Independence Day 2025: 26 जनवरी को चुना गया था स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने का दिन, फिर क्यों बदला गया? जानिए क्या था कारण

आज की पीढ़ी में बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी 26 जनवरी को ‘स्वतंत्रता दिवस’ कहा जाता था. इस इतिहास को जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह हमें बताता है कि आज़ादी सिर्फ एक दिन की घटना नहीं थी, बल्कि वर्षों के संघर्ष, बलिदान और रणनीति का परिणाम थी.

स्वतंत्रता दिवस इतिहास
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 15 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 11:17 AM IST

भारत में 15 अगस्त का नाम सुनते ही देशभक्ति की लहर दौड़ जाती है. तिरंगा फहराने से लेकर देशभक्ति के गीतों तक, यह दिन आज़ादी का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आज़ादी से पहले हमारे देश में स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को नहीं, बल्कि 26 जनवरी को मनाया जाता था? और इसके पीछे की कहानी इतनी दिलचस्प है कि आपको इतिहास के पन्नों में ले जाएगी.

आज हम आपको बताएंगे कि आखिर क्यों 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना गया, फिर 1947 में आजादी मिलने के बाद यह तारीख गणतंत्र दिवस में कैसे बदल गई.

1929 का लाहौर सत्र

साल था 1929, जगह थी लाहौर, और मंच पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन चल रहा था. इस अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे थे पंडित जवाहरलाल नेहरू.

यहीं पर कांग्रेस ने ब्रिटिश हुकूमत को साफ संदेश दे दिया कि अब हम ‘डोमिनियन स्टेटस’ यानी आधी-अधूरी आज़ादी नहीं, बल्कि पूर्ण स्वराज चाहते हैं.

31 दिसंबर 1929 की रात 12 बजे, रावी नदी के किनारे तिरंगा फहराया गया और 26 जनवरी 1930 को देशभर में पहली बार ‘स्वतंत्रता दिवस’ मनाने की घोषणा कर दी गई. उस दिन लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश शासन को अस्वीकार करते हुए शपथ ली कि जब तक पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिलती, संघर्ष जारी रहेगा.

क्यों चुनी गई थी 26 जनवरी की तारीख?

26 जनवरी कोई यूं ही चुनी गई तारीख नहीं थी. कांग्रेस का मानना था कि साल की शुरुआत में स्वतंत्रता की घोषणा से आंदोलन को नया जोश मिलेगा.

इस दिन को ऐसा प्रतीक बनाना था जो हर भारतीय को आजादी की याद दिलाए और प्रेरित करे. यही वजह थी कि 1930 से लेकर 1946 तक हर साल 26 जनवरी को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया.

15 अगस्त क्यों बना आजादी का दिन?

1947 में जब आज़ादी की घड़ी नज़दीक आई, तब सवाल था- किस दिन को स्वतंत्रता दिवस के रूप में घोषित किया जाए?

ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने भारत की सत्ता हस्तांतरण की तारीख 15 अगस्त 1947 तय की. इसके पीछे दो वजहें मानी जाती हैं-

  • 15 अगस्त 1945 को जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध में सरेंडर किया था, जो ब्रिटेन के लिए बड़ी जीत थी.
  • लॉर्ड माउंटबेटन, भारत के अंतिम वायसराय, इसी दिन को शुभ मानते थे.

इस तरह, भारत को आज़ादी 15 अगस्त को मिली और यह दिन आधिकारिक ‘स्वतंत्रता दिवस’ बन गया.

तो 26 जनवरी का क्या हुआ?

देश को आज़ादी मिल गई थी, लेकिन नेताओं को लगता था कि 26 जनवरी का ऐतिहासिक महत्व बनाए रखना जरूरी है.

संविधान सभा ने फैसला किया कि भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया जाएगा, ताकि इस तारीख की पहचान हमेशा के लिए इतिहास में दर्ज रहे.

इस तरह, 26 जनवरी अब ‘स्वतंत्रता दिवस’ नहीं, बल्कि गणतंत्र दिवस बन गया- वो दिन जब भारत ने दुनिया के सामने खुद को एक संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया.

1930 से 1946 तक कैसा था 26 जनवरी का जश्न?

अंग्रेजों के शासन में 26 जनवरी के कार्यक्रम बेहद खास होते थे-

  • जगह-जगह तिरंगा फहराया जाता था.
  • ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया जाता था.
  • आज़ादी के गीत और भाषण से लोगों में जोश भरा जाता था.
  • युवा, महिलाएं और बच्चे तक इस दिन जुलूसों और सभाओं में शामिल होते थे.

ये आयोजन न सिर्फ आजादी की मांग को मज़बूत करते थे, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकता का प्रतीक बन गए थे.

आज के समय में 26 जनवरी और 15 अगस्त का फर्क

  • 15 अगस्त: वह दिन जब भारत ने ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से मुक्ति पाई.
  • 26 जनवरी: वह दिन जब भारत ने खुद को अपना संविधान देने का अधिकार जताया और पूरी तरह से गणराज्य बना.

दोनों दिन अपने-अपने तरीके से महत्वपूर्ण हैं- 15 अगस्त स्वतंत्रता की जीत का प्रतीक है, जबकि 26 जनवरी उस स्वतंत्रता की पूर्णता का उत्सव है.

क्यों याद रखना जरूरी है 26 जनवरी का असली इतिहास?

आज की पीढ़ी में बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी 26 जनवरी को ‘स्वतंत्रता दिवस’ कहा जाता था.

इस इतिहास को जानना इसलिए जरूरी है क्योंकि यह हमें बताता है कि आज़ादी सिर्फ एक दिन की घटना नहीं थी, बल्कि वर्षों के संघर्ष, बलिदान और रणनीति का परिणाम थी.

 

 

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