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Exclusive: पल्लबी घोष कर चुकी हैं 5000 से ज्यादा लोगों को Human Trafficking से रेस्क्यू, अलमारी और टनल तोड़कर तस्करी से बचा चुकी हैं कई लड़कियों को

पल्लबी घोष पिछले 10 साल से एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में काम कर रहीं हैं. इस दौरान उन्होंने करीब 5 हजार से भी ज्यादा लोगों को रेस्क्यू किया है. इसमें लड़कियों से लेकर बच्चे तक सभी शामिल हैं. पल्लबी बताती हैं कि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों से लड़कियों को लाया जाता है और बड़े शहरों में बेच दिया जाता है. वे कहती हैं कि मानव तस्करी विषय को लेकर देश में इतनी जागरूकता नहीं है. ऐसे में जरूरी है कि इसके बारे में बात की जाए.

Pallabi Ghose Pallabi Ghose
हाइलाइट्स
  • लोगों से बात करना जरूरी है

  • अलमारी तोड़कर और टनल से निकाला है लड़कियों को 

पश्चिम बंगाल की एक 16 साल की लड़की को दिल्ली के जीबी रोड से रेस्क्यू किया गया. ऐसे ही झारखंड की एक लड़की को एक शख्स ने बैंगलुरु के एक घर में घरेलू सहायिका के रूप में नौकरी दिलाने में मदद की थी. करीब 2 साल बाद उसे वहां से निकाला गया. जब उसे बचाया गया तब उसके शरीर का कोई अंग ऐसा नहीं था जो खराब न हुआ हो. आगरा के ऑर्केस्ट्रा में 4 लड़कियों को बंधक बनाकर नचाया गया और उनकी जबरन शादी करा दी गई. काफी समय बाद पता चलने पर तस्करों के चंगुल से उन्हें छुड़ाया गया. ये तीन खबरें महज बानगी है. हर दिन बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मेघालय, मणिपुर, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों से लड़कियों और बच्चों को बहला-फुसलाकर, जबरन, रोजगार का लालच देकर हजारों लोगों की मानव तस्करी की जाती है. इनमें से ज्यादातर को  दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में भेजा जाता है. जिसमें से कई अंत में शारीरिक और यौन शोषण का शिकार होते हैं और सबसे खराब स्थिति में मारे जाते हैं. 

नई दिल्ली की रहने वाली पल्लबी घोष (Human Rights Activist Pallabi Ghose) एक सोशल वर्कर हैं और पिछले 10 साल में 5000 से भी ज्यादा लोगों को मानव तस्करी (Human Trafficking) से बचा चुकी हैं. इतना ही नहीं अब पीड़ितों के पुनर्वास और उन्हें सम्मान के साथ जीवन जीने के लिए सशक्त बनाने में मदद कर रही हैं. मानव तस्करी के बारे में पल्लबी ने GNT Digital से बात की. वे कहती हैं, “ये पूरा ऑर्गेनाइज़्ड रैकेट है. इसमें आप एक को पकड़ भी लेंगे तब भी आखिर तक नहीं पहुंच पाएंगे. क्योंकि पश्चिम बंगाल में बैठे इंसान को ट्रांजिट में कौन बैठा है उसके बारे में नहीं पता होता. एक गिरता है एक टूटता है. ऐसे में आप कैसे पकड़ेंगे रैकेट को? ये एक बिलियन डॉलर इंडस्ट्री है.”

कैसे हुई इस सफर की शुरुआत?

