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Representative Image आज की डिजिटल दौड़भाग में स्क्रीन टाइम का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय बन गया है. रिपोर्ट्स के अनुसार, भारतीय औसतन 4 घंटे 9 मिनट स्मार्टफोन पर बिताते हैं, जिसमें सोशल मीडिया और वीडियो ऐप्स का सबसे अधिक उपयोग होता है. बच्चों और बड़ों दोनों के लिए स्क्रीन टाइम के बढ़ते प्रभाव से आंखों और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है. ऐसे नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए डिजिटल फास्टिंग के तरीके को अपनाया जा सकता है. लेकिन ये क्या होता है, चलिए बताते हैं.
डिजिटल फास्टिंग क्या है?
डिजिटल इंटरमिटेंट फास्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें डिजिटल डिवाइस से दूरी बनाकर आंखों और दिमाग को आराम दिया जाता है. विशेषज्ञों का मानना है कि स्क्रीन टाइम कम करने से आंखों की थकान, नींद की कमी और तनाव जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है.
बच्चों और बड़ों पर स्क्रीन टाइम का प्रभाव
बच्चों के लिए स्क्रीन का अधिक उपयोग उनकी आंखों और मानसिक विकास पर बुरा असर डालता है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि 91% बच्चे मोबाइल से दूर होने पर तनाव महसूस करते हैं. क्योंकि मोबाइल उनकी ज़िंदगी का हिस्सा बन चुका है. वहीं, बड़ों के लिए स्क्रीन का उपयोग कई बार काम और पढ़ाई का हिस्सा होता है, लेकिन लगातार स्क्रीन पर रहने से सिरदर्द, तनाव और नींद की कमी जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं.
डिजिटल फास्टिंग को कैसे अपनाएं?
डिजिटल फास्टिंग को धीरे-धीरे अपनी दिनचर्या में शामिल किया जा सकता है. विशेषज्ञों ने कुछ आसान उपाय सुझाए हैं:
डिजिटल फास्टिंग के फायदे
डिजिटल फास्टिंग से आंखों की थकान, ड्राइनेस, और जलन जैसी समस्याओं से बचा जा सकता है. यह मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाता है. बच्चों और बड़ों दोनों के लिए स्क्रीन टाइम कम करना जरूरी है ताकि उनकी आंखों और दिमाग को पर्याप्त आराम मिल सके.
विशेषज्ञों की सलाह
विशेषज्ञों का कहना है कि हर बच्चे को स्कूल जाने की उम्र से ही आंखों की जांच करानी चाहिए. बड़ों के लिए भी नियमित चेकअप और स्क्रीन टाइम कम करना जरूरी है. डिजिटल फास्टिंग को अपनाकर हम न केवल अपनी आँखों को स्वस्थ रख सकते हैं, बल्कि मानसिक तनाव और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से भी बच सकते हैं.