ईरान की बसीज सेना! इजरायल-ईरान तनाव में कैसे बदल रही है मिडिल ईस्ट की जंग, क्यों कहा जाता है इसे Hidden Force?

बसीज की संख्या को लेकर अलग-अलग अनुमान हैं. आधिकारिक दावों के मुताबिक, इसमें 2.38 करोड़ लोग हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या करीब 10 लाख है, जिसमें हजारों प्रशिक्षित सैनिक शामिल हैं. बसीज की इमाम हुसैन ब्रिगेड और इमाम अली ब्रिगेड जैसी इकाइयां आतंकवाद और दंगों से निपटने में माहिर हैं. इसके अलावा, फतेहिन यूनिट बसीज की स्पेशल फोर्स है, जो गुप्त ऑपरेशन्स में सक्षम है.

Basij army Iran (Photo/GettyImages)
gnttv.com
  • नई दिल्ली,
  • 16 जून 2025,
  • अपडेटेड 1:42 PM IST

क्या आपने कभी सुना है ऐसी सेना के बारे में, जो न तो पूरी तरह सैनिक है, न ही आम नागरिक? एक ऐसी फौज, जो धर्म, देशभक्ति और बलिदान के जज्बे से लबरेज है, और जिसके सामने दुश्मन भी थर-थर कांपते हैं? हम बात कर रहे हैं ईरान की बसीज सेना की, जो आज इजराइल के साथ चल रही ताजा जंग में सुर्खियों में छाई हुई है. यह सेना, जिसे ईरान का ‘छिपा हुआ हथियार’ कहा जाता है, न सिर्फ युद्ध के मैदान में तहलका मचाने की ताकत रखती है, बल्कि देश के अंदर और बाहर हर चुनौती से निपटने का दमखम भी रखती है. 

ईरान का ‘20 मिलियन की आर्मी’ सपना
1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई, तब आयतोल्लाह खुमैनी ने एक ऐसी फौज की नींव रखी, जो आम नागरिकों से बनी हो, लेकिन सैनिकों की तरह लड़ सके. इसे नाम दिया गया बसीज (Basij), जिसका मतलब है ‘दमितों का संगठन’. खुमैनी का दावा था कि बसीज को 20 मिलियन लोग मिलकर बनाएंगे, जो एक ऐसी अजेय सेना होगी, जिसे कोई हरा नहीं सकता.

बसीज कोई पारंपरिक सेना नहीं है. यह एक स्वयंसेवी अर्धसैनिक बल है, जो इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के तहत काम करता है. इसकी खासियत यह है कि इसमें 12 साल के बच्चों से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक शामिल हो सकते हैं. गरीब, ग्रामीण और आदिवासी पृष्ठभूमि के लोग इसमें बड़ी तादाद में शामिल होते हैं. इन्हें भारी-भरकम सैन्य प्रशिक्षण नहीं दिया जाता, लेकिन इनके जज्बे और वैचारिक निष्ठा को ऐसा पक्का किया जाता है कि ये मौत को भी गले लगाने से नहीं हिचकते.

इजराइल-ईरान जंग में बसीज का दखल
जून 2025 में इजराइल ने ईरान पर अब तक का सबसे बड़ा हमला किया. इस हमले में ईरान के नातंज और इस्फहान जैसे प्रमुख परमाणु केंद्रों को निशाना बनाया गया. साथ ही, IRGC के कई शीर्ष कमांडर, जैसे मोहम्मद बघेरी और होसैन सलामी, मारे गए. इस हमले ने ईरान को हिलाकर रख दिया. जवाब में, ईरान ने ‘ट्रू प्रॉमिस 3’ के तहत इजराइल पर 150 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें और ड्रोन हमले किए.

इसी बीच, खबर आई कि ईरान ने अपनी बसीज सेना को सामान्य मोबिलाइजेशन के लिए तैयार कर लिया है. यह खबर इजराइल और उसके सहयोगियों के लिए खतरे की घंटी थी. बसीज को तैनात करने का मतलब है कि ईरान अब सिर्फ मिसाइलों या ड्रोन्स पर निर्भर नहीं रहेगा, बल्कि जमीनी स्तर पर भी जंग लड़ने की तैयारी कर रहा है.

‘ह्यूमन वेव’ से लेकर आधुनिक युद्ध तक
1980 के दशक में ईरान-इराक युद्ध के दौरान बसीज ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया. उस समय बसीज के स्वयंसेवकों ने ‘ह्यूमन वेव’ (मानव लहर) रणनीति अपनाई थी. हजारों की संख्या में हल्के हथियारों से लैस बसीजी दुश्मन की ओर बिना डरे दौड़ पड़ते थे. वे बारूदी सुरंगों को साफ करने या दुश्मन की गोलीबारी को झेलने के लिए आगे बढ़ते थे. इस रणनीति में हजारों बसीजी शहीद हुए, लेकिन इसने इराकी सेना को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया.

