चंडीगढ़ पीजीआई और हिसार की गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में पाया है कि पराली जलाने के बाद आंखों और गले में जलन सांस लेने में तकलीफ जबकि छाती में दर्द होता है. यह अध्ययन हरियाणा राज्य में पराली के जलने के बाद किया गया है. वहीं इस अध्ययन में यह भी पाया गया है कि लगभग 22.4% लोग इस बात को भी मानते हैं कि पराली जलाने के बाद जिस तरह से विजिबिलिटी कम हो जाती है उसकी वजह से भी सड़क दुर्घटनाएं होती हैं.
आंखों में होती है जलन
सामुदायिक चिकित्सा विभाग और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ, पीजीआईएमईआर के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. रवींद्र खैवाल ने बताया कि हरियाणा में किए अध्ययन में पाया गया है कि पराली जलाने से प्रमुख स्वास्थ्य प्रभावों में से 75% से अधिक घटनाओं के साथ आंखों में जलन बताई गई है. इसके अलावा, 57% से अधिक लोगों ने गले में खुजली/जलन की शिकायत की है, जबकि 22.4% उत्तरदाताओं के अनुसार, पराली जलाने से निकला धुआं भी सड़क दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार है.
महिला और पुरुष दोनों पर हुई स्टडी
56.1% लोगों ने जिन्होंने इस अध्ययन के उत्तर दिए उसमें पुरुष थे अन्य की पहचान महिला के रूप में की गई है. साल 2020 में किए गए एक अध्ययन में इसी तरह के परिणाम देखे गए, जहां 11% उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें उस अवधि के दौरान असुविधा का सामना करना पड़ा जब खेतों में आग लगती थी.
अध्ययन में यह भी पाया गया है कि किसानों द्वारा पराली के संबंध में जिस तरह से सरकार और बाकी संस्थान जागरूक कर रहे हैं उसको लोग समझना चाहते हैं. उसमें किसानों का सबसे पसंदीदा विकल्प है हैप्पी सीडर्स. वहीं किसानों ने यह भी कहा है कि ₹10,000 प्रति एकड़ मुआवजे से भी पराली जलाने पर अंकुश लगाने में मदद मिली है.
पराली जलाने की घटनाएं बढ़ रही हैं
पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (पीआरएससी) के आंकड़ों से पता चलता है कि पराली जलाने पर रोक लगाने के पंजाब सरकार के दावों के बावजूद, 15 सितंबर से 2 अक्टूबर तक खेतों में आग लगने की घटनाएं पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 66% बढ़ गई हैं. आंकड़ों के मुताबिक, इस अवधि में खेतों में आग लगने की 456 घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि पिछले साल इसी अवधि में 275 घटनाएं हुई थीं.