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Emergency 50 Years:'मैंने कहा था न कुछ नहीं होगा’, जब आपातकाल लागू होने के बाद संजय ने इंदिरा गांधी से कही ये बात, जानिए पूरा किस्सा

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इस्तीफा देने के बारे में सोच रही थीं. इसको लेकर उन्होंने कमलापति त्रिपाठी से बात कर ली थी. संजय गांधी कुछ अलग ही सोच रहे थे. इंदिरा गांधी को देश में आपातकाल लगाने के लिए राजी किया. इस फैसले में उनका साथ सिद्धार्थ शंकर रे ने दिया.

Sanjay Gandhi & Indira Gandhi (Photo Credit: Getty) Sanjay Gandhi & Indira Gandhi (Photo Credit: Getty)
हाइलाइट्स
  • एक फैसले की वजह से लगा था आपातकाल

  • लाखों लोगों को भेजा गया था जेल

  • 50 साल पहले लगाई गई थी इमरजेंसी

आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र का सबसे काला दिन माना जाता है. 50 साल पहले 25 जून 1975 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी. लगभग ढाई साल देश भर में आपातकालीन लागू रहा. आपातकाल लागू होते ही देश भर में लाखों लोग जेल में ठूंस दिए गए थे.

देश में आपातकाल लगने के पीछे इंदिरा गांधी के अलावा दो लोगों की बड़ी भूमिका थी. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ रे. ये सब कुछ इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले की वजह से हुआ था. जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया था. साथ ही 6 साल के लिए किसी भी संवैधानिक पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया था.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाजवादी नेता राजनारायण सिंह की याचिका पर ये फैसला सुनाया था. इस फैसले के कुछ दिनों के बाद देश भर में इमरजेंसी लागू हो गई है. आपातकाल लागू होने के बाद संजय गांधी ने अपनी मां से कहा, मैं कहा था न कुछ नहीं होगा. आइए आपातकाल के इस अनसुने किस्से के बारे में जानते हैं.

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हाईकोर्ट का फैसला
1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से चुनाव जीता. इंदिरा गांधी ने समाजवादी नेता राजनारायण सिंह को 10 हजार वोटों से हराया. राजनारायण सिंह ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने को लेकर इंदिरा गांधी के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका की पेश. हाईकोर्ट ने राजनारायण सिंह की याचिका को स्वीकार कर लिया. 

इंदिरा गांधी पर आरोप था कि उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय से जुड़े यशपाल कपूर का चुनाव जीतने के लिए इस्तेमाल किया था. साथ ही प्रधानमंत्री ने अपनी चुनावी रैलियों के लिए पंडाल समेत कई चीजें बनवाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों की मदद ली थी. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के खिलाफ फैसला सुनाया. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को रद्द कर दिया. साथ ही 6 साल के लिए किसी भी संवैधानिक पद के लिए भी अयोग्य घोषित कर दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को इस फैसले के खिलाफ चुनौती देने के लिए 15 दिन का वक्त दिया. मशहूर पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा एक जिंदगी काफी नहीं में इसका जिक्र किया. कुलदीप नैयर लिखते हैं कि इंदिरा गांधी ने सोचा भी नहीं था कि उनके खिलाफ ऐसा फैसला आएगा. इसलिए उन्होंने इस केस में अपील करने को लेकर कोई वकील नहीं किया था.

ऐसा भी नहीं है कि इंदिरा गांधी इस फैसले के बारे में परेशान नहीं थी. पुपुल जयकर ने इंदिरा गांधी किताब में इस घटना का जिक्र किया. 12 जून से कुछ दिन पहले पुपुल जयकर इंदिरा गांधी से मिलीं. तब जाते हुए पुपुल जयकर ने इंदिरा गांधी से कहा, शायद अब हम इस महीने के आखिर में मैक्सिको में मिलेंगे. इस पर इंदिरा गांधी ने कही कि 12 जून को क्या होता है? ये इस पर निर्भर करता है. इंदिरा गांधी ने पुपुल जयकर को बताया कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहे केस के बारे में बताया.

इस फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने अपनी तरफ से तो कोई अपील नहीं कि लेकिन एक स्थानीय वकील वी. एन. खेर ने अपनी तरफ से अपील की अर्जी दाखिल कर दी. सुप्रीम कोर्ट के छुट्टी होने की वजह से ये मामला अवकाशकालीन न्यायाधीश जस्टिस कृष्णा अय्यर के पास पहुंचा. जस्टिस हाईकोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया. जस्टिस कृष्णा अय्यर ने अपने फैसले में कहा कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी रह सकती हैं लेकिन सदन में मतदान नहीं कर सकती हैं. माना जाता है कि जस्टिस अय्यर के इसी फैसले की वजह से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आपातकाल लागू करने का मौका मिल गया.

Sanjay and Indira

देश में आपातकाल
इस फैसले के बाद विपक्ष इंदिरा गांधी के खिलाफ लामबंद हो गया था. इंदिरा गांधी इस्तीफे देने के बारे में सोच रही थीं. इस बारे में उन्होंने कमलापति त्रिपाठी से बात भी कर ली थी संजय गांधी ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. संजय गांधी का साथ पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने दिया. 25 जून 1975 को जय प्रकाश नारायण की दिल्ली में रैली हुई. इस रैली से भी इंदिरा गांधी परेशान थी. जय प्रकाश नारायण ने अपने भाषण में पुलिस और आर्मी को विद्रोह करने को कहा था.

कुलदीप नैयर की आत्मकथा के मुताबिक, सिद्धार्थ रे ने इंदिरा गांधी को इमरजेंसी लागू करने की सलाह दी थी. इस पर इंदिरा ने कहा कि देश में बांग्लादेश युद्ध से पहले से ही इमरजेंसी लगी हुई है. सिद्धार्थ रे ने इंदिरा गांधी से आंतरिक इमरेंजी लागू करने की बात कही. संजय गांधी को अपनी मां को मनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी. इसमें उनका साथ आरके धवन ने दिया. आखिर में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इमरजेंसी को लेकर राजी हो गईं.

25 जून की रात को देश भर में आपातकाल लागू कर दिया गया. इंदिरा गांधी ने इसके लिए कैबिनेट मीटिंग भी नहीं की. इंदिरा गांधी ने देश में आंतरिक अशांति का हवाला देते हुए राष्ट्रपति को पत्र लिखा. प्रधानमंत्री के इस फैसले पर 25 जून की रात को ही राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने हस्ताक्षर कर दिए.

मैने कहा था न...
आपातकाल लागू होते हुए विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया. आपातकाल के दौरान मीसा और डीआरआई कानून के तहत लाखों लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसमें जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, लाल कृष्ण आडवाणी और नानाजी देशमुख समेत हजारों नेता थे. सभी को अलग-अलग जेलों में रखा गया. उसी रात अखबारों की बिजली काट दी गई. 25 जून को भारत का सबसे काला दिन कहा जाता है.

कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि प्रधानमंत्री के घर में जश्न का माहौल था. 25-26 जून की रात का ऑपरेशन बिनी किसी परेशानी के पूरा हो गया था. संजय गांधी ने अपनी मां इंदिरा गांधी से कहा, मैंने आपसे कहा था कि कुछ नहीं होगा. हरियाणा के कांग्रेसी नेता बंसीलाल ने प्रधानमंत्री से कहा, मुझे पूरा भरोसा था कि कोई भी उनके खिलाफ उठने की हिम्मत नहीं करेगा.