गैस, आर्थराइट्स जैसी बीमारियों में लाभकारी है कठिया गेहूं, इससे बना सकते हैं दलिया, बिस्किट जैसे उत्पाद

बांदा जिले का कठिया गेहुं सेहत के लिए लाभकारी है और बहुत से किसान इसे प्राकृतिक तरीके से उगाकर लोगों को उपलब्ध करा रहे हैं. हालांकि, पिछले कुछ सालों से इसका उत्पादन बहुत कम हुआ है.

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gnttv.com
  • बांदा,
  • 08 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 3:01 PM IST
  • दलिया के रूप में खाने के लिए भी उपयोग होता है कठिया गेहूं
  • बाजार में इसकी कीमत 3,500 रु प्रति कुंतल है

यूपी के बुंदेलखंड में उगने वाला कठिया गेंहू पूरे देश मे प्रसिद्ध है. इस गेहूं को यहां के किसान ऑर्गेनिक विधि से उगाते हैं. इसका दलिया के रूप में खाने के लिए भी उपयोग होता है. इसकी उत्पादकता बढ़ाने और ODOP में शामिल कराने के लिए बांदा में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया. वर्कशाप में सैकडों किसानों ने भाग लिया और इसके फायदे और खेत मे पैदावार, उत्पादन की विधि बताकर अन्य किसानों को प्रेरित किया. 

क्यों कम हो रहा है कठिया गेहूं का उत्पादन
कठिया गेंहू पैदा करने वाले प्रगतिशील किसान अवधबिहारी ने बताया कि कठिया गेंहू के उत्पादन, इसके गुण-अवगुण आदि के संबंध में एक मीटिंग का आयोजन किया गया. साथ ही, इसको कैसे बढ़ावा दिया जाए इस संबंध में भी चर्चा हुई.  कठिया गेंहू का उत्पादन दो कारणों से बंद हुआ. 

पहला कारण इसका उत्पादन कम होता था और यह पैदावार की दृष्टि से भी कम था. जो नई तकनीकी के गेंहू आ रहे हैं उनमें पैदावार ज्यादा होता है. उस वजह से किसान अब इसे नहीं उगाते हैं. दूसरी बात है कि कठिया गेंहू में तमाम रस्ट भी लगता था. जिसे गेरुवा भी बोलते हैं. जिससे इसका उत्पादन कम होता था और गेंहू नष्ट हो जाता था. जिस कारण किसानों ने इसे बोना बन्द कर दिया.  

स्वास्थ्य के लिए है लाभदायक
हालांकि, इस गेंहू में बहुत से गुण हैं. इसका दलिया खाने से गैस की बीमारी, और अर्थराइटिस नही होता है. इसकी रोटी खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है. इसमें भरपूर मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन A, फाइबर, ऑक्सीडेंट भी मौजूद हैं. लेकिन अच्छा भाव न मिलने के कारण किसानों ने इसे बोना बन्द कर दिया. 

कठिया गेंहू का उपयोग
कठिया गेंहू की खेती बुंदेलखंड में पुरानी है. इसका उपयोग बिस्किट, सूजी, दलिया, उपमा आदि के रूप में किया जाता है. साथ ही, दक्षिण भारत में लोग इसको नाश्ते के रूप में प्रयोग करते हैं. इसकी उत्पादकता प्रति बीघे 2 कुंतल से 25 कुंतल तक है. बाजार में इसकी कीमत 3,500 रु प्रति कुंतल है और करीब 135 दिन में कम पानी मे भी उगाया जा सकता है.  

जिला प्रशासन दे रहा है बढ़ावा
इस बार डीएम ने कार्यशाला आयोजित कर इस गेंहू को ब्रांड के नाम से बनाकर बढ़ावा देने की बात रखी है. साथ ही जिले के सभी अधिकारियों से इसे खरीदने के लिए कहा है. जिससे किसानों को उचित मूल्य मिलेगा और आय भी दोगुनी होगी. उन्होंने इस गेंहू की "कठिया- पेट की लाल दवा" नाम से ब्रांडिंग भी की है. 

अनुराग पटेल, डीएम, बांदा ने कहा कि कठिया बांदा जिले का एक प्राकतिक गेंहू है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी है. इसे दोबारा जीवित करने के उद्देश्य से यह कार्यशाला आयोजित की गई. जिसमे 55 किसानों और वैज्ञानिक ने भाग लिया. हम इसे कृषि विभाग के अधिकारियों की मदद से बढ़ाने का काम कर रहे हैं. जिले के अधिकारियों से भी कहा जा रहा जिसको जितनी जरूरत है उतना किसानों से खरीद लें. इससे किसानों की आय भी दोगुनी होगी और उन्हें उचित मूल्य भी मिलेगा. 

(सिद्धार्थ गुप्ता की रिपोर्ट)


 

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