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Crimeless Village of India: 60 साल से इस गांव के पुलिस स्टेशन में दर्ज न हुआ एक भी मामला! जानिए मैनपाट कैसे बना भारत का सबसे शांतिप्रिय गांव

मैनपाट का तिब्बती समाज वाकई दुनिया को यह संदेश देता है कि अगर अनुशासन और विश्वास हो तो बिना अदालत और पुलिस के भी इंसाफ संभव है. ये कहानी सिर्फ मैनपाट की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सीख है. 

तिब्बती शरणार्थी छह दशक पहले यहां आकर बसे थे. तिब्बती शरणार्थी छह दशक पहले यहां आकर बसे थे.

छत्तीसगढ़ के शिमला के नाम से मशहूर मैनपाट अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए जाना जाता है. देश के कोने-कोने से पर्यटक यहां घूमने आते हैं. इस शहर की एक खासियत यह है कि छह दशक से यहां रह रहे तिब्बती शरणार्थियों ने इसे शांति और सौहार्द का केंद्र बना दिया है. इनके बीच न तो अपराध है और न ही अपराधी. इन्हें न ही थाने जाने की जरूरत होती है न हीं अदालत का सहारा लेना होता है. 

इस शहर के लोग छोटे-मोटे विवादों को बंद कमरे में अपनों के बीच सुलझा लेते हैं. यही वजह है कि पिछले 60 सालों से मैनपाट के पुलिस थाने में कोई भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं हुआ है. 

तिब्बती बस्तियां बनीं अनुशासन की मिसाल 
आज की दुनिया में जहां विवाद और अपराध की खबरें आम हैं, वहीं छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर (सरगुजा) जिले के मैनपाट में बसी तिब्बती बस्तियां शांति और अनुशासन की अद्भुत मिसाल बन गई हैं. यहां के लोग बिना कोर्ट-कचहरी और पुलिस थाने गए, अपने सारे विवाद खुद निपटा लेते है. वह भी दलाई लामा की तस्वीर के सामने. भारत सरकार ने 1962 में तिब्बती शरणार्थियों के कुछ परिवार को सरगुजा जिले के मैनपाठ में बसाया था. 

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आज यहां सात तिब्बती कैंप हैं. हर कैंप में एक लीडर होता है. साथ ही सभी सात कैंप का एक मुख्य लीडर होता है जो पूरी व्यवस्था को नियंत्रण करता है. यहां तकरीबन दो हजार तिब्बती रहते हैं.  मैनपाट में रह रहे तिब्बती आज यहां की मिट्टी और संस्कृति का हिस्सा बन चुके हैं. पिछले 62 साल से ये समाज पूरी तरह शांतिप्रिय और अनुशासित जीवन जी रहा है. विवाद हो भी जाए, तो कोर्ट-कचहरी या पुलिस थाने जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. 

छोटे-मोटे विवादों को कैंप के मुखिया समाप्त करते हैं. अगर विवाद बड़ा हो तो सेटलमेंट ऑफिसर दोनों पक्षों को सेटेलमेंट ऑफिस में बुलाते हैं. सभी अपना पक्ष रखते हैं. सभी पक्षों को सुनने के बाद सेटलमेंट ऑफिसर अपने धर्मगुरु दलाई लामा की तस्वीर के सामने बैठकर फैसला सुनाते हैं और हर कोई उस फैसले को स्वीकार करता है. वहां पर मौजूद सभी लोग अपने धर्म गुरु दलाई लामा के तस्वीर के नीचे पुष्प चढ़ाते हैं और अपने दैनिक जीवन में लौट जाते हैं. 

सौहार्द के साथ चल रहा है जीवन
सभी सातों कैंप के ग्रुप लीडर संजय तेंजिन कहते हैं, “हम लोग 1962 में शरणार्थी के रूप में भारत आए थे. तब से हम यहां रह रहे हैं. हम लोग कभी थाने नहीं जाते. यहां 7 कैंप है. हर कैंप में एक ग्रुप लीडर है. छोटे-मोटे विवादों को ग्रुप लीडर खत्म कर देते हैं. विवाद बड़ा हो तो हमारे पास सेटलमेंट ऑफिसर है जो सेटेलमेंट ऑफिस में मामले समाप्त करते हैं. हमारा धर्म भी आपस में मिल-जुल कर रहना और गुस्सा को शांत रखना सिखाता है. हम सभी से अपील करते हैं कि आप भी आपस में मिलजुल कर रहे हैं.” 

यही वजह है पिछले 62 वर्षों से अब तक स्थानीय थाने में एक भी केस दर्ज नहीं हुआ. कमलेश्वरपुर थाना के थाना प्रभारी मनोज प्रजापति बताते हैं, “यहां पर सात कैंप है जहां तिब्बती लोग निवास करते हैं. वे सभी शांतिप्रिय लोग हैं. उनके खिलाफ 1962 से अभी तक एक भी अपराधिक मामला दर्ज नहीं हुआ. छोटे-मोटे विवादों को वह अपने खुद के सेटलमेंट ऑफिस में निपटा लेते हैं.” 

यहां खेती-बाड़ी से लेकर कारोबार तक सब कुछ शांतिपूर्ण ढंग से चलता है. सौ प्रतिशत साक्षरता दर वाले इस समाज ने शिक्षा और अनुशासन को ही अपना धर्म बना लिया है. नतीजा ये कि मैनपाट मैं रह रहे तिब्बती परिवार आज पूरे देश में शांति और सौहार्द की मिसाल बन चुका है.

मैनपाट का तिब्बती समाज वाकई दुनिया को यह संदेश देता है कि अगर अनुशासन और विश्वास हो तो बिना अदालत और पुलिस के भी इंसाफ संभव है. ये कहानी सिर्फ मैनपाट की नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सीख है.