अपने सफर के बारे में पल्लबी घोष बताती हैं, “मैं 17-18 साल की थी तब पहली बार मानव तस्करी के बारे में पता लगा. मैं पश्चिम बंगाल गई थी. तब मैंने एक आदमी को गांव में घूमते हुए देखा, और वो अपनी बेटी को ढूंढ रहे थे. उन्होंने मुझसे मदद मांगी. मैंने जब बच्ची के बारे में पता किया तो मालूम चला कि ये लड़की किसी आदमी के साथ बात कर रही थी जो बाहर से आया हुआ था. वहां किसी ने कहा कि उस आदमी के साथ ये लड़की 'चली' गई है. उस आदमी का हुलिया कोई नहीं जानता था. ये काफी शॉकिंग था. इस वाकया के बाद मैंने अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की और कई सारी संस्थाओं में अप्लाई किया. एक संस्था ने मुझे हायर कर लिया क्योंकि मुझे सभी सोर्स के बारे में पता था. पहले मैंने मिसिंग लोगों (Missing People Report) के बारे में पढ़ना शुरू किया. जिसके बाद ये मानव तस्करी से अपने आप ही जुड़ गया. इसके बाद मुझे और खतरनाक कहानियां पता लगने लगी कि कोलकाता की बसों में औरतें जाती हैं फिर वो रेलवे स्टेशन पर उतरती हैं, इसके बाद वे ट्रेफिकर्स घूमते हैं और वो टारगेट ढूंढते हैं. वो ये देखते हैं कि कोई अकेला तो नहीं है? किसी बच्चे का हाथ छूट गया अपने मां-बाप से, कोई पानी पी रहा है. और तब पता चला कि किस  तरह से ट्रैफिकिंग होती है.”

अलमारी तोड़कर और टनल से निकाला है लड़कियों को 

इस पूरे सफर में आई मुश्किलों के बारे में पल्लबी बताती हैं कि उन्होंने कई मामलों में अलमारी तोड़कर और टनल से लड़कियों को निकाला है. पल्लबी कहती हैं, “मानसिक, शारीरिक तौर पर ये पूरा सफर बहुत मुश्किल भरा रहा है. मैं घंटों-घंटो थाने में बैठी रहती थी, इंतजार करना..क्योंकि पुलिस के बगैर किसी अवैध इलाके में जाना मुश्किल है. दूसरा, अस्पतालों में लड़की का जब रेस्क्यू होता है तब उनका पूरा मेडिकल एग्जामिनेशन (MLC) होता है. इसमें 4-4 घंटे लगते हैं. अब सोचिए कि आपने एक साथ 15 लड़कियों को रेस्क्यू किया है. तब कितना समय लगेगा.”

एक ऐसा ही मामला याद करते हुए पल्लबी कहती हैं, “एक लड़की का ऐसा ही मामला था कि अगर 2-3 घंटे और लेट जाते तो शायद वो मर जाती. 16 साल की लड़की थी, जब उसे रेस्क्यू किया गया तो मैं उसे सफदरजंग हॉस्पिटल लेकर गई. लोग उस लड़की को देखकर सोच रहे थे कि वो 60 साल की औरत है. अब आप सोचिये उस लड़की के साथ किस तरह का व्यवहार हुआ है. उस बच्ची के शरीर का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं था जो डैमेज नहीं था. जब मैं उसे सर्जरी डिपार्टमेंट में लेकर गई थी, उस बच्ची के सिर से मग्गोट्स (कीड़े) थे. तब उस डॉक्टर ने मुझे बोला अगर ये बच्ची और 2 घंटे लेट रेस्क्यू करती तो ये मर जाती. उस बच्ची के पूरी शरीर में इंफेक्शन फैल चुका था. मैं 7 दिन उसके साथ रही. आज वो ठीक है.”

(फोटो क्रेडिट: पल्लबी घोष)

हरियाणा के कई गांवों में होती है जबरन शादी 

ट्रैफिकिंग करके लड़कियों की जबरन शादी भी एक मुद्दा है. हरियाणा के कई गांवों में जबरन शादी करके लड़कियां लाई गई हैं. इनमें से कई नाबालिग होती हैं जिनकी शादी अपने से 30-40 साल बड़े आदमी से करवा दी जाती है. पल्लबी इसपर कहती हैं, “मैंने इतनी जबरन शादी देखी हैं कि रात में आकर मैं सोचती थी कि इतने मामले कैसे हो सकते हैं? हरियाणा के कई गांव हैं जहां ये चल रहा है. जैसे सिवानी, नरवाना, भिवानी, जींद, नरेला, मेवात. आपको यकीन नहीं होगा कि इन कई सारे ऐसे गांव हैं जहां केवल बंगाली लड़कियां हैं. हरियाणा का लड़की और लड़के का अनुपात इतना ऊंचा-नीचा है कि वहां बाहर से लड़कियां शादी करके लाई जाती हैं. मुझे लगा कि ऐसी जगह जहां किसी दूसरी जाति में भी शादी नहीं होती है, वहां कोई 15 या 16 साल को बंगाली मुसलमान लड़की कैसे बियाही जा सकती है? इन लड़कियों की शादियां 40-50 साल के मर्दों से करवाई हुई है. ऐसे में अगर वहां किसी को भी रखा जाए तो कोई नहीं भाग सकता.”

