नाती-पोते लौटाते हैं बुजुर्गों का बचपन, सेहत पर पड़ता है सकारात्मक असर... खुशी के साथ मिलता है स्वस्थ जीवन

नाती-पोतों के साथ समय बिताने से बुजुर्गों की खुशी, मानसिक सेहत और सामाजिक जुड़ाव बढ़ता है. जानें कैसे दादा-दादी सक्रिय, स्वस्थ और दीर्घायु बन सकते हैं, और पोते-पोती न होने पर भी इन फायदों का आनंद ले सकते हैं.

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gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 07 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:00 PM IST

जब परिवार में नया बच्चा आता है, तो केवल माता-पिता ही नहीं, बल्कि दादा-दादी और नाना-नानी की दुनिया भी पूरी तरह बदल जाती है. जो बुजुर्ग पहले टीवी के सामने घंटों बैठे रहते थे, वही अब बच्चों के साथ खेलते, हंसते दिखाई देते हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि नाती-पोतों का होना बुजुर्गों की सेहत और मानसिक स्थिति पर गहरा सकारात्मक असर डालता है. 

अकेलेपन से राहत और ज्यादा खुशी
दैनिक भास्कर की एक खबर के अनुसार शिकागो के सेंट बर्नार्ड हॉस्पिटल की डॉ. कानरामोन कहती हैं कि पोते-पोतियों के साथ समय बिताने से बुजुर्गों को अकेलेपन से राहत मिलती है. वे अधिक खुश और मानसिक रूप से मजबूत महसूस करते हैं. बच्चों के साथ भावनात्मक जुड़ाव से शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं, जिससे खुशी और संतोष की भावना बढ़ती है.

बेहतर शारीरिक स्वास्थ्य
बच्चों के साथ खेलना, पार्क जाना या घर में उनके पीछे भागना. ये सभी गतिविधियां बुजुर्गों को पहले से ज्यादा सक्रिय बना देती हैं. जिससे कि उनका शरीर काफी सक्रिय हो जाता है. जिससे उनकी सेहत बेहतक रहती है.

वजन नियंत्रित रखने में मदद
उनकी हड्डियां और जोड़ मजबूत रहते हैं, डिप्रेशन की संभावना कम हो जाती है. डॉ. कानरामोन के अनुसार बच्चों की देखभाल करने वाले बुजुर्ग अन्य लोगों की तुलना में ज्यादा चुस्त और ऊर्जावान रहते हैं.

मानसिक क्षमता में सुधार
बच्चों के साथ समय बिताने से दादा-दादी नई चीजें सीखते हैं—कभी होमवर्क में मदद करते हैं, तो कभी गैजेट्स चलाना सीखते हैं. डॉ. मारिया कानीं कहती हैं कि यह दिमाग को सक्रिय रखता है और खासकर दादियों की बौद्धिक क्षमता को बेहतर करता है.

सामाजिक जुड़ाव का नया अवसर

  • बच्चों के साथ जुड़ना सिर्फ पारिवारिक रिश्ता नहीं, बल्कि सामाजिक जुड़ाव का जरिया भी है.
  • नई गतिविधियों और कार्यक्रमों में भाग लेने से बुजुर्ग नए लोगों और संगठनों से जुड़ते हैं. इससे सामाजिक अलगाव कम होता है, जो उम्र बढ़ने पर मानसिक गिरावट का बड़ा कारण होता है.
  • शोध से साबित हुआ है कि पोते-पोतियों की देखभाल करने वाले बुजुर्गों में 20 वर्षों में मृत्यु का खतरा दूसरों की तुलना में कम होता है.

परंपरा और संस्कार आगे बढ़ाने का मौका
दादा-दादी अपने अनुभव और कहानियों से अगली पीढ़ी को न केवल संस्कार देते हैं, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली भी सिखाते हैं.

  • हेल्दी भोजन
  • टहलना और खेल
  • किताबें पढ़ना और शैक्षिक कार्यक्रम देखना
  • पारिवारिक परंपराएं और खास रेसिपी

इससे बच्चों को अपनी जड़ों से जुड़ाव महसूस होता है और बुजुर्गों को गहरा संतोष मिलता है.

अगर पोते-पोती नहीं हैं तो भी…
विशेषज्ञ कहते हैं कि इन फायदों का संबंध केवल खून के रिश्तों से नहीं है. आप चाहें तो स्थानीय स्कूलों और क्लबों में मेंटर बन सकते हैं. लाइब्रेरी या हॉस्पिटल में वॉलेंटियर कर सकते हैं. भतीजे-भतीजियों या दोस्तों के बच्चों से दादा-दादी जैसा रिश्ता बना सकते हैं. इस तरह भी बुजुर्ग सक्रिय, खुश और स्वस्थ रह सकते हैं.

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