
उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी सारस क्रेन की आबादी में बीते कुछ सालों में कमी देखने को मिली थी. लेकिन अब बाराबंकी का तराई वेटलैंड इस परिंदे के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बन गया है. यहां अब इसके संरक्षण के लिए की जा रही कोशिशों के बेहतरीन नतीजे दिखने लगे हैं. सारस क्रेन का कुनबा अब धीरे-धीरे बढ़ रहा है.
वन विभाग के दिसंबर 2024 के आंकड़ों के अनुसार, यहां कुल 326 सारस क्रेन पाए गए. पिछले साल की गणना के दौरान इनकी संख्या 301 थी. यह बदलाव कैसे हुआ, आइए समझते हैं.
कैसे गिरी थी सारस क्रेन की आबादी?
उत्तर प्रदेश सारस क्रेन का प्राकृतिक घर है. हालांकी बीते कुछ सालों में प्रकृति में इंसानों के खलल के कारण इस परिंदे की आबादी में कमी आई थी. दरअसल सारस क्रेन 'वेटलैंड' में रहते हैं. वेटलैंड यानी ऐसी ज़मीन जिसकी मिट्टी साल के ज़्यादातर हिस्से में पानी से नम रहती है. अब बीते कुछ समय में यूपी में कई वेटलैंड सूखे हैं, जबकि कई को खेती की ज़मीन में बदल लिया गया है.
इसके अलावा सड़कें बनने और पावरलाइन बिछने के कारण भी यूपी ने कई वेटलैंड गंवाए हैं. सारस क्रेन को खेतों में यूज़ होने वाला पेस्टीसाइड भी नहीं पसंद आता और वे इसके कारण मर भी सकते हैं. ऐसे ही कई कारणों से जब यूपी से यह पक्षी गायब होने लगा तो प्रशासन ने इसके संरक्षण की ठान ली.
कैसे बदली बाराबंकी की सूरत?
सारस क्रेन की संख्या बढ़ाना सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती इसलिए थी क्योंकि उसे लोगों के बीच जागरूकता बढ़ानी थी. जागरूकता के ज़रिए ही पर्यावरण संरक्षण हो सकता है और इन पक्षियों को सुरक्षित रखा जा सकता है. जागरूकता बढ़ाने के लिए वन विभाग ने एक सामुदायिक अभियान का आयोजन किया.
इस आयोजन में शहर के लोगों, छात्रों और विशेषज्ञों ने मिलकर सारस क्रेन के प्राकृतिक वास की पहचान की और उनकी गिनती की. साथ ही उत्तर प्रदेश के राजकीय पक्षी को संरक्षित करने की अहमियत का संदेश भी फैलाया गया. लोगों ने वेटलैंड्स की पहचान की और उनकी अहमियत को समझा, ताकि उन्हें दूषित होने से रोका जा सके. समय के साथ इसका असर भी दिखने लगा.
बाराबंकी के डिस्ट्रिक्ट फॉरेस्ट ऑफिसर आकाश दीप वाधवान ने न्यूज एजेंसी पीटीआई के साथ खास बातचीत में कहा, "राज्य पक्षी सारस की संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत हैं. दिसंबर 2024 में जो शातकालीन गणना हुई थी बाराबंकी के विभिन्न स्थलों पर. ओकुलर एस्टीमेशन के बेसिस पर 326 की संख्या आई थी. जो पिछले उससे पुराने वाले सेंसस से थे उसमें 301 था तो उसमें बढ़ोत्तरी हुई है. यह काफी एक पॉजिटिव संकेत है."
वाधवान कहते हैं, "यह एक संकेत इस चीज का भी है कि संरक्षण के कारण और जो अवेयरनेस के कारण जो मीडिया के माध्यम से हो रहे वे सभी ट्रैक पर जा रहे हैं. यह लोगों की जनसहभागिता से ही मुमकिन हो पा रहा है."