बिहार की मिट्टी एक बार फिर गर्व से मुस्कुरा उठी है. आरा की बेटी सपना कुमारी ने अमेरिका के बर्मिंघम में आयोजित वर्ल्ड पुलिस एंड फायर गेम्स 2025 में भारत के लिए दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर इतिहास रच दिया है. जब सपना 24 जुलाई को अपने शहर आरा लौटीं, तो रेलवे स्टेशन पर सैकड़ों लोग ढोल-नगाड़ों, गुलाब की पंखुड़ियों और तिरंगे के साथ उनका भव्य स्वागत करने पहुंचे. पूरा शहर सपना को देखने और सम्मानित करने के लिए उमड़ पड़ा.
कौन हैं सपना कुमारी?
सपना भोजपुर जिले के नवादा थाना क्षेत्र स्थित पूर्वी नवादा गांव की रहने वाली हैं. उनके पिता जितेंद्र प्रसाद एक ट्रैक्टर मैकेनिक हैं, जबकि मां कुंती देवी एक स्कूल टीचर हैं. एक साधारण परिवार से आने वाली सपना ने अपने मेहनत और जज़्बे से न सिर्फ बीएसएफ (BSF) की सेवा में जगह बनाई, बल्कि भारत का नाम भी वैश्विक स्तर पर रोशन कर दिया.
सपना BSF की 95वीं बटालियन में गुड़गांव में तैनात हैं और एक NIS सर्टिफाइड कोच भी हैं. उनके पति राजन कुमार भी BSF में तीरंदाज हैं और सपना के साथ ही गुड़गांव में कार्यरत हैं. सपना ने वर्ष 2011 में तीरंदाजी की शुरुआत की थी और 2014 में BSF में भर्ती होने के बाद उनकी प्रतिभा को नई ऊंचाई मिली.
अमेरिका में कैसा रहा सपना का प्रदर्शन?
27 जून से 6 जुलाई तक अमेरिका के बर्मिंघम, अलबामा में आयोजित इस विश्व प्रतियोगिता में सपना ने तीन तीरंदाजी स्पर्धाओं में भाग लिया:
यह खेल सिर्फ एक मुकाबला नहीं, बल्कि दुनिया भर की पुलिस, फायर ब्रिगेड और आपातकालीन सेवाओं के बीच एक अनोखा और चुनौतीपूर्ण टूर्नामेंट था. सपना का यह प्रदर्शन न केवल व्यक्तिगत रूप से गर्व की बात है, बल्कि पूरे भारत और बिहार के लिए एक ऐतिहासिक पल है.
स्वागत में उमड़ा पूरा शहर
जब सपना 24 जुलाई को आरा रेलवे स्टेशन पर उतरीं, तो मानो सारा शहर उनकी एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़ा. पारंपरिक ढोल-नगाड़े, गुलाब की पंखुड़ियां और तिरंगे की शान के साथ उनका स्वागत किया गया. सपना को एक विजेता के तौर पर नहीं, बिहार की नायिका के तौर पर देखा जा रहा है.
स्थानीय लोगों ने उन्हें फूलों की माला पहनाई, मिठाइयां बांटी और 'भारत माता की जय' के नारों से स्टेशन को गूंजा दिया. यह दृश्य भावुक कर देने वाला था- गर्व, आंसू और मुस्कुराहटें, सब एक साथ थे.
सपना की ज़ुबानी उनकी सफलता की कहानी
सपना कुमारी ने कहा, "यह मेरे लिए गौरव का क्षण है. मेरे परिवार, कोच, पति और आरा के लोगों ने जो हौसला दिया, उसी के बल पर मैं इस मुकाम तक पहुंच पाई. मैं आगे भी देश और बिहार के लिए खेलती रहूंगी. ये पदक सिर्फ मेरे नहीं, पूरे भोजपुर के हैं."
उनकी यह बात सुनकर हर किसी की आंखें नम हो गईं. सपना की सफलता सिर्फ व्यक्तिगत नहीं है, यह एक सामूहिक जीत है- उन तमाम लड़कियों की, जो छोटे शहरों से बड़े सपने लेकर निकलती हैं.
क्या कहती है ये जीत बिहार के लिए?
सपना की यह जीत खेलों में बिहार की स्थिति को मजबूत करती है. उन्होंने दिखाया कि टैलेंट किसी बड़े शहर का मोहताज नहीं होता. सीमित संसाधनों में भी बड़ी उपलब्धियां संभव हैं. आज जब राज्य में खेलों के लिए ढांचे और संसाधनों की मांग हो रही है, सपना की यह सफलता सरकार के लिए भी एक संदेश हैकि यदि समर्थन और सही प्रशिक्षण मिले, तो हर सपना देश का सिर ऊंचा कर सकता है.
(रिपोर्ट: सोनू कुमार सिंह)