World Breastfeeding Week Special: क्या सर्दी-जुकाम या बुखार में स्तनपान बंद कर देना चाहिए? डॉक्टर से जानें ब्रेस्टफीडिंग से जुड़े Myths और सच्चाई

स्तनपान को लेकर भारत में कई गलत धारणाएं मौजूद हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य और नवजात शिशु के पोषण पर सीधा असर डालती हैं. स्तनपान सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक दायित्व भी है.

Breastfeeding Week
अपूर्वा सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 04 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 4:33 PM IST

हर साल अगस्त के पहले सप्ताह को "विश्व स्तनपान सप्ताह" (World Breastfeeding Week) के रूप में मनाया जाता है. इसका उद्देश्य है- ब्रेस्टफीडिंग को प्रोत्साहित करना, भ्रांतियों को तोड़ना और माताओं के शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाना.

भारत में आज भी कई माताएं स्तनपान से जुड़ी गलतफहमियों के चलते या तो इस प्रक्रिया से घबराती हैं या फिर इससे जुड़ी कई गलत धारणाओं के कारण नवजात को जरूरी पोषण नहीं दे पातीं. ऐसे में GNT डिजिटल ने Dr Batra's Healthcare की Director Medical Services डॉ. बिंदु शर्मा से बात की. उन्होंने स्तनपान से जुड़े कुछ आम मिथकों और उनकी वैज्ञानिक सच्चाई पर रोशनी डाली है.

मिथक 1: क्या स्तनपान करने से महिलाएं शारीरिक रूप से कमजोर हो जाती हैं?
सच्चाई:
यह पूरी तरह एक मिथक है. स्तनपान करने से महिलाओं की कमजोरी नहीं बढ़ती बल्कि यह मां के स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है. हां, थकान या कमजोरी का कारण स्तनपान नहीं, बल्कि संतुलित आहार की कमी, नींद पूरी न होना या खराब शारीरिक मुद्रा हो सकता है.

डॉ. बिंदु बताती हैं कि अगर माताएं थका हुआ महसूस करती हैं तो इसका इलाज मुमकिन है. होम्योपैथिक दवाएं जैसे Calcarea Phosphorica थकान में, Sepia हार्मोनल असंतुलन में, और China Officinalis कमजोरी में मददगार हैं.

स्तनपान न केवल मां और बच्चे के बीच का मजबूत बंधन बनाता है बल्कि मातृत्व को शारीरिक और मानसिक रूप से सशक्त बनाता है.

मिथक 2: क्या पीला गाढ़ा दूध (कोलोस्ट्रम) बच्चे के लिए हानिकारक होता है?
सच्चाई:
यह भी एक गंभीर भ्रम है, खासकर ग्रामीण भारत में. कई महिलाएं मानती हैं कि डिलीवरी के तुरंत बाद निकलने वाला गाढ़ा पीला दूध (Colostrum) नुकसानदायक होता है, लेकिन वैज्ञानिक तथ्य यह है कि कोलोस्ट्रम बच्चे का पहला टीका है.

Colostrum में भरपूर मात्रा में IgA, Lactoferrin, और Growth Factors होते हैं, जो बच्चे की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करते हैं, आंतों के विकास में मदद करते हैं और नवजात पीलिया से भी बचाते हैं.

होम्योपैथी में भी Lac Humanum और Lac Maternum जैसी दवाएं बॉन्डिंग बढ़ाने, दूध बनने की प्रक्रिया को संतुलित करने और शिशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेहतर करने में कारगर मानी जाती हैं.

मिथक 3: क्या सर्दी-जुकाम या बुखार में स्तनपान बंद कर देना चाहिए?
सच्चाई: यह सोच बेहद हानिकारक है. सर्दी-जुकाम या हल्का बुखार होने पर भी स्तनपान जारी रखना चाहिए, क्योंकि उस समय मां के शरीर में जो एंटीबॉडी बन रही होती हैं, वे बच्चे को दूध के जरिए मिलती हैं, जिससे उसका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है.

अगर मां स्तनपान अचानक बंद कर देती हैं तो इससे दूध का बहाव रुक सकता है, जिससे मास्टाइटिस (स्तन में सूजन या संक्रमण) का खतरा बढ़ जाता है.

Aconitum Napellus, Bryonia Alba, और Ferrum Phosphoricum जैसी होम्योपैथिक दवाएं मां को राहत देने और लैक्टेशन में व्यवधान न आने देने में मददगार होती हैं.

मिथक 4: क्या दूध की कमी हो तो स्तनपान बंद कर देना चाहिए?
सच्चाई: नहीं. दूध की कमी को दवाओं, खानपान, आराम और सही स्तनपान तकनीक से दूर किया जा सकता है. होम्योपैथिक चिकित्सा में कई प्राकृतिक और सुरक्षित विकल्प हैं जो दूध की मात्रा बढ़ाने में मदद करते हैं.

  • Pulsatilla: भावनात्मक असंतुलन और कम दूध प्रवाह के लिए
  • Ricinus Communis Q: स्तनपान को प्रोत्साहित करता है
  • Galega Officinalis: दूध की मात्रा बढ़ाता है
  • Calcarea Phosphorica: थकान और पोषण की कमी दूर करता है

इन दवाओं को रजिस्टर्ड होम्योपैथिक डॉक्टर की देखरेख में ही लेना चाहिए. इनसे माताओं को बिना किसी साइड इफेक्ट के दूध उत्पादन में सुधार मिल सकता है.

स्तनपान को लेकर भारत में कई गलत धारणाएं मौजूद हैं, जो महिलाओं के स्वास्थ्य और नवजात शिशु के पोषण पर सीधा असर डालती हैं. स्तनपान सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक भावनात्मक, मानसिक और सामाजिक दायित्व भी है.

 

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