कोरोना काल को शायद ही कोई भूल सकता है. यह वो वक्त था जब न जाने कितनों ने अपनों को खो दिया. लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए भगते फिरते थे. शव अस्पताल में यूंहि पड़े हुए नज़र आते थे. खैर लेकिन कई लोगों ने कोरोना से लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की. पर अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के वैज्ञानिकों ने एक नई रिसर्च में बताया है कि कोरोना संक्रमण के बाद सूंघने की शक्ति पर काफी गहरा असर पड़ता है. उनका कहना है कि पड़ने वाला असर कई लोगों के लिए स्थायी हो सकता है.
क्या आया रिसर्च में नतीजा
डॉ. लियोरा हॉर्विट्ज की टीम ने एक रिसर्च में पाया कि कोरोना से संक्रमित होने के दो साल बाद भी 80% लोग, जिनकी सूंघने की क्षमता बदली थी, गंध पहचानने के परीक्षण में फेल हो गए और लगभग हर चार में से एक व्यक्ति ने या तो गंध पूरी तरह खो दी थी या उसमें गंभीर कमी आ गई थी. सूंघने की शक्ति को पाइव सेंसिस में गिना जाता है. यह किसी भी इंसान के लिए बहुत जरूरी है. इसके जरिए वह पता लगा पाता है कि कोई चीज़ खराब है या सही. लेकिन इसके चले जाने से वह काफी हद फाइव सेंसिस की शक्ति को खो देता है.
गंध पहचानने की शक्ति खत्म क्यों हो जाती है?
डॉ. हॉर्विट्ज के मुताबिक, कोरोना वायरस शरीर के उस हिस्से को प्रभावित करता है, जिसे ओल्फैक्टरी सिस्टम कहते हैं. यही सिस्टम हमारी सूंघने वाली स्मेल नर्व को कंट्रोल करता है. वायरस वहां सूजन पैदा करता है, जिससे स्मेल पहचानने वाले न्यूरॉन्स डेस्ट्रॉय हो जाते हैं. यह स्थिति इतनी गंभीर हो सकती है कि व्यक्ति धुएं, गैस लीकेज या सड़े खाने की स्मेल तक महसूस नहीं कर पाता. डॉ. हॉर्विट्ज कहती हैं 'आप धुआं नहीं सूंघ पाएंगे, गैस लीक नहीं पहचानेंगे, सड़ा खाना भी नहीं समझ पाएंगे. यह रोजमर्रा की जिंदगी के लिए बड़ा खतरा है.'
क्या सूंघने की क्षमता वापस लाई जा सकती है?
वैज्ञानिक इस दिशा में काम कर रहे हैं. स्टडी में कहा गया कि कुछ उपाय मदद कर सकते हैं. विटामिन ए सप्लीमेंट्स, तंत्रिका पुनर्निर्माण में सहायता कर सकते हैं. ब्रेन को दुबारा गंध पहचानने की ट्रेनिंग देना भी फायदेमंद हो सकता है.
नई स्टडी हमें याद दिलाती है कि कोरोना का असर सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं है. गंध जैसी सामान्य लगने वाली चीज भी हमारी सुरक्षा, स्वाद और मानसिक स्वास्थ्य से गहराई से जुड़ी है. अगर कोरोना के बाद आपकी सूंघने की शक्ति कम हो गई है, तो इसे हल्के में न लें.