
घर के किसी कोने में अपना मकान बनाकर बैठी गौरैया, शहर तो क्या धीरे धीरे गांव से भी गायब होती जा रही थी. लेकिन राघवेंद्र चौधरी जी ने ये तय कर लिया कि इन गौरैया को वापस लाना है. इसके लिए उन्होंने एक शानदार मुहिम शुरू की. राघवेंद्र सिंह पहले तो अपनी कमाई से कई जगह नारियल के खोल से बने बर्ड नेस्ट को लगाया है. लेकिन वह अब लोगों को इस मुहिम से जोड़ने के लिए उन्होंने बर्ड नेस्ट को सस्ते दाम पर बेचना भी शुरू कर दिया है. नेस्ट के लिए वह पैसे वह इसलिए ले रहे हैं ताकि लोग इनका ध्यान रखें. राघवेंद्र जी हर सुबह 8 बजे से अपनी स्कूटी पर इन ब्रेड नेस्ट को रखकर निकल पड़ते हैं.

क्या कहना है ट्री मैन अंकल का?
राघवेंद्र जी कहते हैं कि गौरैया इंसानों के आस पास ही रहना चाहती है लेकिन बस उसे अपने रहने की जगह नहीं मिलती. एक बर्ड नेस्ट गौरैया को लेकर कितना बड़ा बदलाव ला सकती है. इस बात को राघवेंद्र जी अच्छी तरह जानते हैं. इसलिए वह गौरैया के लिए बर्ड नेस्ट अलग-अलग जगह लगा रहे हैं.

राघवेंद्र जी को लोग ट्री मैन अंकल भी कह कर बुलाते हैं. राघवेंद्र जी कुछ शानदार नुस्ख़े भी बताते हैं जिसके ज़रिए कोई भी अपनी बालकनी पर गौरैया को आसानी से बुला सकता है. राघवेंद्र जी की यह मुहिम रंग भी ला रही है. पहले जिन इलाकों में गौरैया लगभग गायब सी हो गई थी. अब उन्हीं इलाकों में बर्ड नेस्ट लगाने के बाद ढेर सारी गौरैया देखी जा सकती है.
कामकाज छोड़ दौड़े जुनून के पीछे
60 साल के बुजुर्ग राघवेंद्र चौधरी को बचपन से ही पर्यावरण और पक्षियों से प्यार था, लेकिन जैसे ही उनके बच्चे नौकरी में सेटल हो गए उनका ये प्यार जुनून में बदल गया है. पिछले 4 साल से राघवेंद्र चौधरी अपना सारा कामकाज छोड़कर सिर्फ और सिर्फ पर्यावरण की सेवा में लगे हुए हैं. राघवेंद्र जी पहले ट्रैक्टर पार्टस का बिज़नेस करते थे.

पिछले चार साल में अब तक वो 10 हज़ार से ज़्यादा पेड़ लगा चुके हैं. इतना ही नहीं राघवेंद्र जी गली नुक्कड़ चौराहे पर खड़े होकर माइक से लोगों को जागरूक भी करते हैं. राघवेंद्र चौधरी जी को अब लोग ट्री मैन अंकल के नाम से भी बुलाते हैं. राघवेंद्र जी का अपना कोई NGO नहीं है और न ही वो किसी से मदद के रूप में कोई पैसा लेते हैं. वे कहते हैं के पर्यावरण के लिए जितना भी कुछ किया वो सब अपनी कमाई से किया.
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