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गुजरात चुनाव 2022: क्या ‘आप’ का भविष्य कांग्रेस के नुकसान पर टिका है?

2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी अपनी पूरी दम-खम लगा रही है. आप स्कूल-अस्पताल को लेकर न सिर्फ सत्तारूढ बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रही है बल्कि राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी काँग्रेस को भी बीजेपी का विरोध/सामना करने में एक कमजोर पार्टी के तौर पर जनता के सामने इंगित कर रही है. यहाँ तक की “आप” के नेता काँग्रेस पार्टी को वोट नहीं करने की अपील कर रही है. 

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तकरीबन पिछले तीन दशक से गुजरात का चुनाव भाजपा और काँग्रेस के बीच द्विपक्षीय रहा है. 1995 से लेकर 2017 तक के सभी विधानसभा चुनाव में गुजरात के कुल मतदाता का 80 प्रतिशत से अधिक वोट सिर्फ दो पार्टी भाजपा और काँग्रेस को मिलते रहे है. 2002 के विधानसभा चुनाव से अभी तक ये दोनों मुख्य पार्टियों के बीच तकरीबन 90 प्रतिशत वोट पड़े है. यानि पिछले दो दशक में छोटी/नई पार्टियों और निर्दलिय प्रत्याशियों का वोट आधार धीरे-धीरे सिकुरता गया है गुजरात में. 

राज्य में जनता दल/पार्टी के पतन के बाद सिर्फ 1998 में शंकर सिंह वाघेला की राष्ट्रीय जनता पार्टी को गुजरात की 12 प्रतिशत मतदाता का समर्थन मिला था. उसके बाद से गुजरात में किसी नई और बीजेपी तथा काँग्रेस से इतर किसी और पार्टी को गुजरात के वोटरों का कोई महत्वपूर्ण समर्थन नहीं मिलता आया है.  2022 के चुनाव में आम आदमी पार्टी अपनी पूरी दम-खम लगा रही है. आप स्कूल-अस्पताल को लेकर न सिर्फ सत्तारूढ बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रही है बल्कि राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी काँग्रेस को भी बीजेपी का विरोध/सामना करने में एक कमजोर पार्टी के तौर पर जनता के सामने इंगित कर रही है. यहाँ तक की “आप” के नेता काँग्रेस पार्टी को वोट नहीं करने की अपील कर रही है. 

इस अपील के क्या मायने है?
ऊपरी तौर पर देखे तो यह साधारण सी बात लगती है कि कोई एक पार्टी जनता से किसी और पार्टी को वोट न कर उसे अपने पक्ष में वोट करने की अपील कर रही है. लेकिन गहराई में देखे तो इसके कुछ महत्वपूर्ण मायने है जो की वोटों के समीकरण को ध्यान में रखते हुए की जा रही है. इस बात को समझने के लिए हमें गुजरात में वोट का वितरण और दिल्ली में आप की उदय और विकास की कहानी के आंकड़ों से समझना होगा. 

गुजरात के 90 प्रतिशत वोट बीजेपी और काँग्रेस के बीच है. यानि की किसी तीसरे पक्ष के लिए अपना प्रभावशाली आधार बनाने के लिए इन दोनों में से किसी एक या फिर दोनों के आधार वोट में एक बड़ी सेंध लगाना अनिवार्य है. पूर्व में दिल्ली (2013) और पंजाब (2017) में जब आप पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ी थी तो वहाँ वह सत्तारूढ पार्टी के वोट में एक बड़ी सेंध लगाई थी. दोनों जगहों पर आप काँग्रेस और अकाली दल के सत्ता विरोधी लहर का एक बड़ा हिस्सा अपनी तरफ खिंचने में सफल रही थी. लेकिन दिल्ली और पंजाब के इतर गुजरात में 24 साल से सत्ता में रहने के बावजूद नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और हिन्दुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला की वजह से राज्य में सत्ता-विरोधी कोई मुखर लहर नहीं है. 

पिछले कुछ वर्षों में कोई एक मजबूत आंदोलन नहीं हुए है जिससे लगे की सत्तारूढ पार्टी के वोट में एक बहुत बड़ी (दहाई के आँकड़े में) गिरावट संभव हो. इस परिस्थिति में सिर्फ यह विकल्प बचता है कि आप मुख्य विपक्षी काँग्रेस के वोट को टारगेट करे. पिछले 32 साल से सत्ता से दूर रहने के बावजूद काँग्रेस का एक मजबूत वोट बैंक रहा है जो की मुख्यतः बीजेपी-विरोधी वोट के तौर पर चिह्नित है. अगर आप बीजेपी विरोधी मतदाता को यह समझाने में सफल हो जाए कि वह बीजेपी का मुकाबला काँग्रेस से बेहतर तरीके से कर सकती है तो फिर उसका एक आधार राज्य में बन सकती है, लेकिन यह समय में गर्त में छुपा है. हालांकि गुजरात में यह पहली बार नहीं हो रहा है. अहमदाबाद विद्यालय के सहायक प्रोफेसर सार्थक बागची के अनुसार पश्चिम बंगाल में तृणमूल काँग्रेस का उदय और प्रसार इसी राजनीति का हिस्सा था जिसमें तृणमूल वाम विरोधी मतदाता को धीरे धीरे यह समझाने में सफल रही की काँग्रेस की तुलना में तृणमूल काँग्रेस ही लेफ्ट फ्रन्ट की सरकार को सत्ता से बेदखल कर सकती है. 

दिल्ली और बंगाल दोनों जगह की राजनीति में एक समानता यह है कि तृणमूल और आप का वोट आधार कांग्रेस के वोटर ही थे. दोनों पार्टियों का जनाधार काँग्रेस की कीमत पर ही बढ़ी थी. इसलिए आप गुजरात में खासकर काँग्रेस के आधार वाले इलाके दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र रीजन में मतदाता से काँग्रेस को वोट न देने की अपील कर रहे है. दक्षिण गुजरात और सौराष्ट्र में आप की अपील की एक दूसरी वजह भी है. - दोनों इलाके में पहले चरण में मतदान है. सबसे बड़ी बात - हाल ही में दक्षिण गुजरात के सूरत नगर निगम चुनाव में आप को एक बड़ी सफलता हाथ लगी थी. वह अपने पहले ही चुनाव में निगम के 27 सीटें जितने में सफल रही. 

सूरत के शहरी इलाके में पटेल समुदाय का एक बड़ा हिस्सा रहती है. रोचक तथ्य यह भी है कि पटेल में भी लेउवा पटेल उपजाति के लोग अधिक है सूरत में कारोबारी के तौर पर. लेउवा पटेल मूलतः सौराष्ट्र रीजन में अधिक है. सूरत के अधिकतर लेउवा पटेल का मूल सौराष्ट्र रीजन ही रहा है. 2017 के पिछले चुनाव में पटेल आंदोलन की वजह से पटेल का एक हिस्सा बीजेपी से नाराज होकर काँग्रेस की तरफ गया था. आप उन भाजपा से नाराज पटेल वोटर को अपने तरफ खींचने की कोशिश कर रही है. पटेल एक प्रभावशाली समुदाय रहे है गुजरात में. अगर आप पटेल के एक महत्वपूर्ण हिस्से का विश्वास और मत जीतने में सफल रहे तो आप के लिए गुजरात में आगे का रास्ता थोड़ा अधिक खुलेगा. बहरहाल, आखिर में ऊंट किस करवट लेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा.

रिपोर्ट- आशीष रंजन, गोपी मनियार