आज बसीज इतनी ही खतरनाक है, लेकिन अब यह आधुनिक युद्ध के लिए भी तैयार है. बसीज की संख्या को लेकर अलग-अलग अनुमान हैं. आधिकारिक दावों के मुताबिक, इसमें 2.38 करोड़ लोग हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तविक संख्या करीब 10 लाख है, जिसमें हजारों प्रशिक्षित सैनिक शामिल हैं. बसीज की इमाम हुसैन ब्रिगेड और इमाम अली ब्रिगेड जैसी इकाइयां आतंकवाद और दंगों से निपटने में माहिर हैं. इसके अलावा, फतेहिन यूनिट बसीज की स्पेशल फोर्स है, जो गुप्त ऑपरेशन्स में सक्षम है.

इजराइल के लिए क्यों है खतरा?
इजराइल और ईरान का संघर्ष अब तक ज्यादातर हवाई हमलों, मिसाइलों और प्रॉक्सी वॉर तक सीमित रहा है. लेकिन बसीज की तैनाती से जंग का रुख बदल सकता है. बसीज न सिर्फ ईरान के भीतर सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि यह विदेशी युद्धों में भी हिस्सा लेती है. उदाहरण के लिए, 2013 में सीरिया के गृहयुद्ध में हजारों बसीजी लड़ाके सीरियाई सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े.

इजराइल के लिए बसीज इसलिए खतरा है, क्योंकि यह ईरान की ‘एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस’ का हिस्सा है. इसमें हिजबुल्लाह, हमास और यमन के हूती जैसे संगठन शामिल हैं. अगर बसीज सीरिया या लेबनान में तैनात होती है, तो यह इजराइल के लिए नया मोर्चा खोल सकती है. इसके अलावा, बसीज की वैचारिक निष्ठा इसे और खतरनाक बनाती है. इनके लिए जंग सिर्फ सैन्य मिशन नहीं, बल्कि धार्मिक जिहाद है.

क्रूरता और कुर्बानी का मिश्रण
बसीज की रणनीति में क्रूरता और कुर्बानी का अनोखा मिश्रण है. ईरान के भीतर बसीज को अक्सर विरोध प्रदर्शनों को कुचलने के लिए तैनात किया जाता है. 2022 में महसा अमीनी की मौत के बाद हुए विरोध प्रदर्शनों में बसीज ने प्रदर्शनकारियों पर बेरहमी से हमला किया. मोटरसाइकिलों पर सवार, हथियारों और डंडों से लैस बसीजी प्रदर्शनकारियों को डराने और गिरफ्तार करने में जुटे थे.

लेकिन युद्ध के मैदान में बसीज का अंदाज और भी खतरनाक होता है. ये स्वयंसेवक आत्मघाती मिशनों के लिए तैयार रहते हैं. ईरान-इराक युद्ध में बसीजी किशोर सैनिकों को इराकी बारूदी सुरंगों के बीच भेजा जाता था, ताकि रास्ता साफ हो सके. आज भी बसीज की यह बलिदानी भावना बरकरार है, जो इसे इजराइल जैसे दुश्मन के लिए खतरनाक बनाती है.

बसीज और इजराइल-ईरान जंग
जून 2025 के हमलों के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह खामेनेई ने इजराइल को ‘कठोर जवाब’ देने की कसम खाई है. बसीज की तैनाती इस जवाब का हिस्सा हो सकती है. अगर बसीज को सीरिया, लेबनान या इराक में भेजा जाता है, तो यह इजराइल के लिए कई मोर्चों पर जंग लड़ने की चुनौती पैदा कर सकता है.

दूसरी ओर, इजराइल ने दावा किया है कि उसने ईरान की हवाई रक्षा प्रणाली और परमाणु सुविधाओं को भारी नुकसान पहुंचाया है. लेकिन बसीज जैसी जमीनी फौज को नष्ट करना इतना आसान नहीं. बसीज की ताकत उसकी संख्या और जज्बे में है, न कि आधुनिक हथियारों में.

बसीज सेना ईरान का वह हथियार है, जिसे न तो पूरी तरह समझा जा सकता है, न ही आसानी से हराया जा सकता है. यह एक ऐसी फौज है, जो धर्म, देशभक्ति और बलिदान के जज्बे से लबरेज है. इजराइल-ईरान जंग में बसीज की तैनाती से मध्य-पूर्व का समीकरण बदल सकता है.
 

 

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