आज की दुनिया में, लोग लगातार दो चीजों के बीच बहस में फंसे हैं- पर्यावरण या सुविधा. क्योंकि सुविधा के चक्कर में हमने अपने पर्यावरण को इतना ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया है कि इसे ठीक करने में हजारों साल लग जाएंगे. इस बात को समझते हुए आज बहुत से लोग पर्यावरण के लिए अपने छोटे-बड़े अभियानों से बदलाव लाने की कोशिश में जुटे हैं. ऐसे ही एक ट्रेंडसेटर हैं कानपुर के चैतन्य दुबे. उनके इनोवेशन ने पारंपरिक थर्मोकोल के लिए एक बायोडिग्रेडेबल विकल्प का निर्माण किया है.
थर्मोकोल, जिसे विस्तारित पॉलीस्टाइन फोम के रूप में भी जाना जाता है, अपने हल्के वजन और इन्सुलेशन गुणों के कारण व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है. यह पैकेजिंग सामग्री से लेकर स्कूल प्रोडेक्टस तक अलग-अलग चीजों के लिए पॉपुलर विकल्प बना हुआ है. हालांकि, इसकी उपयोगिता के बावजूद, थर्मोकोल पर्यावरण के लिए सही नहीं है क्योंकि यह प्रदूषण का कारण है और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है. इस मुद्दे के जवाब में, चैतन्य ने एक स्थायी विकल्प की खोज शुरू की.
बनाया पर्यावरण के अनुकूल थर्मोकोल
कानपुर के रहने वाले चैतन्य ने बंगलुरु से इंजनीयरिंग की डिग्री पूरी की. ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने MBA करने की सोची लेकिन किस्मत को कुछ और मंजूर था. चैतन्य एक कंपनी में जॉब कर रहे थे जब उन्होंने सोलन में एक छोटे से बिजनेस कोर्स में दाखिला ले लिया. इस कोर्स के दौरान उन्हें मशरूम की खेती के बारे में पता चला और उन्होंने जाना कि यह कितनी फायदेमंद हो सकती है. इसके बाद उन्होंने एक छोटा सा बिजनेस शुरू किया जहां वह मेडिसिनल और कमर्शियल मशरूम उगाने लगे.
जैसे-जैसे वह आगे बढ़े उन्होंने मशरूम के अन्य उपयोगों पर काम करना शुरू किया और देखते ही देखते थार्मोकोल का एक पर्यावरण-अनुकूल समाधान विकसित किया है. उन्होंने मशरूम मायसेलियम, कृषि अपशिष्ट और नेचुरल फाइबर को मिलाकर एक ऐसी सामग्री बनाने में कामयाबी हासिल की जो पारंपरिक थर्मोकोल के जैसा है. यह बायोडिग्रेडेबल विकल्प दोहरे उद्देश्य को पूरा करता है: यह पैकेजिंग मैटेरियल और उर्वरक के रूप में काम करता है. जब इसे डिस्पोज किया जाता है, तो यह प्राकृतिक रूप से बायोडिग्रेड हो जाता है, और मिट्टी में पोषक तत्व छोड़ता है और पौधों के विकास को बढ़ावा देता है.
IIT कानपुर से मिला इनक्यूबेशन
पारंपरिक थर्मोकोल के विपरीत, चैतन्य का बनाया बायोडिग्रेडेबल थर्मोकोल पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद टिकाऊ है और मिट्टी को समृद्ध करता है. इस इनोवेशन की रिसर्च में उन्हें IIT कानपुर से बहुत ज्यादा मदद मिली. साल 2019 में उन्होंने अपना स्टार्टअप Kinoko Biotech शुरू किया जो एक Agri-tech कंपनी है और मशरूम से बायमैटेरियल्स बनाती है. उनकी कंपनी को IIT कानपुर से इनक्यूबेशन मिला.
चैतन्य की कहानी इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि नवाचार कैसे सकारात्मक बदलाव ला सकता है. यह हमें याद दिलाता है कि हम सभी दुनिया को हरा-भरा बनाने में भूमिका निभा सकते हैं. उनका रचनात्मक दृष्टिकोण और बदलाव लाने की प्रतिबद्धता एक ऐसी दुनिया की तरफ ले जा रही है जहां हम पर्यावरण के लिए जिम्मेदारी निभाते हुए आगे बढ़ सकते हैं.