What is Trichophagia: बाल खाने की आदत बनी जानलेवा! लड़की के पेट से निकला बालों का गुच्छा, जानिए क्या है ट्राइकोफेजिया... क्यों है ये खतरनाक?

प्रयागराज में 21 साल की युवती के पेट से बालों का गुच्छा निकाला गया. युवती बचपन से बालों को खा रही थी. इससे पेट में बालों का ट्यूमर बन गया था. लड़की को बाल खाने की आदत हो गई थी. डॉक्टरों ने दो घंटे के जटिल ऑपरेशन के बाद पेट से बालों का ट्यूमर निकाला गया.

Trichophagia Disease (Photo Credit: Getty)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 19 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:40 PM IST
  • बालों खाने की आदत बनी जानलेवा
  • युवती के पेट से निकाला गया बालों का गुच्छा
  • बचपन से बाल खाती थी युवती

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में डॉक्टरों ने युवती के पेट से बालों का गुच्छा निकाला. 21 साल की युवती कई सालों से बालों को खा रही थी. युवती को जब भी मौका मिलता था वो अपने बाल खा लेती थी. इससे उसके पेट में बालों का बड़ा गुच्छा बनता जा रहा था. धीरे-धीरे पेट में बालों का ट्यूमर बन रहा था. डॉक्टरों ने ऑपरेशन से युवती के पेट से बालों का ट्यूमर निकालकर जान बचा ली है.  

कैसे लगी बाल खाने की लत?

  • कौशांबी जिले के अंडवा पश्चिम शरीरा सरसावा की रहने वाली मंजू (बदला हुआ नाम) को बाल खाने की आदत बचपन से थी. 
  • मंजू अपने और दूसरों के बाल नोचकर खा जाती थी. इससे धीरे-धीरे उसके पेट में बालों का एक विशाल गुच्छा बन गया. 
  • इसे मेडिकल भाषा में Trichobezoar कहा जाता है. ये मंजू के लिए काफी जानलेवा होता जा रहा था.

बाल कैसे बने जानलेवा?

  • मंजू की बाल खाने की आदत उसके लिए जानलेवा साबित हुई. उसके पेट में बालों ने ट्यूमर का रूप ले लिया.
  • सालों से बाल खाने की वजह से पेट में ट्यूमर बन गया. इससे मंजू को पेट दर्द, उल्टियां, भूख न लगना और वजन कम होने जैसी गंभीर समस्याएं होने लगीं. 
  • परिवार वालों ने मंजू को ठीक कराने के लिए कई अस्पतालों के चक्कर लगाए गए. कई अल्ट्रासाउंड भी कराए गए लेकिन सही बीमारी की पहचान नहीं हो सकी.
  • धीरे-धीरे मंजू की स्थिति बिगड़ती गई. कोई भी डॉक्टर युवती के ऑपरेशन के लिए तैयार नहीं हुआ.

कहां हुआ इलाज?

  • कई सारे अस्पतालों में भटकने के बाद मंजू को प्रयागराज के नारायण स्वरूप हॉस्पिटल लाया गया. 
  • इस अस्पताल में वरिष्ठ सर्जन डॉ. राजीव सिंह, डॉ. विशाल केवलानी, डॉ. योगेंद्र और डॉ. राज मौर्य की टीम ने तुरंत स्थिति को गंभीरता से समझा. 
  • डॉक्टरों ने जोखिम उठाते हुए मंजू का ऑपरेशन करने का फैसला लिया. डॉक्टरों में काफी जटिल ऑपरेशन किया.
  • मंजू के पेट से बालों का लगभग 500 ग्राम वजनी, 1.5 फीट लंबा और 10 सेंटीमीटर मोटा गुच्छा निकला गया. 
  • पेट में बाल आपस में चिपककर एक ठोस ट्यूमर जैसा बन गया था. इस वजह से मंजू को समस्या हो रही थी.
  • बालों के गुच्छे को पूरी तरह से निकालने में लगभग दो घंटे तक ऑपरेशन चला. इसके बाद आंतों की सफाई कर पेट की मरम्मत की गई.

समय पर ऑपरेशन नहीं होता तो क्या होता?

  • विशेषज्ञों के मुताबिक, अगर यह बालों का गुच्छा (Trichobezoar) समय रहते नहीं निकाला जाता तो आंतों में ब्लॉकेज, इंफेक्शन और पाचन तंत्र फेलियर हो सकता था.
  • अगर समय पर ऑपरेशन नहीं होता तो ये जानलेवा बीमारी मौत का कारण भी बन सकती थी.
  • ऑपरेशन के बाद अब मंजू पूरी तरह सुरक्षित हैं. मंजू सामान्य भोजन कर रही है.
  • साथ ही मंजू मानसिक परामर्श भी ले रही हैं ताकि भविष्य में ऐसी मानसिक आदतें फिर न दोहराई जाएं.
  • ऑपरेशन के बाद न सिर्फ उसका स्वास्थ्य बेहतर हुआ है, बल्कि मेंटल हेल्थ में भी सुधार आ रहा है.

क्या है ट्राइकोफैगिया?

  • ट्राइकोफैगिया (Trichophagia) एक मानसिक बीमारी है. इसमें व्यक्ति बाल खाने लगता है. 
  • इस बीमारी में व्यक्ति ऐसी चीजें खाता है जो भोजन योग्य नहीं होती हैं, जैसे मिट्टी, कागज और बाल आदि. 
  • जब कोई लगातार बाल खाता है तो ये बाल पेट में जाकर इकट्ठे हो जाते हैं और Trichobezoar बना लेते हैं. ये आगे जाकर जानलेवा हो सकता है.
  • इस बीमारी में उल्टी और पेट के हिस्से में बार-बार दर्द होता है. इसके अलावा वजन कम होना और दस्त लगना, लक्षण हैं.

ये केस क्यों है बड़ी चेतावनी?

  • इस बीमारी को लेकर डॉ. राजीव सिंह ने कहा, यह केस मेडिकल साइंस के लिए एक अलर्ट और अचीवमेंट दोनों है.
  • नारायण स्वरूप हॉस्पिटल के निदेशक और सीनियर सर्जन डॉ. राजीव सिंह ने बताया, यह केस बेहद चुनौतीपूर्ण था. बालों का गुच्छा निकालना आसान नहीं था क्योंकि थोड़ी सी भी गलती से आंतें फट सकती थीं. 
  • सीनियर सर्जन ने कहा कि ऑपरेशन सफल रहा. अब मरीज पूरी तरह स्वस्थ हैं. यह एक बड़ी मेडिकल अचीवमेंट है.

कैसे बचें?

  • इस बीमारी से बचने के लिए पैरेंट्स को ध्यान देना चाहिए. बच्चों और किशोरों के असामान्य व्यवहार को नजरअंदाज न करें.
  • मेंटल हेल्थ भी उतना ही जरूरी है जितना शारीरिक जरूरी है. समय पर सही मेडिकल और साइकोलॉजिकल हस्तक्षेप जान बचा सकता है. 
  • ऐसी बीमारियों में डॉक्टरों और परिवार, दोनों की भूमिका इलाज में बराबर होती है.

मंजू के पेट से निकाला गया यह ऑपरेशन न सिर्फ मंजू की जान बचाने वाला था बल्कि मानसिक विकारों को समय रहते पहचानने और इलाज कराने की ज़रूरत को भी उजागर करता है. नारायण स्वरूप हॉस्पिटल की डॉक्टरों की टीम ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मेडिकल साइंस और समर्पण जब साथ आते हैं तो चमत्कार होते हैं.

(पंकज श्रीवास्तव की रिपोर्ट)

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