
मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा 1650 में स्थापित, चांदनी चौक निस्संदेह दिल्ली के सबसे व्यस्त बाजारों में से एक है. कोई भी इस बाजार में पूरा दिन बिता सकता है और फिर भी यह महसूस कर वापस आ सकता है कि वे हर दुकान पर नहीं गए हैं. चांदनी चौक की हर गली, हर दुकान कुछ कहती है और अपनी कहानी सुनाती है.
चांदनी चौक स्थिति दरीबा कलां सोने-चांदी के जेवरों के लिए मशहूर है लेकिन, इसी रोड पर टाउन हॉल के सामने से गुजरते हुए गुलाब, रजनीगंधा, हरसिंगार, केवड़ा, चंपा, मोगरा के फूलों की ऐसी ताजी खुशबू आती है कि आप भूल जाएंगे आप दिल्ली की किसी गली में खड़े हैं. ऐसा लगता है मानों कहीं दूर फूलों की घाटी हो. आगे जाते ही फूलों की ये सुगंध आपको सीधे दुकान नंबर 320 पर ले जाकर ठहराती है.
हरियाणा के झज्जर से दिल्ली आए थे जौहरीमल
यहां जाकर पता चलता है ये फूलों की दुकान नहीं बल्कि 200 साल पुरानी गुलाब सिंह जौहरीमल के इत्र की दुकान है, जो अपनी खुशबू से दिल्ली को महका रही है. दुकान के मालिक मुकुल गंधी बताते हैं कि साल 1817 में गुलाब सिंह और उनके बेटे जौहरीमल हरियाणा के झज्जर से दिल्ली आए थे. यहां उन्होंने गुलाब के फूल से इत्र बनाने का काम शुरू किया. उन्हीं दोनों के नाम पर इस दुकान का नाम है. अब इस दुकान को उनकी सातवीं और आठवीं पीढ़ी संभाल रही है. वह खुद आठवीं पीढ़ी से हैं. उनके साथ पिता अतुल गंधी, चाचा मुकुल गंधी और प्रफुल्ल गंधी मिलकर इस काम को देखते हैं.
मुकुल बताते हैं कि मेरे भाई, अतुल और प्रफुल्ल और मैं इस दुकान में सातवीं पीढ़ी हैं. मुकुल गर्व से कहते हैं उनका भतीजा हाल ही में आठवीं पीढ़ी की शुरुआत करते हुए व्यवसाय में शामिल हुआ है. हालांकि, कोई आधिकारिक रिकॉर्ड नहीं है लेकिन, पीढ़ियों से चली आ रही कहानियों के अनुसार, दुकान को अकबर शाह द्वितीय की बेटियों, भारत के अंतिम सम्राट बहादुर शाह जफर और कई नवाबों और कवियों का संरक्षण प्राप्त है.
केवड़ा के फूलों से इत्र बनाने ओडिशा भी जाते हैं
मुकुल बताते हैं कि उनके दादा और परदादा के बनाए हुए इत्र के अंग्रेज भी दीवाने थे. ये दिल्ली ही नहीं बल्कि जहां-जहां फूलों की खेती होती है. वहां जाकर इत्र तैयार करते हैं. केवड़ा के फूलों से इत्र तैयार करने ओडिशा जाते हैं, वहीं गुलाब के लिए उत्तर प्रदेश के हाथरस जाते हैं. इसके अलावा ऊद की लकड़ी खस मोगरा हरसिंगार रजनीगंधा, कदंब, केवड़ मौलश्री, गार्डेनिया, गुलनार , नारंगी और चमेली आदि फूलों के लिए उप्र में ही अलग-अलग जगहों पर जाते हैं.
मुकुल बताते हैं कि अब यह दुकान चांदनी चौक की ही नहीं बल्कि दिल्ली की पहचान बन चुकी है. वे चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ियां भी इसी तरह से दुकान को आगे विरासत के रूप में चलाते रहें.
ये भी पढ़ें :