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Shanti Bhushan: इंदिरा गांधी की जीत को रद्द कराया, कानून मंत्री रहे...दिग्गज वकील शांति भूषण के सफर पर एक नजर

देश के पूर्व विधि और न्याय मंत्री शांति भूषण का 97 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने अपने नोएडा स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार थे. उनके बड़े बेटे और वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ-साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे.

शांति भूषण शांति भूषण
हाइलाइट्स
  • जब कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हुए भूषण

  • अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन में भी थे शामिल

देश के पूर्व विधि और न्याय मंत्री शांति भूषण 97 साल की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने अपने नोएडा स्थित आवास पर अंतिम सांस ली. पिछले कुछ दिनों से शांति भूषण काफी बीमार थे. उनके बड़े बेटे और वकील प्रशांत भूषण के मुताबिक शांति भूषण गुर्दे की बीमारी के साथ साथ उम्र संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से भी पीड़ित थे. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए ट्वीट किया कि श्री शांति भूषण जी को कानूनी क्षेत्र में उनके योगदान और समाज के हाशिए पर आए वंचितों के लिए आवाज उठाने के जुनून के लिए याद किया जाएगा। उनके निधन से दुख हुआ है. उनके परिवार के प्रति संवेदनाएं. शांति भूषण को निकट से जानने वालों के लिए उनके व्यक्तित्व में तीन अद्भुत गुणों का मिश्रण था. एक प्रखर वकील, एक राजनेता और एक सामाजिक कार्यकर्ता यानी एक्टिविस्ट. 

इंदिरा गांधी की जीत को रद्द कराया
शांति भूषण जब वकील हुए तो देश की प्रधानमंत्री के चुनाव को शून्य करवा दिया. समाजवादी नेता राजनारायण के वकील होकर अपने अकाट्य तर्कों की बदौलत अदालत से इंदिरा गांधी का चुनाव अवैध घोषित करवा दिया. परिणाम हुआ देश में आपातकाल के रूप में. शांति भूषण का नाम उस वक्त भी चर्चा में था, जब उन्होंने 1993 में मुंबई बम धमाकों के अभियुक्तों और बाद में संसद पर हमला करने वाले आतंकी शौकत हुसैन की पैरवी की थी. उसके अरुंधति रॉय के खिलाफ जब कोर्ट की अवमानना का मुकदमा चला तो शांति भूषण रॉय की पैरवी करते दिखे. चर्चित पीएफ घोटाला सामने आया तो भी शांति भूषण आरोपियों के खिले मुखर थे. आरोपियों में न्यायपालिका के कई जजों के भी नाम सवालों और शक के घेरे में थे. बिरला परिवार के संपत्ति विवाद में वो राजेंद्र एस लोढ़ा की पैरवी में अदालत की चौखट पर दिखे तो पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की भी पैरवी की.

जब कांग्रेस छोड़ जनता पार्टी में शामिल हुए भूषण
आपातकाल खत्म हुआ जनता पार्टी की सरकार आई. हालांकि जनता पार्टी बनी तो शांति भूषण कांग्रेस को छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए. इसके साथ आया शांति भूषण का नया रूप. वो नया रूप था राजनेता का. उन्हें देश का कानून मंत्री बनाया गया. वो लगभग ढाई इस पद पर रहे. राज्यसभा के सदस्य के तौर पर वो केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य रहे.

सन् 1980 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए थे. परन्तु 1986 में जब भारतीय जनता पार्टी ने एक चुनाव याचिका पर उनकी सलाह नहीं मानी तो उन्होंने भाजपा से त्यागपत्र दे दिया था.  इसके बाद 1980 के दशक से शांति भूषण का एक और रूप दिखा एक्टिविस्ट का. सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी सीपीआईएल के संस्थापकों की कतार में शांति भूषण सबसे आगे खड़े दिखे. 

अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन में भी थे शामिल
उसके बाद आया अन्ना हजारे का लोकपाल आंदोलन. शांति भूषण वहां भी अपनी भूमिका अपने आप निभाने लगे. लोकपाल का पूरा मसौदा ड्राफ्ट किया. आंदोलन के बाद जब राजनीतिक दल बनाने की बात आई तो शांतिभूषण ने अरविंद केजरीवाल को सलाह, हौसला और एक करोड़ रुपए नकद भी दिए. हालांकि सरकार किसी की भी हो खरी खरी सुनाने, आलोचना करने और दिल की बात जुबान पर ले आने की आदत के चलते शांति भूषण की हरेक भूमिका का पटाक्षेप जल्दी होता गया. 

उत्तर प्रदेश के संगम नगरी इलाहाबाद में 11 नवंबर 1925 को जन्मे शांति भूषण को 2009 में इंडियन एक्सप्रेस की ओर से जारी भारत के सौ शक्तिशाली हस्तियों में 74 वें नंबर पर स्थान दिया था. लेकिन किसी भी विषय पर मुखरता से अपनी बात रखने में को हमेशा अव्वल नंबर पर रहे.