

दिल्ली में जैसे-जैसे सर्दियां करीब आ रही हैं, वैसे-वैसे वायु प्रदूषण और स्मॉग का खतरा मंडराने लगा है. लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि अब सिर्फ बाहर ही नहीं, घरों की हवा भी खतरनाक हो चुकी है. हाल ही में हुए एक अध्ययन में ये जानकारी सामने आई है.
अध्ययन में कहा गया है कि घरों के अंदर फंगल स्पोर्स का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सुरक्षित मानक से 12 गुना ज्यादा है. इतना ही नहीं, बैक्टीरिया की मात्रा भी WHO की सीमा से 10 गुना ज्यादा दर्ज की गई है. इनडोर प्रदूषण के इस खतरनाक स्तर से लोगों में त्वचा संबंधी एलर्जी, सांस की बीमारियां, अस्थमा और मानसिक चिंता (एंग्जायटी) जैसी समस्याएं तेजी से बढ़ रही हैं.
डीयू, जामिया और अमेरिका की यूनिवर्सिटी की स्टडी
यह अध्ययन दिल्ली विश्वविद्यालय के सत्यवती कॉलेज, जामिया मिलिया इस्लामिया और अमेरिका की साउथ डकोटा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने संयुक्त रूप से किया है. शोध के नतीजे ‘फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ (2025)’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं.
कैसे किया गया अध्ययन?
अध्ययन में दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में स्थित 509 घरों से हवा के नमूने लिए गए, जिनमें राजौरी गार्डन, शाहदरा, लक्ष्मी नगर, द्वारका और साकेत जैसे इलाके शामिल थे. अध्ययन में घरों के अंदर फंगल स्पोर्स का स्तर WHO की सुरक्षित सीमा से 12 गुना अधिक पाया गया और बैक्टीरिया की मात्रा 10 गुना ज्यादा थी. जिन घरों में नमी या वेंटिलेशन की कमी थी, वहां फंगल एलिमेंट्स 22% तक ज्यादा दर्ज किए गए. वहीं पुराने एयर कंडीशनर, कूलर और गंदे फिल्टर वाले घरों में फफूंद का स्तर 158% तक बढ़ा हुआ पाया गया. कई इलाकों में घरों की हवा बाहर के प्रदूषित वातावरण जितनी ही हानिकारक साबित हुई.
इनडोर एयर क्वालिटी, आउटडोर स्मॉग जितनी खतरनाक
एम्स के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अरविंद कुमार के मुताबिक, लोग मानते हैं कि घर के अंदर वे सुरक्षित हैं, लेकिन हकीकत यह है कि घर की हवा में मौजूद फंगल और बैक्टीरियल तत्व फेफड़ों को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं. लंबे समय तक इनके संपर्क में रहना अस्थमा, एलर्जी, त्वचा रोग, और सांस से जुड़ी बीमारियों को बढ़ा सकता है.
जामिया मिलिया इस्लामिया की प्रोफेसर डॉ. सना फारुखी ने बताया कि सर्दियों में कम वेंटिलेशन, कम धूप और उच्च नमी के कारण घरों में फफूंद तेजी से पनपती है. यह स्थिति खासतौर पर बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा के मरीजों के लिए बेहद खतरनाक है.
घर के अंदर की हवा खराब क्यों हो रही है?
दरअसल घरों के अंदर प्रदूषण बढ़ने के कई कारण हैं.
कम वेंटिलेशन: सर्दियों में खिड़कियां-दरवाजे बंद रहने से हवा का प्रवाह रुक जाता है.
धुआं और कुकिंग गैस: रसोई में लगातार धुआं निकलना इनडोर प्रदूषण बढ़ाता है.
नमी और फफूंद: गीली दीवारें, पर्दे और कारपेट फंगल कणों को बढ़ने का मौका देते हैं.
पुराने एसी और कूलर के फिल्टर: समय पर साफ न करने पर ये बैक्टीरिया और फफूंद के घर बन जाते हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि इनडोर प्रदूषण सिर्फ सांस लेने में परेशानी नहीं बढ़ाता बल्कि इसके चलते त्वचा में खुजली, लाल चकत्ते, सिरदर्द, नींद की कमी और एंग्जाइटी जैसी मानसिक समस्याएं भी देखी जा रही हैं.
एम्स की रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पिछले दो सालों में एलर्जी और सांस से जुड़ी शिकायतों में 35% की बढ़ोतरी हुई है.
कैसे कर सकते हैं खुद का बचाव?
खिड़कियां दिन में कम से कम दो बार खोलें, ताकि हवा का आवागमन बना रहे.
एसी, कूलर और एग्जॉस्ट फिल्टर नियमित साफ करें.
नमी को कंट्रोल करने के लिए डीह्यूमिडिफायर का इस्तेमाल करें.
दीवारों पर फफूंद दिखे तो तुरंत सफाई कराएं.
कमरे में पौधे रखें, जो हवा की गुणवत्ता सुधारते हैं.
अंदर की हवा की मॉनिटरिंग भी जरूरी है
पर्यावरण विशेषज्ञों ने सरकार से अपील की है कि अब समय आ गया है जब इनडोर एयर क्वालिटी (IAQ) को भी राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता नीति का हिस्सा बनाया जाए. लोग अपने दिन का 70% से अधिक समय घर या दफ्तर में बिताते हैं, ऐसे में अंदर की हवा को नजरअंदाज करना गंभीर गलती है.