हौसलों की उड़ान! कुल चार दिनों में सुरेश ने तय कर लिया माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक का सफर, औरों को लगते हैं 20 दिन

सुरेश ने एवरेस्ट ट्रेक के लिए अपनी यात्रा विशाखापत्तनम से दिल्ली के रास्ते नेपाल में काठमांडू तक शुरू की. उनका सोलो मैराथन ट्रेक 20 दिसंबर को नेपाल के लुक्ला से शुरू हुआ और 24 दिसंबर को एवरेस्ट कैंप पर खत्म हुआ. 

Suresh babu
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 20 जनवरी 2022,
  • अपडेटेड 9:16 AM IST
  • हर दिन किया 10 घंटे तक का सफर
  • काला पत्थर पर भी की ट्रेकिंग

कहते हैं अगर हौसला और जज़्बा हो तो क्या कुछ हासिल नहीं किया जा सकता है. ऐसे ही देश एक पर्वतारोही ने कुल चार दिनों में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचकर इतिहास रच दिया है. विशाखापत्तन के एसवीएन सुरेश बाबू चार दिनों में माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचने वाले सबसे तेज एकल ट्रेकर बन गए हैं. ऐसा पहली बार जब किसी ने इतनी तेजी से ये सफर तय किया हो.

देश का गौरव बढ़ाते हुए, उन्होंने समुद्र तल से 5,364 मीटर की ऊंचाई को छूकर इतने कम समय में उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतीय के रूप में अपनी पहचान बना ली है.

20 को चले 24 दिसंबर तक पहुंच गए बेस कैंप  

सुरेश ने एवरेस्ट ट्रेक के लिए अपनी यात्रा विशाखापत्तनम से दिल्ली के रास्ते नेपाल में काठमांडू तक शुरू की. उनका सोलो मैराथन ट्रेक 20 दिसंबर को नेपाल के लुक्ला से शुरू हुआ और 24 दिसंबर को एवरेस्ट कैंप पर खत्म हुआ. 

हर दिन किया 10 घंटे तक का सफर 

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, माइनस 20 डिग्री सेल्सियस जैसे बर्फ जमा देने वाले तापमान और ऊंचाई पर केवल 40 प्रतिशत ऑक्सीजन जैसी स्थितियों के साथ, सुरेश बाबू ने चट्टानी और बर्फीले इलाकों में हर दिन लगभग 10 घंटे चलकर चार दिनों में बेस कैंप ट्रेक पूरा किया है. उन्होंने चार दिनों में सफलतापूर्वक ट्रेक पूरा किया, जिसमें आमतौर पर 15 से 20 दिनों के बीच लगते हैं.

सुरेश बाबू ने बताया कि वे पिछले कई साल से इसकी तैयारी कर रहे हैं. वे कहते हैं, "पिछले कुछ वर्षों में जिम में नियमित ट्रेनिंग और पूर्वी घाटों में ट्रेकिंग ने मेरे शरीर और दिमाग को इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए तैयार किया है."

काला पत्थर पर भी की ट्रेकिंग

मैराथन ट्रेक प्रोग्राम के वॉक शेड्यूल का प्रबंधन नेपाल के एक्यूट एडवेंचर इंस्टीट्यूट द्वारा किया गया था. एवरेस्ट कैंप ट्रेक पूरा करने के बाद, सुरेश ने काला पत्थर समुद्र तल से 5,550 मीटर की ऊंचाई पर भी ट्रेकिंग की. उनका ये ट्रेक 1 जनवरी को समाप्त हुआ जब वह काठमांडू लौटे. 
 

 

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