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Exclusive: हरियाणा का एक गांव जहां से शुरू हुए सेल्फी विद डॉटर, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे बड़े-बड़े अभियान….पढ़ें बीबीपुर मॉडल की नींव रखने वाले सुनील जागलान से बातचीत

सुनील जागलान (Sunil Jaglan) हरियाणा के बीबीपुर गांव (Bibipur Village) के पूर्व सरपंच हैं. वे अपने गांव में महिलाओं के लिए कई मुहिम चला चुके हैं. इनमें सेल्फी विद डॉटर, पीरियड चार्ट, बेटियों की नेम प्लेट घर के बाहर लगाना, देश की पहली महिला ग्राम पंचायत, लाडो पुस्तकालय, गाली बंद घर आदि शामिल है. इनमें से कई ऐसी मुहिम हैं जो उसके बाद देश के कई गांवों में शुरू की गई. यहां तक कि इनकी चलाई हुई सेल्फी विद डॉटर मुहिम ने देश देश-विदेश के लोगों का ध्यान खींचा. चलिए पढ़ते हैं आखिर उनका सफर कैसे शुरू हुआ था.     

Sunil Jaglan Sunil Jaglan
हाइलाइट्स
  • बीबीपुर गांव में करवाई देश की पहली महिला ग्रामसभा 

  • गांव में पीरियड्स को लेकर बने मिथक को किया दूर 

  • देशभर के गांवों में अपनाया गया बीबीपुर मॉडल 

तेरी मां ******, तेरी बहन ****** हम अक्सर ऐसे शब्द गालियों के रूप में अपने दफ्तरों, घर, दोस्तों से या आसपास सुनते हैं. बातों ही बातों में जब आपको गुस्सा आता है उसे निकालने के लिए अक्सर ऐसी ही मां या बहन की गालियां देकर शांत किया जाता है. लेकिन इसका नुकसान आपके घर परिवार की बेटियों और बच्चों पर भी उतना ही पड़ता है. इन्हीं को रोकने के लिए हरियाणा के एक छोटे से गांव बीबीपुर के पूर्व सरपंच सुनील जागलान (Sunil Jaglan) ने मुहिम छेड़ दी है. उन्होंने अपने गांव में ‘गाली बंद घर’ (Gaali Bandh Ghar) नाम की एक मुहिम चलाई है. जिसके तहत गाली देने वाले लोगों पर जुर्माना लगाया जाता है. आपको बता दें, सुनील जागलान वही शख्स हैं जिन्होंने साल 2015 में देश-विदेश तक फैलने वाला ‘सेल्फी विद डॉटर’ (Selfie with Daughter) नाम का अभियान चलाया था. सुनील जागलान पिछले 10 सालों में महिला जागरूकता और सशक्तिकरण को लेकर कई कैंपेन चला चुके हैं. और केवल अपने गांव में ही नहीं बल्कि देश के कई गांवों में उनके द्वारा चलाया गया बीबीपुर मॉडल (Bibipur Model) अडॉप्ट किया जा रहा है. इन अभियानों में सेल्फी विद डॉटर, पीरियड चार्ट, बेटियों की नेम प्लेट घर के बाहर लगाना, देश की पहली महिला ग्राम पंचायत, लाडो पुस्तकालय, गाली बंद घर जैसी मुहिम चला चुके हैं. 

बीबीपुर मॉडल और इन सभी मुहिम को लेकर GNT डिजिटल ने सुनील जागलान से बात की… 

बीबीपुर के पूर्व सरपंच सुनील जागलान बताते हैं कि उनकी बेटी के हो जाने के बाद से वे इन मुद्दों को लेकर और भी जागरूक हो गए हैं. अपने सफर की शुरुआत के बारे में वे कहते हैं, “मैं एजुकेशन के क्षेत्र में रहा हूं. मेरा सोचना यही था कि मैं टीचर बनूं और समाज की सेवा करूं. लेकिन उस समय जो मेरी सोच थी वो काफी मटेरियलिस्टिक थी, सरकारी नौकरी वाली सैलरी भी मुझे कम लगती थी. इसलिए मैंने जो सेक्टर चुना वो कोचिंग का चुना. 24 साल की उम्र में मैंने कॉलेज के डायरेक्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया था. तो वो काम करते हुए मेरा जो गांव है बीबीपुर वहां काफी आना जाना रहता था. गांव की स्थिति देखकर मुझे लगा कि यहां काम करने की जरूरत है. गांव की सड़क को लेकर एक इंसिडेंट हुआ जिसके बाद मैंने सरपंच को मिलने वाली ग्रांट और गांव को लेकर किस तरह काम होता है इसे समझा. फिर जब सरपंच का चुनाव हुआ तो मैंने वो लड़ा, उस वक़्त हरियाणा सरकार ने ऑनलाइन पोर्टल बनाया था जिसमें सरपंचों की शिकायत को लेकर कहा गया था. तो मैंने वो की. जिसके बाद ये मैसेज पूरे गांव में फैल गया. और मैं आखिकार सरपंच बन गया.”

