प्रयागराज... सावन का पवित्र महीना... भगवान भोलेनाथ की भक्ति का पर्व... और इसी आस्था के रंग में संगम नगरी प्रयागराज की महिलाएं रच रही हैं एक खास मिसाल. प्रधानमंत्री की योजनाओं से प्रेरणा लेकर स्थानीय स्वयं सहायता समूह की महिलाएं अब पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी बड़ा योगदान दे रही हैं.
शहर में महिलाएं इन दिनों शिवलिंग और भगवान शंकर-पार्वती की खूबसूरत मूर्तियाँ बना रही हैं, लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस से नहीं, बल्कि गाय के गोबर से. यह नवाचार न सिर्फ आस्था को नया रूप दे रहा है, बल्कि प्रकृति के संरक्षण की राह भी खोल रहा है.
गोबर से बनी मूर्तियों की डिमांड-
मूर्तियाँ बनाने में जुटी महिलाओं का कहना है कि गोबर से बनी मूर्तियाँ पूरी तरह इको-फ्रेंडली होती हैं. नदियों या तालाबों में विसर्जन के बाद ये मूर्तियाँ मिट्टी में आसानी से घुल जाती हैं और जल प्रदूषण भी नहीं होता. यही वजह है कि इन मूर्तियों की डिमांड तेजी से बढ़ रही है – मंदिरों, मेलों, और घरों में पूजा के लिए लोग अब गोबर से बनी मूर्तियाँ ही पसंद कर रहे हैं. महिलाओं का साफ कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं, खासकर स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने वाली योजनाओं से उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिली है. पहले जो महिलाएं केवल घर तक सीमित थीं, वे अब अपने हुनर से न केवल कमाई कर रही हैं बल्कि समाज में पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी फैला रही हैं.
पर्यावरण संरक्षण और आस्था का अद्भुत मेल-
इस पहल का सबसे बड़ा उद्देश्य है प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा और पारंपरिक आस्था को टिकाऊ रूप देना. गोबर जैसी प्राकृतिक सामग्री से मूर्तियाँ बनाकर न केवल पर्यावरण को संरक्षित किया जा रहा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी एक नया सहारा मिल रहा है.
प्रयागराज की महिलाएं आज सिर्फ मूर्तियाँ नहीं बना रहीं, बल्कि आस्था, आत्मनिर्भरता और पर्यावरण संरक्षण की त्रिवेणी बहा रही हैं. सावन के इस विशेष महीने में यह पहल देशभर के लिए एक प्रेरणा बन चुकी है. आपको बता दे शंकर और पार्वती की मूर्ति के अलावा यह गणेश जी और कई अलग-अलग भगवानों की भी मूर्तियां बना रही हैं जो लोगों को खूब भा रही है.
(आनंद राज की रिपोर्ट)
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