
आमतौर पर बचपन में खांसी-जुकाम के लिए दादी-नानी अपने ही नुस्खे बताती थीं. हैरत की बात है कि उस नुस्खों से तकलीफ दूर भी दो जाती थी. लेकिन जैसे-जैसे वक्त की सुई का कांटा आगे बढ़ता गया. ये नुस्खे भी गायब होते चले गए.
लेकिन बढ़ते वक्त के साथ अब हम उन नुस्खों को दोबारा याद कर रहे हैं. उन जड़ी-बुटियों को दोबारा मेमोरी में लाया जा रहा है, जो उस समय इस्तेमाल होती थीं. पर आखिर इसकी वजह क्या है. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वह कारगर थीं. दूसरा, कि वह आजमाई हुई होती थीं. तीसरा, उनमें किसी प्रकार का कोई केमिकल नहीं होता था. चौथा, वह हमारी संस्कृति का हिस्सा थीं.
केमिकल्स से छुटे पीछा
आजकल आमतौर पर किसी भी सौंदर्य उत्पाद के अंदर केमिकल्स मौजूद होते हैं. जिसके कारण स्किन को नुकसान पहुंचने के चांस बढ़ जाते है. बात अगर विशेष तौर पर चाइल्ड केयर प्रोडक्ट की हो तो, केमिकल्स जितने दूर रहें, उतना ही बेहतर. लेकिन इन प्रोडक्ट्स में भी केमिकल्स आने लगे हैं. इसी वजह से नानी-दादी के केमिकल फ्री चीज़ों को याद किया जा रहा है.
हो चुका होता था प्रैक्टिकल
दरअसल उन नुस्खों को पहले ही आजमा कर देखा जा चुका होता था, कि वह कितने कारगर है. एक यह वजह भी है कि आजकल मार्केट में मिलने वाले कई उत्पादों में हर्बल चीज़े मौजूद होती हैं. क्योंकि उस समय उन्हीं का इस्तेमाल किया जाता था. और उन्हीं की वजह से कोई बीमारी से पीछा छूट पाता था. यानी यहां हर्बल चीज़ों पर एक ट्रस्ट फैक्टर भी काम करता है.
कल्चर का रह चुकी थीं हिस्सा
आजकल का ग्राहक भी काफी समझदार हो चुका है. वह किसी भी उत्पाद को खरीदने से पहले उनके अंदर मौजूद इंग्रीडिएंट को पढ़ता है. इसकी वजह यह है कि वह इंग्रीडिएंट हमारे कल्चर में काफी समय से इस्तेमाल होते आ रहे हैं. इसिलए उनके ऊपर भरोसा भी ज्यादा होता है. साथ ही वह केमिकल फ्री तो होते ही है.
पेरेंटिंग के मामले में बदली चॉइस
जहां पहले खांसी-जुकाम, बुखार के लिए लोग बच्चे को डॉक्टर के पास भागे-भागे लिए फिरते थे. अब वह पहले से ही घर में ऐसे प्रोडक्ट्स रखते हैं. जो हर्बल हो और कारगर भी हो. इससे बच्चे को फौरन आराम भी मिलता है. साथ ही बच्चों की ताकत के लिए भी उन्हें हर्बल ड्रिंक्स पिलाई जाती है.