सुनील जागलान बताते हैं, “मेरे लिए 2012 का साल बहुत स्पेशल है. ये वो साल है जब मेरी बेटी 24 जनवरी को, उस दिन नेशनल गर्ल चाइल्ड डे (National Child Day) मनाया जाता है. मुझे याद है कैसे नर्स ने मुझे तीन मैजिक वर्ड बोले थे, “बेटी हुई है”. फिर मैंने इसी शब्द को कैंपेन बना दिया. जब मैं पहली बार गांव के हेल्थ सेंटर में गया तो मैंने पाया कि इसमें लड़कियों की संख्या बहुत कम है. तब मैंने गांव की महिलाओं से बात की. और सभी परेशानियों के बारे में समझा.” 

सुनील जागलान
सुनील जागलान

गांव में करवाई देश की पहली महिला ग्रामसभा 

सुनील बताते हैं कि उन्होंने 2012 में देश की पहली महिला ग्रामसभा करवाई थी. वे कहते हैं, “उस वक़्त पंचायती राज में महिला ग्राम सभा का कोई नियम नहीं था. 18 जून 2012 को मैंने देश की पहली महिला ग्रामसभा (First Female Gramsabha) करवाई. जिसमें औरतों ने अपनी परेशानियों के बारे में बताया. तब उन्होंने मुझे कन्या भ्रूण हत्याओं के बारे में बताया. तब हमने एक लिस्ट बनवायी जिसमें सभी प्रेग्नेंट महिलाओं का नाम था, ताकि हम उनकी निगरानी रख सकें. इतना ही नहीं 14 जुलाई 2012 को ऐसी खाप पंचायत की गई जिसमें पहली बार महिलाओं ने भाग लिया था. इसके लिए हमने काफी तैयारियां की, मीडिया से किस तरह बात करना है उसके बारे में बताया, आदि. उस वक़्त पूरे देश विदेश से मीडिया बीबीपुर पहुंचा हुआ था. तब महिलाओं ने बहुत लड़कियों से जुड़ी बहुत सारी बातों के बारे में बताया जैसे प्रॉपर्टी इश्यू, दहेज प्रथा, शादी, लड़कियों के लिए कॉलेज न होना आदि.”

भारत की पहला महिला ग्राम पंचायत
भारत की पहली महिला ग्राम पंचायत

वे आगे कहते हैं, “जब हमारा गांव इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर आ गया तब हरियाणा के मुख्यमंत्री ने गांव के लिए 1 करोड़ का इनाम दिया. तब मैंने सोचा कि इसमें से 50 प्रतिशत पैसा हम महिलाओं की जीवन शैली बनाने पर खर्च करेंगे. इस बजट में से हमने लड़कियों के लिए लाइब्रेरी बनवायी जिसे लाडो पुस्तकालय (Laado Pustakalya) कहा गया. इसके अलावा उनके लिए कंप्यूटर सेंटर बनवाये, औरतों के बैठने के लिए ओपन स्पेस बनवाया गया. अब 2022 में सरकार ने उसी मॉडल को अडॉप्ट करके हर एक ग्राम पंचायत में लाइब्रेरी बनाना अनिवार्य कर दिया है.”

गांव में पीरियड्स को लेकर बने मिथक को किया दूर 

अभी भी गांव और शहरों में पीरियड्स को लेकर कई मिथक हैं. इन्ही मिथकों को दूर करने के लिए सुनील जागलान ने बीबीपुर गांव में पीरियड चार्ट (Period Chart) मुहिम चलाई है. ताकि घर के सभी लोगों को महिला के पीरियड के बारे में पता चले और इस दौरान वे  उनका ख्याल रख सकें.  हालांकि, सुनील जागलान बताते हैं कि इसे लेकर शुरुआत में उन्हें भी नहीं पता था. वे बताते हैं, “ 2012 में मैं गांव में सैनेटरी पेड बनाने की मशीन भी ले आया था.  लेकिन जागरूकता मेरे अंदर भी बहुत कम थी. मैं सही विषयों पर बोल लेता था लेकिन पीरियड्स पर मैं भी ज्यादा नहीं बोल पता था. लेकिन जब इसके बारे में पता चला तो हमने अलग अलग इवेंट करवाए. जिसमें हम प्रतियोगिताएं करवाते थे. इसके अलावा पीरियड्स से जुड़े मिथकों को दूर करने के हम मंदिरों में उन महिलाओं को बुलवाते थे जिन्हे पीरियड्स हो रहे होते थे उनको फिर खाना खिलाते थे. ऐसी बहुत सारी चीजें जब हमने शुरू की तब इसका नाम हमने 2012-13 में बेटी बचाओ अभियान रखा. गांव की लड़कियां 12 के बाद नहीं पढ़ती थी. 2013 में हमने पंचायत की तरफ से पुस्तकों का खर्च उठाया जायेगा जो भी बेटी 12वीं के बाद पढ़ने जाएगी. तो बेटी बचाओ अलग चला था और बेटी  पढ़ाओ अलग चला था. फिर 2014 में ये दोनों कैंपेन इकट्ठे हुए तब ये  बना बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ (Beti Bachao, Beti Padhao). इसके अलावा हमने ‘दादी अगर चाहेगी तो बेटी जरूर आएगी’ जैसे नारे बनाये. तो एक तरह से देखा जाए तो इन सभी अभियानों की शुरुआत हमारे ही गांव से हुई.” 

