सह्याद्री की गोद में बसा लौह-किला, जहां छुपा था शिवाजी का खजाना, UNESCO ने दिया अंतर्राष्ट्रीय दर्जा 

लोहगढ़ यानी "लोहा जैसा मज़बूत किला". इसकी बनावट, ऊंचाई और सुरक्षा प्रणाली देखकर साफ समझ आता है कि इसे यह नाम क्यों मिला. इस किले की तलहटी में आपको छत्रपति शिवाजी महाराज की भव्य मूर्ति भी देखने को मिलेगी, जो हर आगंतुक के मन में गर्व और उत्साह भर देती है.

लोहगढ़ किला
gnttv.com
  • पुणे,
  • 18 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 12:37 PM IST

छत्रपति शिवाजी महाराज के 12 गौरवशाली किलों को हाल ही में यूनेस्को ने विश्व धरोहर सूची में शामिल कर अंतरराष्ट्रीय मान्यता दी है. यह न केवल भारत बल्कि सभी शिवप्रेमियों के लिए गर्व का क्षण है. इन 12 किलों में से तीन पुणे जिले में स्थित हैं.

लोहगढ़ किला पुणे से लगभग 52 किलोमीटर दूर है. आप यहां पुणे-मुंबई एक्सप्रेसवे या पुराने हाईवे से आसानी से पहुंच सकते हैं. नज़ारे इतने खूबसूरत हैं कि कार से यात्रा करते हुए दोनों ओर फैली हरियाली और झरने आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे. लोहगढ़ का सबसे नज़दीकी रेलवे स्टेशन मलवली है, जो किले से लगभग 5 किलोमीटर दूर है. बहुत से शिवप्रेमी और ट्रेकर्स यह दूरी पैदल ही तय करते हैं, और रास्ते में मिलने वाले झरनों और पहाड़ियों के साथ यह यात्रा एक अविस्मरणीय अनुभव बन जाती है.

लोहगढ़ क्यों है खास?
लोहगढ़ यानी "लोहा जैसा मज़बूत किला". इसकी बनावट, ऊंचाई और सुरक्षा प्रणाली देखकर साफ समझ आता है कि इसे यह नाम क्यों मिला. इस किले की तलहटी में आपको छत्रपति शिवाजी महाराज की भव्य मूर्ति भी देखने को मिलेगी, जो हर आगंतुक के मन में गर्व और उत्साह भर देती है.

यह किला 1,033 मीटर समुद्र तल से ऊंचाई पर स्थित है और यहां पहुंचने के लिए एक कठिन लेकिन रोमांचक चढ़ाई करनी पड़ती है. रास्ते में आपको गणेश द्वार, नारायण द्वार, हनुमान द्वार और अंत में महाद्वार दिखाई देंगे- ये सभी द्वार अद्भुत स्थापत्य और रक्षा के लिहाज से उत्कृष्ट उदाहरण हैं.

शिवाजी महाराज और लोहगढ़ का ऐतिहासिक संबंध
इतिहासकार गजानन मंडावरे के अनुसार, यह किला पहले यादव वंश के दौरान बनाया गया था. बाद में यह निज़ामशाही और आदिलशाही के अधीन रहा. लेकिन वर्ष 1657 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस किले पर अधिकार कर लिया.

जब शिवाजी महाराज ने सूरत पर हमला किया था और वहां से कीमती हीरे-जवाहरात, सोना और धन लाया गया था, तो उसे इसी किले की 'लक्ष्मी कोठी' में सुरक्षित रखा गया था. यानी यह किला सिर्फ युद्ध की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राजकोष के रूप में भी बेहद अहम था.

पुरातत्व विभाग की मेहनत और वर्तमान स्थिति
आज किले पर चढ़ते समय एक विश्राम स्थल भी देखने को मिलता है, जिसे भारतीय पुरातत्व विभाग ने तैयार किया है. इस पत्थर के प्लेटफॉर्म को बनाने के लिए 500 किलो से ज्यादा वजन के पत्थर सीढ़ियों से ऊपर लाए गए थे.

किले में गुप्त दरवाज़े, ऊंचाई से दुश्मन पर नज़र रखने के लिए बनाए गए विशेष खिड़कियां, और सुरक्षा के लिए उकेरे गए रास्ते- सब कुछ इस बात का प्रमाण हैं कि यह किला न सिर्फ सुंदर बल्कि रणनीतिक रूप से भी बेजोड़ है.

युवा शिवप्रेमियों का उत्साह
किले पर पहुंचने वाले पर्यटक और शिवप्रेमी खास अनुभव साझा करते हैं. युवा शिवप्रेमी अमृता मुल्के कहती हैं, "हमारे लिए ये सिर्फ एक किला नहीं, बल्कि गर्व और प्रेरणा का स्रोत है."

ऋतुजा सावंत और हैदराबाद से आए मोहम्मद सौफुद्दीन भी इस किले की भव्यता और इतिहास से अभिभूत हैं.

क्या कहता है यूनेस्को का दर्जा?
यूनेस्को द्वारा 12 किलों को विश्व धरोहर में शामिल करने से इनका संरक्षण, प्रचार और पर्यटन में बढ़ोतरी होना तय है. लेकिन इसके साथ-साथ अब सरकार की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है कि इन किलों की देखभाल अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार की जाए.

लोहगढ़ किला केवल एक प्राचीन इमारत नहीं, बल्कि छत्रपति शिवाजी महाराज की रणनीति, शक्ति और विरासत का प्रतीक है. यह किला ना केवल इतिहास में दिलचस्पी रखने वालों के लिए, बल्कि हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है.

(श्रीकृष्ण पांचाल की रिपोर्ट) 

 

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