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बन गई नई तकनीक! डायमंड की मदद से लगेगा कैंसर का पता, कीमो और रेडियोलॉजी से होने वाले नुकसान का खतरा भी नहीं होगा

कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी उम्मीद सामने आई है. वारविक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने डायमंड की मदद से ऐसा डिवाइस बनाया है जो शरीर में कैंसर का पता लगा पाएगा.

Diamonds could help detect cancer Diamonds could help detect cancer
हाइलाइट्स
  • मेटास्टेसिस से निपटने में करेगा मदद

  • कैसे काम करता है यह डायमंड सेंसर?

कैंसर के मरीजों के लिए एक बड़ी उम्मीद सामने आई है. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक के वैज्ञानिकों ने एक हीरे पर आधारित सेंसर विकसित किया है, जो डॉक्टरों को यह पता लगाने में मदद करेगा कि क्या कैंसर शरीर में फैल चुका है यानी मेटास्टेसिस हुआ है या नहीं.

यह नया डिवाइस न केवल छोटा है बल्कि इतना सेंसिटिव है कि यह बेहद कम मात्रा में कैंसर की जानकारी देने वाले मैग्नेटिक ट्रेसर फ्लूइड को भी पकड़ सकता है. खास बात ये है कि इसमें रेडियोएक्टिव ट्रेसर या एलर्जिक डाई की जरूरत नहीं होती, जो अब तक अस्पतालों में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाते रहे हैं.

मेटास्टेसिस से निपटने में करेगा मदद
कैंसर का सबसे गंभीर पहलू होता है मेटास्टेसिस, यानी जब कैंसर कोशिकाएं शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगती हैं. इसका पता लगाने के लिए आमतौर पर डॉक्टर लिम्फ नोड्स की जांच करते हैं. इस नए डायमंड सेंसर की मदद से यह जांच अब और आसान और सुरक्षित हो सकती है.

कैसे काम करता है यह डायमंड सेंसर?
यह डायमंड सेंसर 10 मिलीमीटर का है. यानी इतना छोटा कि इसे एंडोस्कोपिक और कीहोल सर्जरी में भी आसानी से इस्तेमाल किया जा सके. इसमें इस्तेमाल किया गया डायमंड सिर्फ आधा क्यूबिक मिलीमीटर का है, और इसके साथ एक छोटा परमानेंट मैग्नेट लगाया गया है. इसका डिजाइन इतना कॉम्पैक्ट है कि इसमें किसी भारी-भरकम इलेक्ट्रॉनिक मशीन की जरूरत नहीं पड़ती और इसे हाथ में पकड़कर ऑपरेशन थिएटर में सीधे इस्तेमाल किया जा सकता है.

सेंसर में क्या है खास?

  • यह सेंसर शरीर में इंजेक्ट किए गए आयरन ऑक्साइड नैनोपार्टिकल्स यानी मैग्नेटिक ट्रेसर को पहचानता है.

  • ये नैनोपार्टिकल्स कैंसर कोशिकाओं के साथ शरीर में घूमते हैं और यह बताते हैं कि क्या कैंसर लिम्फ नोड्स तक पहुंच चुका है.

  • यह सेंसर मैग्नेटिक फील्ड में मामूली बदलाव को भी पकड़ लेता है.

  • इसकी सेंसिटिविटी इतनी ज्यादा है कि यह मैग्नेटिक ट्रेसर की एक सौवीं मात्रा को भी डिटेक्ट कर सकता है.

  • इससे रेडिएशन और एलर्जी का खतरा नहीं होता.

  • अभी तक अस्पतालों में रेडियोधर्मी ट्रेसर या ब्लू डाई का इस्तेमाल किया जाता है.

  • रेडियोधर्मी ट्रेसर हर अस्पताल में उपलब्ध नहीं होते हैं जबकि ब्लू डाई से कुछ मरीजों को एलर्जी हो सकती है

  • इस नई तकनीक में इन दोनों समस्याओं से निजात मिल सकती है, क्योंकि इसमें न तो रेडिएशन है और न ही एलर्जन.

हीरे में छुपा है राज

इस शोध के प्रमुख प्रोफेसर गेविन मॉरली के अनुसार, सेंसर में इस्तेमाल किया गया डायमंड नाइट्रोजन वैकेंसी सेंटर्स से लैस है. यही खासियत इसे बेहद संवेदनशील बनाती है और साथ ही इस वजह से डायमंड को खूबसूरत गुलाबी रंग भी मिलता है. इस नई तकनीक को भविष्य में सिर्फ ब्रेस्ट कैंसर ही नहीं, बल्कि फेफड़ों, लिवर, कोलोरेक्टल और इसोफैगस (घुटकी) जैसे कैंसर में भी इस्तेमाल किया जा सकता है.