 गांव में पीरियड चार्ट
गांव में पीरियड चार्ट

आपको बता दें, 2014 की यूनिसेफ (Unicef) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि तमिलनाडु में 79 प्रतिशत लड़कियां और महिलाएं को मेंस्ट्रुअल हाइजीन (Menstrual Hygiene) के बारे में पता नहीं है. इतना ही नहीं  उत्तर प्रदेश में ये आंकड़ा 66 प्रतिशत है, राजस्थान में 56 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल में 51 प्रतिशत. 

सेल्फी विद डॉटर की शुरुआत 

सेल्फी विद डॉटर के बारे में सुनील जागलान GNT Digital को बताते हैं, “मैं बचपन से फिल्में देखता हूं. उस वक़्त मैं सलमान खान को काफी पसंद करता था. तब बजरंगी भाईजान का गाना चल रहा था ‘सेल्फी ले ले रे’ और मेरी बेटी फ्रंट कैमरा सेल्फी ले रही थी. मैंने ये देखकर सेल्फी और डॉटर को कनेक्ट कर दिया. 9 जून 2015 को मैंने ‘बेटी बचाओ, सेल्फी बनाओ’ लिखकर कि आप भी अपनी सेल्फी पोस्ट करें, सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया. हमें इसके लिए अवार्ड भी रखा. ऐसे करते करते ये काफी वायरल हो गया. उस वक़्त करीब 30-40 हजार सेल्फी देश विदेशों से आईं. 28 जून को पीएम ने मन की बात में सेल्फी विद डॉटर के बारे में बताया जिसके बाद ये फिर से मीडिया की नजरों में आ गया. फिर हमने इसके लिए ऑनलाइन म्यूजियम (Selfie With Daughter) बना दिया. और इसमें अभी भी सेल्फियां आ रही हैं. इस बार सेल्फी विद डॉटर की ब्रांड अम्बेस्डर हमने कश्मीर की लड़की ही बनाई है. वो भी पहली बार फेसबुक पर आई हैं.  इसके अलावा कश्मीर में बेटी की नाम की पहली नेम प्लेट घर के बाहर भी लगवाई गई. 20 हजार से ज्यादा नेम प्लेट लगवा चुके हैं देशभर में.”

देशभर में चली सेल्फी विद डॉटर मुहिम
देशभर में चली सेल्फी विद डॉटर मुहिम

देशभर के गांवों में अपनाया गया बीबीपुर मॉडल 

बीबीपुर मॉडल के बारे में सुनील कहते हैं, “साल 2016 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर जी ने मुझे भवन बुलाया. क्योंकि तब मैंने मेरे गांव बीबीपुर के नाम से एक मॉडल बनाया जिसका नाम रखा  ‘बीबीपुर मॉडल’. वहां मुझे पूर्व राष्ट्रपति जी ने बताया कि राष्ट्रपति भवन गांव अडॉप्ट कर रहे हैं. तो उन्होंने 100 गांवों में बीबीपुर मॉडल (Bibipur Model) लागू करवाया. उस पूरे प्रोजेक्ट को कोर्डिनेट करने का जिम्मा मुझे दिया गया. हालांकि, जब सर्वे किया तो हमने पाया कि लड़कियां अपने पिता या भाई के डर से सोशल मीडिया पर प्रोफाइल नहीं बनाती हैं. या इंटरनेट चलाने से कतराती हैं. जिस तरह उन्हें रात को सड़क पर जाने से डर लगता है उसी तरह इस देश की 77 प्रतिशत लड़कियों को सोशल मीडिया प्रोफाइल बनाने में डर लगता है.  जिसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं. उन्हें लगता है कि इससे उनके फोटो का गलत इस्तेमाल  किया जा सकता है. तब हमने लड़कियों को साइबर राइट्स सिखाये, जिसपे मैंने बाद में किताब भी लिखी लाडो राइट्स करके. ‘लाडो गो ऑनलाइन’ (Laado Go Online) को देखते हुए ही कश्मीर में हमने कई बेटियों के एकाउंट्स बनवाएं.

घर के बाहर बेटियों की नेम प्लेट
घर के बाहर बेटियों की नेम प्लेट

सुनील आखिर में कहते हैं कि हमें एक समाज के तौर पर भी जागरूक होने की जरूरत है. और हम सभी को इसके लिए काम करना होगा. अगर कोई लड़की या बेटी आपको देखकर सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है तो इसके लिए आपको शर्मिंदा होना चाहिए. हमें बेटियों के लिए एक सभ्य समाज बनाने की जरूरत है और इसी शुरुआत घर से ही करनी होगी.   

लाडो पंचायत
लाडो पंचायत