भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने वर्ल्ड माउंटेन फंड इंडिया के साथ मिलकर दिल्ली के महरौली पुरातत्व पार्क में मौजूद 16वीं सदी की राजों की बावली (Rajon ki Baoli) के संरक्षण का काम पूरा कर लिया है. वर्ल्ड माउंटेन फंड इंडिया देश भर में ऐतिहासिक जल निकायों को संरक्षित करने की कोशिश कर रही है, ताकि क्लाइमेट चेंज से जुड़ी आधुनिक चुनौतियों का सामना किया जा सके. यह भी उसी पहल का हिस्सा है.
महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क दिल्ली का वह हिस्सा है जो कई रियासतों की कहानी सुनाता है. राजों की बावली इसी पार्क में मौजूद है. खास बात यह है कि इसका इतिहास भी बहुत रोचक है.
बाबर को भारत बुलाने वाले ने बनवाई
राजों की बावली का निर्माण इब्राहिम लोदी के दौर में हुआ था. इसे 16वीं शताब्दी में पंजाब के तत्कालीन गवर्नर दौलत खान ने बनवाया था. वही दौलत खान, जिसने मुग़ल बादशाह बाबर को भारत बुलाकर इस क्षेत्र का इतिहास बदलने में अहम भूमिका निभाई. दरअसल दौलत ख़ान ने ही 16वीं शताब्दी में बाबर को भारत बुलाया था. दौलत को उम्मीद थी कि लोदी की हार और बाबर की जीत के बाद पंजाब उसके हवाले हो जाएगा. हालांकि बाबर की जीत के बाद दौलत को देश से निकाल दिया गया और वह दोबारा भारत नहीं लौट सका.
राजमिस्त्रियों पर रखा गया नाम
इस बावली की एक और खास बात यह है कि भले ही इसे लोदी के एक गवर्नर ने बनवाया, लेकिन इसका नाम उन राजमिस्त्रियों के ऊपर रखा गया है जो यहां आकर बसे और इसका पानी इस्तेमाल करते थे.
इतिहासकार शाह उमैर के हवाले से द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है, "राजों नाम उन राजमिस्त्रियों से आया है जो बावली में रहते थे और इसका पानी इस्तेमाल करते थे. उन्हें राज मिस्त्री कहा जाता था, इसलिए बावली को 'राजों की बावली' कहा जाता है."
करीब 400 साल बाद यूपी और हरियाणा से कई लोग महरौली में आकर बस गए और इस बावली में ही रहने लगे. देखते-देखते यह बावली एक बस्ती बन गई. रिपोर्ट बताती है, "जब 20वीं सदी में उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलग-अलग हिस्सों से लोग महरौली में शिफ्ट होने लगे, तो इसे एक बस्ती बना दिया गया और बहुत से लोग बावली परिसर में रहने लगे."
एएसआई की मेहनत से निखरा वीराना
राजों की बावली एक वीराना कैसे बन गई, इसकी कोई ठोस टाइमलाइन मौजूद नहीं है. लेकिन दिल्ली के कई ऐतिहासिक स्थलों की तरह इसे भी देखरेख की ज़रूरत थी, जो एएसआई और वर्ल्ड माउंटेन फंड इंडिया के साथ आने से मुमकिन हो पाया. पीटीआई की एक रिपोर्ट बताती है कि राजों की बावली के संरक्षण के लिए सबसे पहले पारंपरिक तरीकों से गाद निकाला गया. इसकी मरम्मत की गई, फिर पानी की गुणवत्ता में सुधार किया गया.
लोदी वंश की वास्तुकला की अखंडता को बनाए रखने के लिए चूने का प्लास्टर और मोर्टार लगाया गया, साथ ही नया ड्रेनेज सिस्टम बनाया गया. पानी की प्राकृतिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए उसमें मछलियां भी डाली गईं. उम्मीद है कि यह मेहनत पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकेगी.