मेरठ-दिल्ली-हरिद्वार हाईवे पर सिवाया टोल प्लाजा के पास सोमवार को एक अनोखा नजारा देखने को मिला. बुलडोजर से शिवभक्त कांवड़ियों पर पुष्प वर्षा कर उन का स्वागत किया गया. बड़ी संख्या में गुजरते कांवड़ यात्रियों का 'हर हर महादेव' के जयघोष के बीच स्वागत किया गया.
इन दिनों पूरे देश में कांवड़ यात्रा का जबरदस्त उत्साह और श्रद्धा देखने को मिल रही है. हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख और काशी समेत कई तीर्थ स्थलों से लाखों शिव भक्त गंगाजल लेने निकल पड़े हैं. हर हर महादेव और "बोल बम" के जयकारों से पूरा इलाका गूंज रहा है.
सावन महीने में कांवड़िए नंगे पांव या खास नियमों के साथ लंबी दूरी तय कर अपने शिवालय में जल चढ़ा रहे हैं. रास्तों में प्रशासन ने जगह-जगह भंडारे, चिकित्सा और विश्राम की सुविधाएं दी हैं. यह यात्रा न केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक है, बल्कि देश भर में भाईचारे और सेवा भाव का संदेश भी देती है. हर साल कांवड़ यात्रा का जोश और भागीदारी लगातार बढ़ती जा रही है.
बुलडोजर बाबा के नाम से चर्चित उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से प्रेरित था. पुष्प वर्षा करने वालों में शामिल मनिंदर विहान ने कहा कि श्रद्धालु जिस मेहनत और ईमानदारी से गंगाजल लेकर निकलते हैं, उनका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है. यही सोचकर बुलडोजर से पुष्पवर्षा की व्यवस्था की गई. बाबा बुलडोजर की सरकार है और बुलडोजर से पुष्प वर्षा की जाए.
पुष्प वर्षा में शामिल सुनीता रस्तोगी ने कहा कि बुलडोजर की पहल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने की थी. उन्हीं के आदर्शों पर चल रहे है और बुलडोजर से पुष्प वर्षा कर रहे हैं. चौधरी हरेंद्र सिंह ने कहा कि वे जब से प्रदेश में योगी सरकार बनी है. हर वर्ष बुलडोजर से पुष्पवर्षा करते हैं और यह परंपरा आगे भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि योगी सरकार शिव भक्तों का बहुत सम्मान करती है और हम चाहते हैं कि जिस तरीके से शिव भक्त बढ़ते जा रहे हैं उसे तरीके से बुलडोजर बाबा की बढ़ती जाएं.
कांवड़ यात्रा का इतिहास प्राचीन पौराणिक काल से जुड़ा है. इस यात्रा का सबसे पुराना उल्लेख समुद्र मंथन की कथा में मिलता है. इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन समय में साधु-संत और तपस्वी हिमालय और गंगा घाटियों से जल लाकर अपने आश्रमों या शिवालयों में चढ़ाते थे. धीरे-धीरे यह परंपरा आम लोगों में भी फैल गई. मध्यकाल में रावण द्वारा कैलाश जाकर गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक करने की कथा भी प्रसिद्ध है. इसे भी कांवड़ यात्रा से जोड़कर देखा जाता है. 1980 के दशक के बाद से इस यात्रा में बड़ी संख्या में युवा, महिलाएं और बच्चे भी शामिल होने लगे. अब कांवड़ यात्रा उत्तर भारत, खासकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा और दिल्ली में बड़े स्तर पर आयोजित होती है.
(मोहम्मद उस्मान चौधरी की रिपोर्ट)