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एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस का खतरा बढ़ा!असर खो रही हैं आम एंटीबायोटिक दवाएं, इलाज के बावजूद ठीक नहीं हो पा रहे मरीज

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के अस्पतालों में ऐसे संक्रमणों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं हो रहे.

दवाएं हो रही बेअसर दवाएं हो रही बेअसर
हाइलाइट्स
  • सामान्य दवाएं काम नहीं कर रही

  • बिना सलाह दवा लेना और अधूरा इलाज खतरनाक

दुनिया एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस की तरफ जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की हालिया रिपोर्ट में ये बात सामने आई है. रिपोर्ट के मुताबिक 2016 से 2023 के बीच 100 से ज्यादा देशों में एंटीबायोटिक दवाओं का असर लगातार घटता जा रहा है. चिंता की बात यह है कि संक्रमणों पर पहले असरदार रहने वाली कई दवाएं अब बेअसर हो रही हैं. यानी मरीज इलाज के बावजूद ठीक नहीं हो पा रहे.

क्या है एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस?
एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस तब होता है जब बैक्टीरिया या अन्य सूक्ष्मजीव किसी दवा के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेते हैं. यानी वह दवा उन पर अब असर नहीं करती. यह स्थिति तब पैदा होती है जब एंटीबायोटिक का जरूरत से ज्यादा या गलत इस्तेमाल किया जाता है. इससे बैक्टीरिया में बदलाव आता है और वे मजबूत बनते जाते हैं. नतीजा यह होता है कि साधारण संक्रमणों का इलाज भी मुश्किल हो जाता है.

अस्पतालों में बढ़ रही दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर के अस्पतालों में ऐसे संक्रमणों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो एंटीबायोटिक दवाओं से ठीक नहीं हो रहे. भारत सहित एशियाई देशों में यह समस्या और भी गंभीर है क्योंकि यहां दवाओं का बिना डॉक्टर की सलाह के उपयोग आम बात है.

अब हालात ऐसे हैं कि कई बार सर्जरी से पहले दिए जाने वाले सामान्य एंटीबायोटिक्स भी असर नहीं करते. मरीजों को इलाज में हफ्तों लग जाते हैं और खर्च कई गुना बढ़ जाता है.

रेजिस्टेंस बढ़ने की तीन बड़ी वजहें

दवाओं का अंधाधुंध इस्तेमाल: लोग सर्दी-खांसी या हल्के संक्रमण में भी खुद से एंटीबायोटिक लेना शुरू कर देते हैं.

डॉक्टरों का गलत प्रिस्क्रिप्शन देना: कई बार जरूरत न होने पर भी दवाएं लिख दी जाती हैं.

पशुपालन और कृषि में उपयोग: जब किसान या पशुपालक जानवरों को जल्दी बड़ा और तंदुरुस्त बनाने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां देते हैं, तो यह जानवरों में बैक्टीरिया को भी प्रभावित करता है. समय के साथ, ये बैक्टीरिया मजबूत हो जाते हैं और दवाइयों के खिलाफ रोक नहीं पाते, यानी वे प्रतिरोधी (resistant) बन जाते हैं.

नए एंटीबायोटिक बहुत कम बन रहे
रिपोर्ट के मुताबिक, अब कई सामान्य बीमारियों जैसे मूत्र संक्रमण, निमोनिया और घाव के संक्रमण में पुरानी दवाएं असर नहीं दिखा रहीं. डॉक्टरों के सामने अब चुनौती यह है कि नए एंटीबायोटिक बहुत कम बन रहे हैं, जबकि पुराने काम करना बंद कर रहे हैं. अगर यही हाल रहा तो आने वाले सालों में ऐसी सर्जरी या डिलीवरी भी जोखिमभरी हो जाएगी जो पहले सामान्य मानी जाती थीं.

क्या है इसका समाधान?

  • बिना डॉक्टर की सलाह के दवाएं न लें.

  • इलाज अधूरा छोड़ना बंद करें, क्योंकि ऐसा करने से बैक्टीरिया और मजबूत हो जाते हैं.

  • स्वास्थ्य विभाग को एंटीबायोटिक के उपयोग पर सख्त नियंत्रण रखना चाहिए.

  • रिसर्च और नई दवाओं के विकास पर निवेश बढ़ाना होगा.

पोस्ट-एंटीबायोटिक एरा” की ओर बढ़ रहा इंसान
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हालात नहीं बदले तो दुनिया पोस्ट-एंटीबायोटिक एरा में प्रवेश कर जाएगी. यानी ऐसा समय जब कोई भी संक्रमण जानलेवा साबित हो सकता है.