दरअसल, देश में कितनी लड़कियों की तस्करी जबरन शादी के लिए की जाती है इसका कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. न्यूज वेबसाइट स्क्रॉल की रिपोर्ट के मुताबिक, 2013 में, एक रिसर्च में 92 गांवों के 10,000 घरों को शामिल किया गया था, जिसमें पाया गया कि राज्यों से लगभग 9,000 महिलाओं को जबरन शादी में खरीदा गया था. और 2014 में घर-घर जाकर किए गए एक सर्वे में पाया गया कि उत्तर भारत के 85 गांवों में 1,352 तस्कर पत्नियां अपने खरीदारों के साथ रहती हैं.

हमारी न्याय व्यवस्था बेहद कमजोर 

आपको बताते चलें कि संविधान के अनुच्छेद 23 (1) के तहत मानव या व्यक्तियों की तस्करी अपराध है. इसके अलावा अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 ITPA), व्यावसायिक यौन शोषण के लिए प्रमुख कानून है. जिसके तहत दोषी पाए जाने पर भारी सजा मिलती है. इतना ही नहीं भारतीय दंड संहिता की धारा 370 को धारा 370 और 370A IPC भी है, व्यापक प्रावधान किए गए हैं, लेकिन न्यायिक प्रोसेस काफी लंबा है. न्यायिक व्यवस्था के बारे में पल्लबी दुखी मन से अपने पिछले 10 साल में आई मुश्किलों के बारे में बताते हुए कहती हैं, “हमारी जो न्याय व्यवस्था है उससे मैं पूरी तरह हार चुकी हूं. मुझे विश्वास है कि न्याय मिलेगा लेकिन जो पूरा प्रोसेस है, उससे मुझे नहीं लगता मेरे जितने भी सर्वाइवर हैं उनमें से 6 से 7 लोगों को ही न्याय मिल पाया है. हर सुनवाई पर डिफेंस को कुछ हो जाता है, जज बीमार हो जाते हैं, प्रॉसिक्यूशन नहीं आते हैं और मेरे जो सरवाइवर हैं उनको बार-बार कोर्ट आना पड़ता है और जिन हालातों से वो गुजर चुकी है उसे बार-बार याद करना कितना भयानक है. ये बहुत दुख की बात है.”

रिपोर्ट्स के मुताबिक, एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स (AHTUs) के अधीन दर्ज मामलों में से कुल 16 प्रतिशत मामलों में दोषसिद्ध हुआ है. वहीं, 11 राज्यों का ये डेटा उपलब्ध ही नहीं है. आठ राज्यों और तीन केंद्र शासित प्रदेशों में कोई ‘दोष-सिद्ध’ नहीं हुआ है. 

(फोटो क्रेडिट: पल्लबी घोष)
(फोटो क्रेडिट: पल्लबी घोष)

कौन लोग होते हैं सबसे ज्यादा मानव तस्करी के शिकार?

