Story of the National Flag Rope
Story of the National Flag Rope हर साल 15 अगस्त को देश में धूमधाम से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. इस दिन राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लाल किला पर प्रधानमंत्री तिरंगा फहराते हैं. राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के बारे में तो आप बहुत कुछ जानते होंगे लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं लाल किले पर तिरंगा फहराने के लिए जो रस्सी इस्तेमाल की जाती है, उसका दिलचस्प इतिहास. आइए जानते हैं इस डोर की कहानी, जो थामे रखती है भारत देश की शान.
कहां बनती है यह बेहद खास रस्सी
लाल किला पर तिरंगा को फहराने के लिए जिस रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है, वह रस्सी राजधानी दिल्ली के सदर बाजार स्थित गोरखी मल धनपत राय जैन एंड कंपनी बनाती है.कुतुब रोड, तेलीवाड़ा स्थित इस रस्सियों की दुकान का संचालन आज पांचवीं पीढ़ी द्वारा किया जा रहा है.
पहली बार साल 1947 में भेजी गई थी रस्सी
गोरखी मल धनपत राय जैन एंड कंपनी के मालिक नरेश जैन के मुताबिक 15 अगस्त 1947 को पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को यह रस्सी भेजी गई थी. तब से हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर रस्सी लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भेजी जाती है. 1950 से गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति को रस्सी भेजी जा रही है ताकि राजपथ पर तिरंगा लहराया जा सके.
नरेश जैन के अनुसार 1947 से लेकर 15 अगस्त 2000 तक जो रस्सी तिरंग फहराने के लिए भेजी जाती थी, उसका शुल्क सरकार देती थी. साल 2001 में जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब पहली बार स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले पर तिरंगा फहराने के लिए फ्री में रस्सी भेंट की गई थी. उसके बाद से आज तक देश के सभी प्रधानमंत्रियों और राष्ट्रपतियों को मुफ्त में रस्सी दी जा रही है.
...तो राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी फ्री में भेंट करेंगे रस्सी
नरेश जैन ने बताया कि गोरखी मल धनपत राय जैन एंड कंपनी की रस्सी दिल्ली के अधिकतर सरकारी संस्थानों में तिरंगा फहराने के लिए इस्तेमाल की जाती है. दिल्ली के उपराज्यपाल को भी फ्री में रस्सी भेंट की जाती है. सरकारी स्कूलों, दफ्तरों और आम जनता को रस्सी दी जाती है. सेना के अफसर भी उनके यहां से रस्सी ले जाते हैं. नरेश जैन ने कहा कि यदि देश के किसी भी राज्य के मुख्यमंत्री तिरंगा फहराने के लिए रस्सी लेना चाहते हैं, तो वे संपर्क कर सकते हैं. वहा सभी को फ्री में रस्सी देंगे.
यह रस्सी भी एक तरह की है राष्ट्रीय धरोहर
नरेश जैन ने बताया कि जब से रस्सी का शुल्क नहीं ले रहे, तब से सरकार रस्सी के इस्तेमाल के बाद लौटा देती है. सरकार रस्सी को सुंदर पैकिंग में, सरकारी मुहर और प्रमाणपत्र के साथ वापस भेजती है. पैकेज पर नाम और साल लिखा होता है. रस्सी उपलब्ध कराने के लिए आयोजन करने वाली सेना की ओर से प्रशंसा पत्र भी दिया जाता है. यह रस्सी भी एक तरह की राष्ट्रीय धरोहर है, जिसे बेहद संभालकर रखा जाता है. नरेश जैन ने कहा कि मेरे पास मौजूद सभी रस्सियों को प्रधानमंत्री संग्रहालय या किसी अन्य संग्रहालय में जगह मिलनी चाहिए, क्योंकि ये रस्सियां बहुत कीमती हैं और देश के इतिहास में इनकी बड़ी भूमिका है.
रस्सी बनाने में बरती जाती है विशेष सावधानी
नरेश जैन ने बताया कि 15 अगस्त से तकरीबन 2 महीने पहले रस्सी बनाने की तैयारी शुरू कर दी जाती है और स्वतंत्रता दिवस के एक महीने पहले सेना के जवान आकर इस रस्सी को ले जाते हैं. नरेश जैन के अनुसार तिरंगा फहराने वाली रस्सी के निर्माण में विशेष सावधानी बरती जाती है. इसे बनाने में नारियल का रेशा, मूंज, कांस, भावड़, पॉलिप्रोपलीन और कॉटन जैसी चीजें इस्तेमाल होती हैं. इस रस्सी को बनाने के लिए अनेकों प्रकार के केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है. कई सारे फाइबर का मिलाकर इस रस्सी को मजबूती दी जाती है और तैयार किया जाता है. रस्सी की लंबाई कितनी होगी यह सेना द्वारा निर्धारित किया जाता है.