
यह न जम्मू-कश्मीर का श्रीनगर है, न ही हिमाचल का पालमपुर, बल्कि हरियाणा का करनाल है, जहां सेब के बगीचे लहलहा रहे हैं! जी हां, जहां कभी गेहूं और धान की खेती ही किसानों की पहचान थी, वहां अब सेब की खेती ने नया इतिहास रच दिया है. करनाल के एक प्रगतिशील किसान नरेंद्र चौहान ने अपनी मेहनत और जुनून से मैदानी इलाकों में सेब की खेती को संभव कर दिखाया. 1.5 एकड़ के बगीचे में सेब के साथ-साथ बादाम की खेती कर नरेंद्र ने न केवल करनाल को जम्मू-कश्मीर की तरह रंग दिया, बल्कि देश-विदेश के किसानों के लिए प्रेरणा बन गए हैं.
मैदानों में सेब की लहर
पहाड़ों की ठंडी वादियों में सेब की खेती कोई नई बात नहीं, लेकिन हरियाणा के गर्म मैदानों में सेब उगाना किसी चमत्कार से कम नहीं. नरेंद्र चौहान ने पांच साल पहले हिमाचल प्रदेश के पालमपुर विश्वविद्यालय से अन्ना और डोरसेट गोल्डन जैसी कम ठंड की जरूरत वाली सेब की किस्में लाकर अपने 1.5 एकड़ के खेत में रोप दीं. उनकी मेहनत रंग लाई और तीसरे साल ही पेड़ों पर सेब लद गए. इस साल तो फसल पिछले साल से भी बेहतर है, और 10-15 जून तक ये सेब पूरी तरह पककर बाजार के लिए तैयार हो जाएंगे. खास बात यह है कि ये सेब की किस्में 50 डिग्री सेल्सियस तक के तापमान को सहन कर सकती हैं, जो मैदानी इलाकों के लिए वरदान साबित हो रही हैं.
नरेंद्र चौहान बताते हैं, “मैंने पालमपुर विश्वविद्यालय से सेब की खेती की जानकारी ली और वहां से पौधे लाकर करनाल में लगाए. तीसरे साल फल आ गया. मैंने दूसरे किसानों को भी जागरूक किया कि वे मैदानी इलाकों में सेब उगा सकते हैं. एक पेड़ से 60-80 किलो सेब मिलता है, जिससे अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है.”
कैसे संभव हुई मैदानों में सेब की खेती?
सेब की खेती के लिए ठंडे मौसम और ऊंचाई की जरूरत होती है, लेकिन नरेंद्र ने कम ठंड वाली (लो-चिलिंग) किस्मों का चयन कर इस मिथक को तोड़ दिया. उनकी सेब की किस्मों को कम पानी की जरूरत पड़ती है, और मिट्टी की जांच के बाद सही तकनीकों का इस्तेमाल कर वे शानदार फसल ले रहे हैं. नरेंद्र बताते हैं कि सही मिट्टी, ड्रिप सिंचाई, और समय पर देखभाल से मैदानी इलाकों में भी सेब की खेती मुनाफे का सौदा बन सकती है. उनके बगीचे में सेब के साथ बादाम की खेती भी हो रही है, जो उनकी आय को और बढ़ा रही है.
नरेंद्र का बगीचा अब एक प्रशिक्षण केंद्र की तरह है. गुजरात, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्यों के अलावा श्रीलंका, अफगानिस्तान, और नेपाल तक के किसान उनसे सेब की खेती की बारीकियां सीखने आते हैं. नरेंद्र किसानों को मिट्टी की जांच, सही पौधों का चयन, और बागवानी की तकनीकों की पूरी जानकारी देते हैं.
गेहूं-धान से हटकर फल
नरेंद्र चौहान का मानना है कि गेहूं और धान की पारंपरिक खेती के साथ-साथ किसानों को फलों की खेती की ओर बढ़ना चाहिए. वे कहते हैं, “सेब की खेती से एक एकड़ में लाखों रुपये की कमाई हो सकती है. यह न केवल किसानों की आय बढ़ाएगी, बल्कि खेती में विविधता भी लाएगी.” उनके बगीचे से प्रेरणा लेकर कई स्थानीय किसान अब सेब की खेती की ओर कदम बढ़ा रहे हैं.
हरियाणा को जम्मू-कश्मीर बनाने का सपना
नरेंद्र चौहान के सेब न केवल स्थानीय बाजारों में धूम मचा रहे हैं, बल्कि उनकी मांग विदेशों तक पहुंच रही है. एक पेड़ से 60-80 किलो सेब की पैदावार और जून में बाजार में आने वाली फसल की ऊंची कीमतें किसानों के लिए सोने पर सुहागा साबित हो रही हैं.
नरेंद्र लोगों को संदेश देते हुए कहते हैं, लोगों को अब सेब खाने के लिए जम्मू-कश्मीर या हिमाचल जाने की जरूरत नहीं. करनाल में ही शानदार क्वालिटी के सेब मिल रहे हैं. मैं चाहता हूं कि ज्यादा से ज्यादा किसान इस दिशा में आएं और हरियाणा को सेब का हब बनाएं.”
(कमलदीप की रिपोर्ट)