
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में मालाड पुलिस स्टेशन के वरिष्ठ निरीक्षक को निर्देश दिया है कि वह पांच वर्षीय बच्चे की कस्टडी उसकी दादी से लेकर उसके पिता को दो सप्ताह के भीतर सौंपें. यह बच्चा अब तक अपनी 74 वर्षीय दादी के साथ रह रहा था, जबकि उसके माता-पिता उसके जुड़वां भाई की देखभाल में व्यस्त थे, जो सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित है.
पिता का हक़ बायोलॉजिकल अभिभावक के रूप में
जस्टिस रविंद्र घुगे और गौतम अंकद की बेंच ने सुनवाई करते हुए कहा, “हालांकि दादी का बच्चे से भावनात्मक लगाव है, लेकिन यह उन्हें बायोलॉजिकल पिता से अधिक कानूनी अधिकार नहीं देता.” न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बायोलॉजिकल पिता और प्राकृतिक अभिभावक होने के नाते बच्चे की कस्टडी का प्रथम अधिकार पिता का है.
जन्म और पृष्ठभूमि
नवंबर 2019 में सरोगेसी के जरिए जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ था. जन्म के समय स्वास्थ्य जटिलताओं के चलते पिता ने अपने माता-पिता को एक बेटे की देखभाल के लिए सौंप दिया था. लेकिन कोविड-19 के बाद परिवार में विवाद बढ़ गए. पिता ने फैमिली कोर्ट में बेटे की कस्टडी के लिए अर्जी डाली.
74 वर्षीय दादी ने इसके खिलाफ FIR दर्ज करवाई और बच्चे को सौंपने से इनकार कर दिया. FIR में आरोप लगाया गया था कि बेटे ने चोट पहुंचाई, गलत तरीके से रोका और त्याग दिया.
दोनों पक्षों के तर्क
पिता की ओर से एडवोकेट रीना रोलैंड ने दलील दी कि पिता और मां बायोलॉजिकल माता-पिता हैं और बच्चे के प्राकृतिक संरक्षक हैं. बच्चे को अपने भाई और माता-पिता के साथ मिलकर रहना चाहिए.
दादी की ओर से वकील का कहना था कि जन्म से ही बच्चा उन्हीं के पास पला है और अब भावनात्मक रूप से उनसे जुड़ा हुआ है. साथ ही आरोप लगाया कि पिता का मकसद केवल संपत्ति में हिस्सा लेना है.
अदालत का अवलोकन
कोर्ट ने साफ किया कि पिता बीएमसी में कार्यरत हैं और परिवार में कोई वैवाहिक विवाद नहीं है. पिता पहले से ही सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित जुड़वां बेटे की देखभाल कर रहे हैं. कोई सबूत नहीं है कि पिता आर्थिक या भावनात्मक रूप से बच्चों की देखभाल करने में अक्षम हैं. जजों ने कहा कि संपत्ति विवाद या दादी के साथ मनमुटाव के आधार पर बायोलॉजिकल माता-पिता को कस्टडी से वंचित नहीं किया जा सकता.
दादी को भी मिलेगा मिलने का अधिकार
कोर्ट ने आदेश दिया कि दादी को शुरुआती तीन महीनों तक हफ्ते के किसी भी दिन शाम 6 से 9 बजे तक पोते से मिलने का अधिकार होगा. उनकी बेटियां भी इस दौरान उनके साथ आ सकेंगी. बच्चे की पढ़ाई और अन्य गतिविधियां भी बाधित नहीं की जानी चाहिए.
बच्चे के सर्वोत्तम हित पर जोर
न्यायालय ने कहा, “दोनों पक्ष बच्चे के कल्याण और सर्वोत्तम हित को ध्यान में रखते हुए पूरा सहयोग करें.” अगर किसी भी प्रकार की समस्या आती है तो दोनों पक्ष फैमिली कोर्ट का रुख कर सकते हैं.