजना के लिए निजी अस्पताल से 5.5 किमी दूर व्हाइटफ़ील्ड (कोडुगोडी) मेट्रो स्टेशन तक और आरआर नगर से SPARSH हॉस्पिटल तक पहुंचाने के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया. बेंगलुरु के भयानक ट्रैफिक को देखते हुए स्पर्श अस्पताल ने पहली बार मेट्रो का विकल्प चुना. इससे पहले कर्नाटक में ऐसा कभी नहीं हुआ था. मेट्रो ग्रीन कॉरिडोर के रूप में इस्तेमाल किया गया.

बैंगलोर मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BMRCL) ने इसमें काफी मदद की. लिवर को लेकर चल रही मेट्रो को किसी भी स्टेशन पर नहीं रोका गया. इससे 31 किमी. की दूरी 1 घंटे से कम में पूरी हो गई.  भीड़भाड़ वाले शुक्रवार की शाम सड़क से यह सफर तीन घंटे से अधिक समय ले सकता था.

युवक की बची जान

स्पर्श अस्पताल में लिवर ट्रांसप्लांट एवं HPB सर्जरी के एचओडी और सीनियर कंसल्टेंट डॉ. महेश गोपासेट्टी ने इस बारे में कहा कि समय बेहद अहम था. अगर हम सड़क मार्ग से जाते तो भारी ट्रैफ़िक के कारण ऑर्गन खराब हो सकता था. मेट्रो ने हमें सबसे तेज़ और सुरक्षित ऑप्शन दिया. हम BMRCL और SOTTO कर्नाटक का आभार जताते हैं.

युवक की ट्रांसप्लांट सर्जरी रात भर चली और सुबह लगभग 3 बजे सफलतापूर्वक पूरी हुई. मरीज अब में ICU में है और हालत सही है. सर्जरी के बाद मरीज पोस्ट-ऑपरेटिव देखभाल में है. यह प्रयास SPARSH हॉस्पिटल, SOTTO कर्नाटक (State Organ and Tissue Transplant Organization), मेट्रो अधिकारी जिनमें सुमित भटनागर (डायरेक्टर), सेल्वम (चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर) और रनप्पा (ऑपरेशंस हेड BMRCL) शामिल हैं. इन सभी के बेहतरीन तालमेल से ये मिशन पूरा हुआ.

कर्नाटक में पहली बार

पूरी पर्पल लाइन की सुरक्षा टीम को समय पर सतर्क कर दिया गया. मेट्रो के अंतिम डिब्बे में यात्रियों की अनुमति नहीं थी. यह पूरी तरह SPARSH टीम के लिए था. लिफ्ट और एस्केलेटर को भी ऑर्गन को जल्दी पहुंचाने के लिए खाली रखा गया. नम्‍मा मेट्रो ने अपनी पहली ऑर्गन ट्रांसपोर्ट सेवा दी. चीफ सिक्योरिटी ऑफिसर सेल्वम स्वयं व्हाइटफ़ील्ड मेट्रो से आरआर नगर SPARSH हॉस्पिटल तक टीम के साथ मौजूद रहे.

SPARSH हॉस्पिटल के क्लस्टर सीओओ कर्नल राहुल तिवारी ने कहा, यह सिर्फ राज्य में पहली बार हुई उपलब्धि नहीं. बल्कि इसने दिखाया कि कैसे शहर की मेट्रो प्रणाली इमरजेंसी में लाइफलाइन बन सकती है. यह ऑर्गन डोनर और और मरीज के बीच एक ब्रिज का काम कर सकती है. डॉ. गोपासेट्टी ने कहा कि ऐसे मामले, जहां लिवर और एक जिंदगी मेट्रो में सफर कर रहे हों. हमें याद दिलाते हैं कि जब मेडिकल साइंस, सिविक सिस्टम और मानवीय संवेदना मिलती है तो चमत्कार होते हैं. एक्सपर्ट्स और हेल्थ केयर लीडर्स का  मानना है कि डोनेशन के लेकर जागरूकता बढ़ाना बेहद जरूरी है क्योंकि एक डोनेशन कई जिंदगियां बचा सकता है.

(नागार्जुन की रिपोर्ट)

 

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