बिहार में इन दिनों सरकारी दस्तावेजों की साख पर सवाल खड़े हो गए हैं. पहले मधेपुरा में एक महिला के वोटर ID पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की फोटो छपी, फिर मुंगेर में एक ट्रैक्टर के नाम से आवासीय प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया. अब पटना जिले के बाढ़ अनुमंडल से और भी चौंकाने वाला मामला सामने आया है. यहां एक ब्लूटूथ डिवाइस (एयरपॉड) के नाम से निवास प्रमाण पत्र बना दिया गया.
इस मामले में सबसे हैरानी की बात यह है कि ये प्रमाण पत्र सरकारी वेबसाइट पर भी अपलोड कर दिया गया और अब इसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या अब सरकारी प्रमाण पत्र सिर्फ एक फार्म भरने से मिल जाते हैं?
क्या लिखा है ब्लूटूथ के निवास प्रमाण पत्र में?
बाढ़ अंचल कार्यालय की ओर से जारी इस प्रमाण पत्र में लिखा गया है "प्रमाणित किया जाता है कि ब्लूटूथ (नॉयज), पिता- ईस्टवुड ब्लूटूथ, माता- ईस्टवुड, ग्राम- अगवनपुर, वार्ड संख्या-16, डाकघर- बाढ़, पिनकोड-803213, थाना-बाढ़, अनुमंडल-बाढ़, जिला-पटना, राज्य-बिहार के स्थायी निवासी हैं."
यह प्रमाण पत्र 12 जुलाई को सरकारी पोर्टल पर अपलोड किया गया है. फोटो में ब्लूटूथ एयरपॉड लगा हुआ है और नाम भी 'ब्लूटूथ' ही दर्ज है. लोग पूछ रहे हैं कि क्या अब मशीनों को भी दस्तावेज मिलने लगे हैं.
मुंगेर में ट्रैक्टर के नाम से जारी हुआ निवास प्रमाण पत्र
मुंगेर के सदर प्रखंड में भी ठीक वैसी ही लापरवाही देखने को मिली. यहां एक व्यक्ति ने ‘सोनालिका चौधरी’ नाम से आवेदन किया, पिता का नाम 'बेगूसराय चौधरी' और मां का नाम 'बलिया देवी' लिखा. आवेदन के साथ एक ट्रैक्टर की तस्वीर अपलोड की गई और पता ‘ट्रैक्टरपुर दियारा’ बताया गया.
अगले ही दिन, 8 जुलाई को सदर राजस्व अधिकारी की ओर से बिना किसी जांच के यह आवासीय प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया. इसके बाद जब मामला सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, तो हड़कंप मच गया. मुंगेर प्रशासन ने इस मामले में डेटा एंट्री ऑपरेटर से जवाब मांगा है और प्रमाण पत्र को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की है. वहीं, पटना के मामले में अब तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है.
इन दोनों मामलों के सामने आने के बाद लोगों ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी है. यूजर्स का कहना है कि आम आदमी अगर आवेदन करता है, तो एक-एक दस्तावेज की जांच होती है. कभी नाम गलत तो कभी फोटो. यहां ट्रैक्टर और ब्लूटूथ को इतनी आसानी से प्रमाण पत्र मिल रहा है, तो व्यवस्था किसके लिए है?
एक ओर आम आदमी को दस्तावेज़ों के लिए धक्के खाने पड़ते हैं, वहीं दूसरी ओर एक ट्रैक्टर और ब्लूटूथ को सरकारी प्रमाण पत्र मिलना डिजिटल वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े करती है.