

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में KGMU ट्रॉमा सेंटर में डॉक्टरों ने ऐसा कुछ कर दिखाया, जिसे चमत्कार से कम नहीं कहा जा सकता. बलरामपुर जिले की 7 साल की एक बच्ची दर्दनाक हादसे का शिकार हुई थी. 8 सेंटीमीटर लंबी कील उसकी गर्दन को चीरती हुई दिमाग तक पहुंच गई थी. वो जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी. डॉक्टरों ने ऑपरेशन करके उस लड़की की जिंदगी बचा ली.
14 डॉक्टरों की टीम ने 4 घंटे तक की सर्जरी-
आपको बता दें कि इस बच्ची की गर्दन को चीरती हुई 8 सेंटीमीटर लंबी कील उसके दिमाग तक जा पहुंची थी. हालत इतनी गंभीर थी कि उसे होश भी नहीं था. वो बेहोश थी. जब बच्ची को अस्पताल लाया गया तो डॉक्टरों ने मोर्चा संभाला. 14 डॉक्टरों की एक संयुक्त टीम ने 4 घंटे तक ऑपरेशन किया और फिर 10 दिन तक लगातार वेंटिलेटर पर रखकर उसकी जान बचाई.
15 मई को हुआ था हादसा-
इस पूरे ऑपरेशन की अगुवाई डॉ. समीर मिश्रा और डॉ. रम्भित द्विवेदी ने की. बच्ची बलरामपुर के नवाजपुर की रहने वाली है. 15 मई को यह भयानक हादसा हुआ. कील इतनी पतली थी कि गर्दन और जबड़े को भेदते हुए सीधा ब्रेन तक जा धंसी. पहले परिजन उसे नजदीकी अस्पताल लेकर गए, फिर जिला अस्पताल और अंत में KGMU ट्रॉमा सेंटर रेफर किया गया.
बच्ची को 10 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा गया-
16 मई दोपहर 2 बजे बच्ची को ट्रॉमा सेंटर लाया गया. हालत नाज़ुक थी, समय कम था. ENT, न्यूरोसर्जरी और ट्रॉमा विशेषज्ञों की संयुक्त टीम बनाई गई. उसी रात डॉ. समीर मिश्रा और डॉ. वैभव जायसवाल की टीम ने ऑपरेशन किया और जिंदगी की डोर थाम ली.
ऑपरेशन के बाद भी चुनौती खत्म नहीं हुई. बच्ची को PICU में 10 दिन तक वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया. लेकिन डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई. अब वह बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है और ICU से वार्ड में शिफ्ट कर दी गई है.
इस जीवन रक्षक ऑपरेशन में डॉ. यादवेन्द्र, डॉ. लोकेश, डॉ. अर्पिता, डॉ. अर्चना, डॉ. आकांक्षा, डॉ. विशाल, डॉ. रंजीत चन्द्र समेत कुल 14 डॉक्टरों की समर्पित टीम शामिल रही. यह सिर्फ एक ऑपरेशन नहीं, यह उम्मीद, तकनीक और टीमवर्क की मिसाल है.
(अंकित मिश्रा की रिपोर्ट)
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