दशहरा पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. दशहरे के दिन रावण दहन की परंपरा भारत में सदियों से चली आ रही है. यह परंपरा समाज को अधर्म और अहंकार से बचने का संदेश देती है.
रावण, जो महाज्ञानी, विद्वान और पराक्रमी था, अपने अवगुणों के कारण अधर्म का प्रतीक बन गया. इस साल दशहरा 2 अक्टूबर को है. धार्मिक मान्यता है कि इसी दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी. हर वर्ष रावण दहन प्रदोष काल के दौरान किया जाता है. इस साल भी प्रदोष काल यानी सूर्योस्त के बाद ही रावण दहन किया जाएगा. हिंदू पंचांग के अनुसार 2 अक्टूबर को सूर्यास्त शाम 6 बजकर 5 मिनट पर हो जाएगा. इसके बाद रावण दहन किया जा सकता है.
रावण: गुणों और अवगुणों का द्वंद्व
रावण वेद-पुराण का ज्ञाता, आयुर्वेद का जानकार और महान ज्योतिषाचार्य था. उसने शिव तांडव स्रोत जैसे ग्रंथों की रचना की, लेकिन उसके भीतर अहंकार और अधर्म ने घर कर लिया. अहंकार आपके सारे गुणों पर भारी पड़ जाता है.
रावण का जीवन और उसकी शिक्षा
रावण का जीवन सुर और असुर भाव के द्वंद्व का प्रतीक है. उसके ज्ञान ने उसे बुरे कर्मों से रोकने की कोशिश की, लेकिन उसकी राक्षसी प्रवृत्ति उसे अधर्म की ओर ले गई. रावण का दहन हमें यह सिखाता है कि समाज में पूज्य बनने के लिए राम की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम बनना जरूरी है.
रावण की नीतियां और आधुनिक समाज
रावण ने अपने युग में राजदूतों को इम्युनिटी का उच्चतम प्रतिमान स्थापित किया. विभीषण की सलाह मानते हुए उसने हनुमान जी का वध नहीं किया, बल्कि अंग भंग का आदेश दिया. यह नीति आज भी प्रासंगिक है.
रावण का सीताहरण और उसका उद्देश्य
रावण ने सीता का हरण किया, लेकिन मर्यादा की दीवार कभी नहीं लांघी. उसने यह जानते हुए कि राम साक्षात परमेश्वर हैं, उनसे हठपूर्वक दुश्मनी मोल ली ताकि उनके बाण से प्राणांत हो और उसे राक्षसी शरीर से मुक्ति मिले.
रावण दहन का संदेश
रावण दहन की परंपरा समाज को यह संदेश देती है कि धन, वैभव और पराक्रम से यश और सम्मान नहीं मिलता. इसके लिए अपनी राक्षसी वृत्तियों पर विजय पाना जरूरी है. ज्ञान का अहंकार नहीं, बल्कि अहंकार का ज्ञान जरूरी है.