
आप अक्सर सरकारी अस्पतालों में दवाइयां लेने जाते होंगे. सरकारी निर्देश भी ये कहता है कि सरकारी डॉक्टर बाहर की दवाइयां नहीं लिख सकते. कुछ डॉक्टरों पर बाहर की दवाइयां लिखने पर एक्शन भी हुआ है लेकिन इस बीच यदि आपको पता चले कि जिन सरकारी अस्पतालों से आप दवाइयां काउंटर पर लंबी लाइन लगाकर ले रहे हैं, वे गुणवत्ता में फेल हो गई हैं तब क्या होगा?
पिछले एक साल में यूपी के अलग-अलग सरकारी अस्पतालों से खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग ने दवाइयों के सैंपल लिए, जब जांच पूरी हुई तब इसमें से कुल 51 दवाइयां और इंजेक्शन ऐसे पाए गए जो गुणवत्ता में फेल हो गए. यानी कि Substandard पाई गईं. इसके बाद विभाग ने जून 2025 को चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को एक पत्र के माध्यम से गुणवत्ता में फेल दवाइयां की लिस्ट लगाकर उचित कार्रवाई करने का निर्देश दिया. एक ओर जांच में 51 दवाइयां Substandard पाई गई हैं तो वहीं सरकारी अस्पतालों में दवा के लिए हर रोज लंबी लाइन लगती है. दवाई की गुणवत्ता का सबसे बड़ा असर अगर किसी पर पड़ेगा तो गरीब या लोअर मिडल क्लास पर जिसके पास बाहर की महंगी दवाई खरीदने के पैसे नहीं हैं.
नहीं हो रहा दवाई का असर
शहनाज अपने भाई शानू को पिछले 4 महीने से लखनऊ के सिविल अस्पताल में दिखा रही हैं. उनका दावा है कि पिछले 4 महीने में उनके भाई को कोई फायदा नहीं हुआ है. वह लगातार यहां से दवाई ले जाती हैं और समय पर दवाई खिलाती हैं लेकिन उसके बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ. आखिरकार डॉक्टर ने उनसे एक दिन कहा कि आप बाहर से दवाई ले लीजिए यह दवाई या उपलब्ध नहीं है.
ऐसे हुआ दवाइयों का टेस्ट
लखनऊ यूनिवर्टी के डायरेक्टर फार्मेसी पुष्पेंद्र त्रिपाठी ने समझाया कि कैसे मेडिकल लैब में दवाइयों का टेस्ट किया गया. पुष्पेंद्र त्रिपाठी ने मशीनों के माध्यम से दवाई कि गुणवत्ता के बारे में सैंपल्स डालकर दिखाया. Disintegration Test लाइव दिखाया. उन्होंने बताया कि टैबलेट बनने के लिए पहले Powder होता है. Powder से Granules बनते हैं और Granules से टैबलेट Punch की जाती है. यह टेस्ट 6 टैबलेट से किया जाता है एक Insturment में, उन टैबलेट को 15 मिनट में टूट जाना चाहिए, इसके बाद 6 और ली जाती हैं, जब 12 फेल हो जाती हैं, तब इसे इस टेस्ट के जरिए Substandard कहते हैं.
पुष्पेंद्र त्रिपाठी ने बताया Substandard एक कॉमन शब्द है. दवाइयों में यदि पैरासिटामोल है तो उसका पहला टेस्ट यही है कि अगर 500mg की पैरासीटामोल है, अगर उसमें इतना कंटेंट नहीं है तो वह सु स्टैण्डर्ड है या फिर दवा बॉडी में जाकर न टूटे, ऐसे तमाम चीजों को लेकर टेस्ट होते हैं. इस लिस्ट में लिखा है, जहां पर dissolution उसका मतलब है यह दावा (ciprofloxacin tablets) पेट में जाकर घुलेगा नहीं. ciprofloxacin यह दवा लिस्ट के मुताबिक धुलेगी नहीं पेट में जाकर, 30 मिनिट्स में घुल ही जाना चाहिए तभी फायदा होगा. यदि 500mg की दवा में जांच में 400mg भी निकलती है तो वह किसी काम की नहीं है, चाहे 5mg भी कम क्यों न हो. assay का मतलब है दवा का composition ही कम है, जितना कंपनी ने दावा किया है.
Particulate matter test जो इसमें दिखाया गया है, वह इंजेक्शन का होता है. Sterility test और particulate matter test होते हैं इंजेक्शन के टेस्ट. PH का मतलब है, यहां की हर दवाई का अलग अलग ph होता है. Stomach में मेडिसिन कुछ mm में डिसोलव होनी थी लेकिन नहीं हो रही. फलाना ph पर disslove नहीं हो रही, जिस पर होनी चाहिए थी इसलिए यह substandard है. Clarity and particulate matter का मतलब है कि इंजेक्शन पानी जैसा क्लियर दिखना चाहिए. Uniformity of dispersion का मतलब है कि दावा का disperse होना जरूरी है. अगर वह यूनिफॉर्म disperse नहीं हो रही मतलब उसमें ड्रग content कम है. इन टेस्ट से यह साबित होता है कि डॉक्टर ने तो दवा लिख दी लेकिन टेस्ट में यह दवाएं फेल हो गई. सरकार लगातार ऐसे टेस्ट करती है. हर राज्य में और फिर दवाई की कंपनी को ban कर दिया जाता है.
यूपी सरकार ने की सख्त कार्रवाई
इस पूरे मामले को लेकर जब चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन से संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि यूपी मेडिकल सप्लाइज कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने प्रत्येक मामले में जुर्माना, स्टॉक वापस लेना, आपूर्तिकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस आदि सहित कार्रवाई की गई है.