Digital Campaign for Migrant Voters
Digital Campaign for Migrant Voters बिहार विधानसभा चुनाव में अब कुछ ही महीने बाकी हैं. ऐसे में मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर सियासी बयानबाजी तेज हो गई है. मतदाता रिकॉर्ड को अपडेट करने के लिए शुरू की गई इस प्रक्रिया ने खासकर बिहार से बाहर रहने वाले प्रवासी वोटरों के बीच भारी भ्रम पैदा कर दिया है.
बिहार चुनाव आयोग ने इस प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए हाल ही में एक नई पहल शुरू की है. विज्ञापनों के माध्यम से एक क्यूआर कोड और ऑनलाइन लिंक प्रचारित किया जा रहा है, जिसके जरिए प्रवासी मतदाता अपने वोटर विवरण की जांच या अपडेट ऑनलाइन कर सकते हैं लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि इस अभियान के बारे में जागरूकता बेहद कम है. जीएनटी की टीम ने पूर्वी दिल्ली के चित्रा विहार स्थित एक झुग्गी बस्ती का दौरा किया, जहां हजारों प्रवासी मजदूर बिहार से आकर बसे हुए हैं. आइए जानते हैं चुनाव आयोग की डिजिटल मुहिम के बारे में इन लोगों ने क्या कहा?
मैंने ये विज्ञापन नहीं देखा
सिवान के मुन्ना शाह, जो एक छोटी किराना की दुकान चलाते हैं ने बताया कि मैंने ये विज्ञापन नहीं देखा. मैं अखबार तो पढ़ता हूं, लेकिन हर पन्ना नहीं. मुझे नहीं आता क्यूआर कोड स्कैन करना या वेबसाइट चलाना. मैंने आखिरी बार साल 2024 में वोट डाला था. अब नए नियम आ गए हैं. वोट डालने के लिए घर जाना पड़ेगा, उसमें हजारों रुपए खर्च हो जाते हैं. इतनी डॉक्यूमेंटेशन कौन करे?
जताई अनभिज्ञता
पूर्णिया के मोहम्मद इकबाल, जो लॉन्ड्री का काम करते हैं ने भी अनभिज्ञता जताई. उन्होंने कहा कि मुझे इस क्यूआर कोड के बारे में अब पता चला है. मैंने अपने गांव में बीएलओ से रजिस्ट्रेशन कराया था. यदि ये डिजिटल तरीका काम करता है, तो दोबारा बीएलओ के पास जाने की जरूरत नहीं होगी लेकिन बिहार में तो लोग खाना नहीं खा पा रहे, वो क्या पहचान पत्र और पारिवारिक दस्तावेज जुटाएंगे?
दिल्ली में पिछले 15 सालों से मजदूरी कर रहे मोहम्मद फारूक ने क्या कहा
मैंने कभी वो विज्ञापन नहीं देखा जिसके बारे में आप बता रहे हो. मेरे पास तो सादा फोन है. क्यूआर कोड स्कैन करना या वेबसाइट खोलना नहीं आता. बैंक में आधार मांगते हैं, अब वोट के लिए जन्म प्रमाणपत्र भी चाहिए. हम जैसे अनपढ़ लोग ये सब कैसे करेंगे?
क्या बोले अन्य लोग
मधेपुरा के रिक्शा चालक एमडी पिंटो ने कहा कि मैं अनपढ़ हूं और मोबाइल भी नहीं चलता. ऐसे में मुझे इस तरह के किसी अभियान की जानकारी कैसे होगी? पूर्णिया के समोसा बेचने वाले धर्मेंद्र कुमार शाह, जिनके पास स्मार्टफोन है, ने भी तकनीकी दिक्कतें बताईं. उन्होंने कहा कि मैंने बिहार में घर से SIR के बारे में सुना है. मेरे पास स्मार्टफोन है, लेकिन उसमें सिर्फ कॉल करना आता है. क्यूआर कोड स्कैन या इंटरनेट चलाना नहीं आता.
(अनमोल नाथ बाली की रिपोर्ट)