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झारखंड के इस गांव में 200 सालों से बनाया जाता है तबला, ज़ाकिर हुसैन की होती है पहली पसंद

द‍िलचस्प यह है क‍ि हर जगह तबला के ऊपर लगने वाला काला रंग बनावटी होता है लेकिन अधरझोल का बना तबला का काला रंग पत्थर के रंग से तैयार किया जाता है. कहा जाता है कि पत्थर का काला रंग अलग होता है इसलिए यहां के तबले काफी मशहूर हैं.

Tabla (Symbolic Image) Tabla (Symbolic Image)
हाइलाइट्स
  • ये तबला काले रंग पत्थर के रंग से तैयार किया जाता है.

  • ज़ाकिर हुसैन की है पहली पंसद

झारखंड में जमशेदपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर है अधरझोल गांव. इस गांव में करीब 200 सालों से तबला बनाया जाता है. खास बात ये है क‍ि यहां का बना तबला मशहूर तबला वादक जाकिर हुसैन की पहली पसंद होती है. वो जब भी भारत में होते है यहां से तबला मंगवाना नहीं भूलते है. यहां का बने तबले की देश विदेश में काफी मांग है. हालांक‍ि, तबला बनाने वाले अब सिर्फ 15 घर ही बचे हैं. यहां तबला बनाने वालों माली हालत इतनी खराब है क‍ि वर्षों पुरानी यह तबला बनाने की पद्धति बंद हो सकती है.

जमशेदपुर के पटमदा प्रखंड में अधरझोलगांव है जहां रविदास समुदाय के लोग रहते हैं. इनका वर्षों पुराना घराना है जहां यह लोग तबला बनाते हैं. कई पीढ़ी से ये लोग तबला बनाते आए हैं और यहां का बना तबला बिहार, बंगाल, दिल्ली, मुंबई और पंजाब जाता है. कई मशहूर तबलावादकबले यहां के तबला की मांग करते हैं.

तबले का रंग और पत्थर बनाता है इसे बेहद ही खास

द‍िलचस्प यह है क‍ि हर जगह तबला के ऊपर लगने वाला काला रंग बनावटी होता है लेकिन अधरझोल का बना तबला का काला रंग पत्थर के रंग से तैयार किया जाता है. कहा जाता है कि पत्थर का काला रंग अलग होता है इसलिए यहां के तबले काफी मशहूर हैं.

यहां तबला बनाने के पेशे से जुड़े पर‍िवार में घर की महिला और पुरुष सभी इस काम को करते हैं. ऐसे ही पेशे से जुड़े संदीप दास कहते हैं क‍ि वो 70 साल के हो गए हैं लेकिन दोनों पति पत्नी तबले का साँचा खुद तैयार करते हैं और हर दिन सुबह सुबह दोनों लकड़ी को तबले का आकार देना खुद शुरू करते हैं. यहां का बना तबला उस्ताद जाकिर हुसैन की पहली पसंद है और वो हर साल इस गांव से एक तबला का सेट जरूर मंगाते हैं.

पुरखों ने बचा कर रखी है परंपरा

गांव के ही मेघनाथ रविदास का कहना है, 'हमारे गांव की खास‍ियत यह है कि हम लोग करीब 150 से 200 साल पुराने अपने पुरखों की दी गई तबला बनाने की कला बचा कर रखे हैं. यहां के बने तबले की मांग फ‍िल्मी दुनिया में काफी होती है. उस्ताद जाकिर हुसैन को यहां का बना तबला काफी पसन्द है'. इसी तरह संतोष रविदास कहते हैं, 'हमारे यहां का बना तबला जमशेदपुर के अलावा बंगाल और  मुम्बई में काफी मशहूर है.' गुनाधर रविदास के मुताब‍िक इस गांव में ढोल, नगाड़ा, तबला बनता है. यह के बने तबले की देश विदेश में काफी मांग है. बादल रविदास कहते हैं क‍ि यह गांव तबला के गांव के नाम से जाना जाता है. एक तबला बनाने में करीब दो दिन लग जाते हैं.

(अनूप स‍िन्हा की र‍िपोर्ट)