Madhya Pradesh: दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करते-करते हथेलियों की लकीरें मिटीं... नहीं हो पा रही E-KYC... सरकारी राशन मिलना हुआ बंद

भिंड की मीना खान पेट पालने के लिए दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करती हैं. बर्तन मांजते-मांजते उनकी हथेलियों की लकीरें मिट गईं हैं और अब इसी वजह से उन्हें सरकारी राशन नहीं मिल रहा. घर में कोई कमाने वाला नहीं है. खाने तक को लाले पड़े हैं.

Meena Khan
gnttv.com
  • भिंड,
  • 18 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 6:20 PM IST
  • भिंड की मीना खान राशन नहीं मिलने से हैं परेशान
  • घर में कोई और नहीं है कमाने वाला

सोचिए… जिन हाथों ने जिंदगीभर दूसरों के घरों में झाड़ू-बर्तन किए, उन्हीं हाथों की लकीरें आज मिट चुकी हैं. जिन उंगलियों से पहचान होती थी, वे अब सिस्टम में 'फेल' हो चुकी हैं. नतीजा, पात्र होने के बावजूद कई गरीब, बुजुर्ग और दिव्यांग सरकार के मुफ्त राशन से वंचित हो रहे हैं. हालांकि सरकार का दावा है कि ऐसे लोगों के लिए विकल्प मौजूद है लेकिन फिलहाल सच्चाई यही है कि उनका हक का अनाज उनसे दूर है. 

घर में कमाने वाला कोई नहीं
भिंड की मीना खान, चेहरा झुर्रियों से भरा, उम्र ढल चुकी है, मगर पेट पालने के लिए अब भी दूसरों के घरों में चौका-बर्तन करती हैं लेकिन बर्तन मांजते-मांजते उनकी हथेलियों की लकीरें ही मिट गईं और अब उसी वजह से उन्हें राशन भी नहीं मिल रहा. मीना खान ने बताया कि कमाने वाला कोई नहीं है, हम झाड़ू बर्तन करते हैं पूरी जिंदगी ऐसे ही निकल गई अब बुढ़ापा आ गया तो कोई सहारा देने वाला नहीं है. बर्तन मांजने से हाथेलियां खराब हो गई हैं. तीन महीने से गेहूं नहीं मिले हैं. अंगूठा नहीं लग रहा. बहुत दिनों से हाथ खराब की वजह से आता ही नहीं है अंगूठा. बहुत कोशिश की. अंगूठे की लकीरें खत्म हो गई हैं. ऐसा बर्तन मांजने से हुआ है. वह कहती हैं गेहूं मिलने लगे तो बुढ़ापे का सहारा बने क्योंकि घर में कोई कमाने वाला नहीं है. मंगलवार को जनसुनवाई में शिकायत भी की थी कुछ नहीं हुआ. दो बार कागज दिए थे कोई सुनवाई नहीं हुई. ऐसे तो मेरी स्थिति और खराब हो जाएगी कुछ खाने को नहीं मिलेगा.

तीन महीने से राशन है बंद 
मीना अकेली नहीं है, नयापुरा की दिव्यांग युवती बाई भी इसी समस्या से जूझ रही हैं. बाई खुद से बिस्तर से उठ भी नहीं सकती, लेकिन उनका भी राशन तीन महीने से बंद है क्योंकि मशीन उनके हाथों को पहचान नहीं पा रही. उनकी मां सज्जी का कहना है कि दो लड़के और तीन लड़कियां हैं. दो लड़कियों की शादी हो गई. अब एक दिव्यांग लड़की बची है. इसको गल्ला नहीं मिला है. तीन महीने से बच्चे ही कमाते हैं, आदमी है नहीं है. छह साल हो गए. कुछ पेंशन मिल जाती है, उसी से घर चल रहा है. तीन महीने से गल्ला नहीं मिला है. आधार कार्ड अपडेट नहीं है. अपनी दिव्यांग लड़की को कहां ले जाएं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. लड़के पढ़े-लिखी नहीं हैं. कचहरी में गए थे, उन्होंने कार्ड बना कर दे दिया, उससे भी राशन नहीं मिला. कोई सुनवाई नहीं हो रही है.

...तो ऐसे ले सकते हैं राशन 
सवाल यही है कि मशीन कब आएगी? और तब तक इन गरीबों का पेट कैसे भरेगा? सिस्टम की तकनीकी खामियों और सुस्ती के बीच सबसे बड़ी कीमत वही चुका रहे हैं, जिनका जीवन पहले से ही संघर्षों से भरा है. वहीं इस बारे में मध्य प्रदेश के खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री गोविंद सिंह राजपूत से बात की गई तो उन्होंने कहा कि ऐसे लोग जो बायोमेट्रिक मैच ना हो पाने के चलते राशन नहीं ले पा रहें, उनके लिए हमारे विभाग ने व्यवस्था की है कि वो अपने परिवार के किसी एक सदस्य को अपना नॉमिनि घोषित कर उनकी केवाईसी से राशन ले सकते हैं. इस संबंध में अधिकारियों को दिशा-निर्देश जारी किए जा चुके हैं. सरकार कहती है कि ऐसे लोग नॉमिनी के जरिए राशन ले सकते हैं, लेकिन फिलहाल हकीकत यही है कि भिंड के मीना और बाई जैसे लोग अपने हिस्से के अनाज से महरूम हैं और भूख के सामने सिस्टम खड़ा हो गया है, जिसका हल जल्द निकालना बेहद जरूरी है.

(रवीश पाल सिंह/हेमंत शर्मा की रिपोर्ट)

 

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