यूएन की रिपोर्ट कहती है कि मानव तस्‍करी में शामिल लोगों के लिए इंटरनेट सबसे आसान और कारगर हथियार है. इससे वे सोशल मीडिया, आनलाइन मार्केटप्‍लेस साइट्स और फ्री स्टैंडिंग वेबपेज से लोगों को अपने झांसे में फंसाते हैं. साथ ही क्लाइंट्स भी आसानी से मिल जाते हैं. साथ ही 2020 यूएनओडीसी ग्लोबल रिपोर्ट के मुताबिक, गरीबी भी इसका बहुत बड़ा कारन है. पल्लबी इसपर कहती हैं, “सबसे ज्यादा गरीब लोगों की ट्रैफिकिंग होती है. जो आपदा प्रभावित क्षेत्रों से आते हैं. जैसे सूखा, बाढ़ आदि. क्योंकि यहां के लोगों को बहलाना फुसलाना आसान होता है. इसके अलावा बच्चियों से प्यार से बात करके उन्हें बहलाया फुसलाया जा सकता है. उन्हें प्यार के झांसे में फसाना आसान होता है. इसका कारण घर में इमोशनल जुड़ाव न होना भी कह सकते हैं. सबसे आसान होता है प्यार के झांसे में ट्रैफिकिंग, शादी का वादा कर देना, खुद को अमीर दिखाकर बहला लेना आदि.” 

भारत के किस क्षेत्र से किस काम के लिए हो रही है तस्करी?

एनसीआरबी के डेटा के बारे में पल्लबी कहती हैं कि जब आप बिहार, छत्तीसगढ़ जाएंगे तो आपको खुद पता चलेगा कि ट्रैफिकिंग के मामले रिकॉर्ड कितने हुए हैं और कितने नहीं. वे कहती हैं, “मैं जब आखिरी बार गई थी तब डेटा होता था कि 500 बच्चे एक दिन में ट्रैफिक हो रहे हैं. मैं पश्चिम बंगाल के एक ऐसे गांव में गई थी जहां एक ही गांव से करीब 30 बच्चे गायब हैं.”

पल्लबी ने जीएनटी डिजिटल को बताया कि पश्चिम बंगाल, उड़ीसा जैसे इलाकों से जिन बच्चों की तस्करी होती है वो वैश्यावृत्ति के लिए होती है. असम से होती है जबरन शादी के लिए. बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ से सिर्फ मजदूरी के लिए बच्चों की तस्करी होती है. इसके पीछे भी कारण है. जैसे मार्केट में ये कहा जाता है कि जो काम करने वाले लोग हैं उनका हाथ मोटा होना चाहिए, सख्त होना चाहिए. लेकिन बाकी दूसरे राज्यों से लड़कियों के हाथ सॉफ्ट होते हैं. मेघालय, मणिपुर जैसे इलाकों से लड़कियों को लाया जाता है इनकी ग्रूमिंग की जाती है और फिर इंटरनेशनल मार्केट में मलेशियन, कोरियन, जैपनीज कहके बेचा जाता है. जिनका दाम 5 गुना ज्यादा होता है. 

ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर NCRB 2021 का डेटा
ह्यूमन ट्रैफिकिंग पर NCRB 2021 का डेटा

लोगों से बात करना जरूरी है

बता दें, पल्लबी ने अपना खुद का एक ऑर्गनाइजेशन खोला है जिससे वे लोगों से बात करने का काम कर रही हैं. पल्लबी कहती हैं, “सबसे बड़ी दिक्कत है कि लोगों को ट्रैफिकिंग के बारे में पता ही नहीं है. यही कारण है कि मुझे एक ऑर्गनाइजेशन खोलनी पड़ी. ताकि मैं लोगों से बात कर सकूं. आज भी मैं हर दिन 5 से 10 लोगों से बात करती हूं. लोग मुझे पागल सोचते हैं. दिक्कत यही है कि हम बड़े लोगों से बात करते हैं जो पढ़े लिखे हैं. हम उनसे बात ही नहीं करते जिनके साथ ये सब हो रहा है. ग्राउंड पर कितने लोग काम कर रहे हैं? मैंने पिछले डेढ़ साल में 75,000 लोगों से बात की है. और इन सबसे मैंने अचानक ही बात की. स्कूल में जाकर, किसी विभाग में जाकर, चाय-बागान वाली औरतों से, चाय वालों से, ठेलेवालों से. एसी कमरों में बैठकर काम नहीं किया जा सकता, ग्राउंड पर उतरना पड़ेगा. ट्रैफिकिंग गरीबों की होती है, इसलिए उनसे बात करना जरूरी है.”