
आज के समय में बच्चों की सही परवरिश करना किसी चुनौती से कम नहीं है. खासतौर पर जेन-ज़ी (Gen Z) और अल्फा (Alpha) जेनरेशन के बच्चों को संभालना आसान काम नहीं है. ये बच्चे टेक्नोलॉजी और इंटरनेट के माहौल में बड़े हो रहे हैं. इंटरनेट उन्हें हर तरह का ज्ञान तो देता है, लेकिन सही और गलत का फर्क समझाने वाला कोई नहीं होता. पहले के समय में संयुक्त परिवार हुआ करते थे, जहां दादा-दादी, बुआ-चाचा बच्चों को प्यार और संस्कार सिखाते थे. लेकिन आजकल महानगरों में न्यूक्लियर फैमिली का चलन बढ़ने से बच्चे अकेलेपन और संस्कारों की कमी से जूझ रहे हैं.
वर्किंग पैरेंट्स के लिए सबसे बड़ा सवाल
आज ज्यादातर माता-पिता दोनों नौकरीपेशा हैं. ऐसे में बच्चों को या तो डे-केयर में भेजना पड़ता है या नैनी के भरोसे छोड़ना पड़ता है. इस वजह से बच्चों को परिवार का स्नेह और सही संस्कार नहीं मिल पाते. इन्हीं परिस्थितियों के बीच पेरेंटिंग का नया 7-7-7 फॉर्मूला सामने आया है, जो माता-पिता और बच्चों के बीच रिश्ते को मजबूत बनाने का एक सरल लेकिन प्रभावी तरीका माना जा रहा है.
क्या है 7-7-7 पेरेंटिंग फॉर्मूला?
7-7-7 नियम के तहत माता-पिता को दिनभर में तीन बार अपने बच्चों के साथ सिर्फ 7-7 मिनट बिताने होते हैं. यानी कुल 21 मिनट का समय बच्चों को समर्पित करना है. यह छोटा-सा प्रयास बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास में मदद करता है और माता-पिता के साथ उनकी बॉन्डिंग को गहरा बनाता है.
सुबह के 7 मिनट, दिन की पॉजिटिव शुरुआत
सुबह बच्चे को जगाने से लेकर उसकी दिनभर की प्लानिंग पर बात करने तक के 7 मिनट बेहद खास होते हैं.
ये कुछ पल पूरे दिन बच्चे की ऊर्जा और उत्साह को बनाए रखते हैं.
शाम के 7 मिनट, अनुभव साझा करने का समय
शाम का समय परिवार और बच्चों के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है.
यह समय न सिर्फ संवाद बढ़ाता है बल्कि बच्चे को यह एहसास दिलाता है कि उसकी हर बात माता-पिता के लिए मायने रखती है.
रात के 7 मिनट, प्यार और सुरक्षा का एहसास
सोने से पहले का समय बच्चों के लिए बेहद भावुक और खास होता है.
इससे बच्चों को सुरक्षा और सुकून का अहसास होता है, जिससे वे शांतिपूर्ण नींद ले पाते हैं और अगली सुबह ताजगी के साथ उठते हैं.